बिहार से कैसे रुकेगा पलायन, खत्म होगी गरीबी? नेताओं के प्लान की ABCD
राजनीति
• PATNA 12 Jul 2025, (अपडेटेड 12 Jul 2025, 7:14 AM IST)
बिहार के मजदूर देश के कोने-कोने में हैं। बिहार में पलायन का मुद्दा प्रशांत किशोर से लेकर तेजस्वी यादव तक उठा रहे हैं। सबका कहना है कि 2 दशक की नीतीश सरकार में बिहार से पलायन क्यों नहीं थमा।

बिहार में पलायन। (AI Generated Image)। Photo Credit: SoraGPT)
बिहार के चुनाव में एक बार फिर पलायन का मुद्दा छा गया है। अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं लेकिन उससे पहले ही यह दावे किए जा रहे हैं कि बिहार में पलायन रुक जाएगा, उद्योग धंधों की बहार आ जाएगी। नई नवेली पार्टी बनाकर चुनावी मैदान में उतरे प्रशांत किशोर हों, पुष्पम प्रिया चौधरी हों या दशकों से जड़ें जमा चुकीं कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाइटेड या भारतीय जनता पार्टी जैसी पार्टियां हों, वादे सबने किए, बिहार से पलायन का दर्द नहीं मिला।
साल 1951। देश को आजादी मिले 4 साल बीत चुके थे। बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले थे। चुनाव हुए, पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रति लोगों की श्रद्धा रही, कांग्रेस ने 322 में 239 सीटों पर कांग्रेस पार्टी ने जीत दर्ज की। कृ्ष्ण सिन्हा बिहार के पहले मुख्यमंत्री बने। मुद्दा तब भी पलायन और बेरोजगारी था, मुद्दा अब भी पलायन और बेरोजगारी है। 1951 से अब तक बिहार 23 मुख्यमंत्री देख चुका है। कर्पूरी ठाकुर से लेकर लालू यादव तक, राबड़ी देवी से लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक, बिहार में सरकार किसी की भी रही, न पलायन रुका, न बेरोजगारी कम हुई।
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पटना पहुंचने वाली ट्रेनों से समझिए पलायन
बिहार में पलायन से जुड़े आकंड़ों को ऐसे भी समझ सकते हैं कि सिर्फ बिहार की राजधानी पटना के लिए देश के महानगरों से कितनी ट्रेनें चलती हैं। दिल्ली से पटना के लिए 37 से ज्यादा ट्रेनें चलती हैं। बेंगलुरु से पटना के लिए 8 से ज्यादा ट्रेनें चलती हैं, मुंबई सेंट्रल से पटना के लिए 17 से ज्यादा ट्रेनें, कोलकाता से पटना के लिए 20 से ज्यादा ट्रेनें, चेन्नई एग्मोर से पटना के लिए 9 ट्रेनें चलती हैं। पटना के अलावा दूसरी जगहों से भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचते होंगे। बिहार जाने वाली ज्यादातर ट्रेनें फुल होती हैं, रिजर्वेशन मिल पाना कठिन होता है, जनरल डिब्बे भरे होते हैं।
बिहार में पलायन पर क्या कहते हैं आंकड़े?
उत्तर प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा पलायन वाला राज्य बिहार है। केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि बिहार के 2 करोड़ 90 लाख से ज्यादा लोग दूसरे राज्यों में प्रवासी मजदूर की तरह काम कर रहे हैं। यह आंकड़ा अब और बढ़ सकता है। जर्नल ऑफ माइग्रेशन अफेयर्स ने साल 2019 में एक स्टडी की थी, जिसमें यह बात निकल सामने आई थी कि बिहार के पलायन की वजह गरीबी, उद्योग धंधों की गैरमौजूदगी, संसाधनों का अभाव, जमीन का असमान वितरण और रोजगार का न होना है। दिल्ली, झारखंड, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, यूपी, हरियाणा, पंजाब और गुजरात में ज्यादातर बिहारी मजदूर श्रम की तलाश में जाते हैं।
देश के किस हिस्से में कितने रहते हैं प्रवासी बिहारी?
साल 2011 में हुई जनगणना के आंकड़ों के विश्लेषण बताते हैं कि दिल्ली में बिहार के कुल प्रवासी मजदूरों में 21.47 फीसदी मजदूर दिल्ली में रहते हैं, महाराष्ट्र में 13%, पश्चिम बंगाल में 12.39%,झारखंड में 9.94%, पंजाब में 8.51%, हरियाणा में 7.8%, यूपी में 9.96%, गुजरात में 5.94% और देश के बाकी हिस्सों में 13.81 प्रतिशत मजदूर रहते हैं।
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क्यों बिहार छोड़ रहे हैं लोग?
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) की ओर से तैयार की गई जर्नल ऑफ माइग्रेशन अफेयर्स की रिपोर्ट में उन वजहों के बारे में बात की गई है, जिनकी वजह से बिहार में पलायन होता है। बिहार में करीब 55% लोग रोजगार और काम की तलाश में अपने राज्य से बाहर भागते हैं। 20% लोग व्यापार के सिलसिले में बाहर जाते हैं, पढ़ाई की वजह से 1% लोगों का पलायन होता है, शादी की वजह से 3 प्रतिशत लोगों का पलायन होता है, जन्म के बाद 3 प्रतिशत लोगों ने बिहार छोड़ा है, बिहार से बाहर 20% लोग बस गए हैं, वहीं 15% लोग अन्य वजहों से बिहार में बस गए हैं।
आमदनी से गरीबी तक, बिहार पर एक नजर
बिहार की प्रति व्यक्ति आय की राष्ट्रीय औसत की तुलना में खराब स्तर पर है। साल 2011-12 से, बिहार में प्रति व्यक्ति आय सबसे कम रही है। साल 2023-24 में प्रति व्यक्ति आय 32,174 रुपये प्रति वर्ष रही, जबकि राष्ट्रीय औसत 1.07 लाख रुपये है। बिहार में एक ग्रामीण परिवार औसतन 3,788 रुपये प्रति माह खर्च करता है, जबकि राज्य में एक शहरी परिवार 5,165 रुपये खर्च करता है। ये दोनों आंकड़े राष्ट्रीय औसत 4,247 रुपये (ग्रामीण) और 7,078 रुपये (शहरी) से काफी कम हैं।
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NDA गठबंधन का पलायन रोकने का एजेंडा क्या है?
एनडीए का दावा है कि बिहार में गरीबी मिटाने और पलायन रोकने की कोशिश की जा रही है। बिहार में करीब 5,20,742 गरीब परिवारों के लिए पक्के मकान और 59,000 करोड़ रुपये की बुनियादी परियोजनाएं शुरू की गई हैं। उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए 71,289 करोड़ रुपये की 135 परियोजनाएं मंजूर की गई हैं। बिहार में एनडीए का जोर इन बातों पर है-
- औद्योगिक विकास: विशेष आर्थिक क्षेत्र और औद्योगिक पार्क स्थापित कर निजी निवेश को बढ़ावा देना।
- कौशल विकास: युवाओं के लिए स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम और वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर स्थापित करना।
- इन्फ्रास्ट्रक्चर: सड़क, रेल, और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं का विस्तार कर उद्योगों को आकर्षित करना।
- कृषि और ग्रामीण विकास: कृषि-आधारित उद्योगों और फूड प्रोसेसिंग इकाइयों को प्रोत्साहन देना।
- रोजगार सृजन: 10 लाख सरकारी और 10 लाख निजी नौकरियां सृजित करने का लक्ष्य।
- स्टार्टअप और MSME: बिहार में स्टार्टअप इकोसिस्टम और सूक्ष्म, लघु, और मध्यम उद्यमों को बढ़ावा देना।
इंडिया गठबंधन का पलायन रोकने का प्लान क्या है?
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस ने बिहार में गरीबी उन्मूलन, रोजगार सृजन और पलायन रोकने के लिए कई योजनाएं प्रस्तावित की हैं। RJD का वादा है कि बिहार में 'माई-बहिन मान योजना' महिलाओं को 2500 रुपये मासिक देने, सामाजिक पेंशन बढ़ाने और 10 लाख नौकरियां दी जाएंगी। कांग्रेस का ध्यान 'पलायन रोको, नौकरी दो' यात्रा बेरोजगारी, पेपर लीक और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर है। दोनों पार्टियां कौशल विकास और शिक्षा के जरिए रोजगार के अवसर बढ़ाने पर जोर दे रही हैं। दोनों दल डोमिसाइल नीति, 65% आरक्षण और नए निवेश से पलायन रोकने का वादा कर रही हैं।
बिहार के चुनावों के लिए अभी तक किसी पार्टी ने अपना मेनिफेस्टो नहीं जारी किया है। पार्टियां अपनी जनसभाओं में ऐसे दावे कर रही हैं।
जन सुराज पार्टी का पलायन रोकने का प्लान क्या है?
प्रशांत किशोर ने दावा किया है कि अगर उनकी सरकार आई तो महज एक साल के भीतर वह पलायन रोक देंगे। उन्होंने कहा कि बिहार में सिर्फ 23 लाख लोग सरकारी नौकरी में हैं। 1.97 प्रतिशत लोग, करीब 2 प्रतिशत। सरकारी नौकरी से बिहार में बेरोजगारी नहीं खत्म हो सकती है। बिहार में 67 प्रतिशत सर्विस सेक्टर में नौकरी दी जा सकती है। उनका मानना है कि अगर बिहार में पूंजी आ गई तो बिहार की समस्या खत्म हो गई।
प्रशांत किशोर का मानना है कि बिहार में बैंकों का क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात बहुत कम है। बिहार में बैंकों में हर साल 4.61 लाख करोड़ रुपये जमा होते हैं, लेकिन केवल 1.61 लाख करोड़ रुपये का कर्ज बांटा जाता है। शेष राशि अन्य राज्यों में ऋण के रूप में चली जाती है। अगर बिहार के बैंक, बिहार के लोगों को कर्ज देंगे तो व्यवसाय बढ़ेगा, कर्ज कम होगा।
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प्रशांत किशोर का वादा है कि उनकी सरकार बनने पर युवाओं को बिहार में ही 10-15 हजार रुपये मासिक की नौकरी दी जाएगी। इसके लिए लघु उद्योगों को बढ़ावा, आईटी सेक्टर में निवेश और कौशल विकास प्रशिक्षण पर जोर दिया जाएगा। साथ ही, निजी स्कूलों में मुफ्त शिक्षा और बुजुर्गों को 2000 रुपये पेंशन देने की योजना है, जिससे आर्थिक स्थिरता बढ़े।
द प्लूरल्स पार्टी का पलायन रोकने का प्लान क्या है?
पुष्पम प्रिया चौधरी की द प्लूरल्स पार्टी भी दावा करती है कि बिहार से गरीबी मिटा देगी। यह पार्टी, बिहार में दो चुनाव पुरानी है। साल 2020 में पार्टी ने पहली बार बिहार में चुनाव लड़ा, पुष्पम प्रिया चौधरी ने खुद को सीएम कैंडिडेट घोषित किया था, वह अपनी सीट भी नहीं बचा पाईं थीं। उनका प्लान बिहार में पलायन और बेरोजगारी खत्म करने के लिए '8 दिशा आठों पहर' मैनिफेस्टो पर आधारित है। इसमें 8 विकास जोन, 8 महानगर, औद्योगिक क्षेत्र, 8 लाख सरकारी और 80 लाख निजी नौकरियां सृजित करने, कृषि क्रांति और स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने की की बात कही गई है।
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