भगवा, हरा, नीला, गुलाबी और काला... भारतीय राजनीति के कितने रंग?
राजनीति
• NEW DELHI 20 Jan 2025, (अपडेटेड 20 Jan 2025, 1:27 PM IST)
भारतीय सियासत में रंगों का काफी महत्व है। रंग किसी भी पार्टी का वोट बैंक बना सकते हैं। रंग देखकर पार्टी की विचारधारा का भी अंदाजा लगाया जा सकता है।

राहुल गांधी। (File Photo Credit: PTI)
याद होगा कि महीनेभर पहले राहुल गांधी संसद में नीली टीशर्ट पहनकर पहुंचे थे। अक्सर व्हाइट टीशर्ट में नजर आने वाले राहुल गांधी का ये नया अवतार था। उन्होंने नीली टीशर्ट डॉ. आंबेडकर के अपमान के विरोध में पहनी थी। दरअसल, गृह मंत्री अमित शाह के एक बयान पर विपक्ष हमलावर था और उनपर आंबेडकर का अपमान करने का आरोप लगा रहा था। इसके विरोध में ही राहुल गांधी नीली टीशर्ट में और उनकी बहन प्रियंका गांधी नीली साड़ी में संसद पहुंची थीं।
अब उसके ठीक एक महीने बाद 19 जनवरी को राहुल गांधी ने 'व्हाइट टीशर्ट मूवमेंट' शुरू किया है। कांग्रेस का कहना है कि व्हाइट टीशर्ट सिर्फ कपड़े का टुकड़ा नहीं है, बल्कि संविधान की रक्षा और न्याय के लिए खड़े होने का प्रतीक है।
व्हाइट टीशर्ट मूवमेंट क्यों?
इस अभियान की शुरुआत करते हुए राहुल गांधी ने दो कारण बताए हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट कर लिखा, 'मोदी सरकार ने गरीब और मेहनतकश वर्ग से अपना मुंह मोड़ लिया है और उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया है। सरकार का पूरा ध्यान सिर्फ गिने-चुने पूंजीपतियों को ही समृद्ध करने पर है। इस वजह से असमानता लगातार बढ़ती जा रही है और खून-पसीने से देश को सींचने वाले श्रमिकों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। वे तरह-तरह के अन्याय और अत्याचार झेलने को मजबूर हैं।'
राहुल ने आगे लिखा, 'ऐसे में हम सबकी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम मिलकर उन्हें न्याय और हक दिलाने के लिए मजबूती से आवाज उठाएं। इसी सोच के साथ हम #WhiteTshirtMovement की शुरुआत कर रहे हैं।'
आज मोदी सरकार ने ग़रीब और मेहनतकश वर्ग से अपना मुंह मोड़ लिया है और उन्हें पूरी तरह से उनके हाल पर छोड़ दिया है। सरकार का पूरा ध्यान सिर्फ़ गिने चुने पूंजीपतियों को ही और समृद्ध करने पर है।
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) January 19, 2025
इस वजह से असमानता लगातार बढ़ती जा रही है और खून-पसीने से देश को सींचने वाले श्रमिकों की… pic.twitter.com/RNMcOuAfYF
सफेद रंग ही क्यों?
सितंबर 2022 में राहुल गांधी ने कन्याकुमारी से श्रीनगर तक 'भारत जोड़ो यात्रा' की थी। इस दौरान राहुल गांधी व्हाइट टीशर्ट में ही नजर आए। इसके बाद व्हाइट टीशर्ट ही राहुल गांधी की पहचान बन गई।
व्हाइट टीशर्ट मूवमेंट की वेबसाइट पर बताया गया है, 'व्हाइट टीशर्ट सिर्फ कपड़े का टुकड़ा नहीं है। ये हमारे 5 सिद्धांतों- करुणा, एकता, अहिंसा, समानता और सबकी प्रगती का प्रतीक है। ये पांच मूल्य भारत की 8 हजार साल पुरानी सभ्यता को दिखाते हैं, जो सद्भावना और विविधता पर आधारित है।'
भारतीय राजनीति और रंग
भारतीय राजनीति और भारतीय समाज में रंगों का अपना महत्व है। 1942 में डॉ. आंबेडकर ने 'शेड्यूल कास्ट फेडरेशन' की स्थापना की। इसके झंडे का रंग नीला था। फिर 1956 में जब आंबेडकर ने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया बनाई तो उसके झंडे का रंग भी नीला ही रखा। इस तरह से नीला रंग दलितों की पहचान बन गया।
हालांकि, आंबेडकर से भी पहले एक ऐसे समाज सुधारक थे, जिनकी पहचान रंग से होती थी। उनका नाम है ज्योतिबा फुले। ज्योतिबा फुले हमेशा लाल रंग की पगड़ी ही पहनते थे। लाल रंग को कम्युनिस्टों से जोड़कर देखा जाता है।
राजनीतिक पार्टियों ने भी रंगों का अपनी-अपनी तरह से इस्तेमाल किया है। जिस तरह से किसी भी पार्टी के लिए उसका चुनाव चिन्ह जरूरी होता है, उसी तरह से उसका रंग भी उसकी पहचान होता है। जैसे- भगवा रंग देखकर कोई भी बता सकता है कि पार्टी की विचारधारा दक्षिणपंथी होगी और हिंदुत्ववादी होगी। हरा रंग देखकर बताया जा सकता है कि फलां पार्टी मुस्लिमों की पार्टी है। जबकि, लाल रंग का झंडा देखकर माना जाता है कि ये पार्टी साम्यवादी यानी कम्युनिस्ट विचारधारा की होगी।
कई पार्टियां अपने झंडे में अलग-अलग रंगों का इस्तेमाल करती हैं। मसलन, समाजवादी पार्टी के झंडे में लाल और हरा रंग देखने को मिलता है। बीजेपी के झंडे में भी भगवा और हरा रंग दिख जाता है। पार्टियों के झंडों में अक्सर हरा, सफेद या केसरिया रंग दिख जाता है, क्योंकि ये तीनों रंग भारतीय तिरंगे में हैं।
राजनीति में कितने रंग?
भारतीय राजनीति में सबसे आसानी से पहचाने जाने वाले रंगों में से एक नीला रंग भी है। नीला रंग दलित आंदोलन और दलितों का प्रतीक माना जाता है। डॉ. आंबेडकर की पार्टी के झंडे का रंग भी नीला था। मायावती खुद को दलितों का सबसे बड़ा नेता बताती हैं। उनकी बहुजन समाज पार्टी (BSP) के झंडे का रंग भी नीला है। और तो और जब भी दलित आंदोलन होता है या दलितों का विरोध प्रदर्शन होता है, तो उसमें नीले झंडे का ही इस्तेमाल होता है। चंद्रशेखर आजाद भी खुद को दलित नेता बताते हैं। उनकी आजाद समाज पार्टी के झंडे में भी नीले रंग का ही इस्तेमाल किया गया है।
हरा रंग मुस्लिम पार्टियों का प्रतिनिधित्व करता है। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (AIMIM) के झंडों का रंग हरा ही है। इसी तरह लाल रंग कम्युनिस्ट पार्टियों का है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के झंडों का रंग लाल है।
भगवा मतलब हिंदूवादी पार्टी
भारत में भगवा रंग को हिंदू धर्म से जोड़कर देखा जाता है। मंदिरों में भी भगवा ध्वज ही फहराता है। माना जाता है कि मराठा समुदाय के हिंदू राजा शिवाजी का ध्वज भी भगवा था। महाराष्ट्र की शिवसेना ने भी इसलिए अपने झंडे में भगवा रंग को ही चुना। राज ठाकरे की महाराष्ट्र निवनिर्माण सेना के झंडे में भी भगवा रंग दिखता है।
सबसे अहम बात ये है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने भगवा को ही अपना ध्वज चुना। इसलिए 1951 में जब भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई तो उसने भी भगवा रंग को ही चुना। जनसंघ से ही बनी भाजपा के झंडे में भी हरे के साथ-साथ भगवा रंग है।
भगवा रंग का इस्तेमाल इसलिए भी किया गया, क्योंकि ये न सिर्फ धार्मिक था, बल्कि धर्मनिरपेक्ष भी था। नियम के मुताबिक, कोई भी पार्टी धार्मिक या जाति संबंधी प्रतीकों का इस्तेमाल नहीं कर सकतीं। भगवा, जिसे केसरिया भी कहा जाता है, वो भारतीय तिरंगे में भी है। यही हरे रंग के साथ भी है। हालांकि, पार्टियों ने इस बात का भी ध्यान रखा कि उनके झंडे का रंग उनके वोटरों को खींचने का काम भी करे।
पिछले कुछ सालों में भगवा रंग हिंदूवादियों के बीच उतनी ही आसानी से पहचाने जाने वाला रंग बन गया, जितनी आसानी से लाल रंग कम्युनिस्टों से और हरा रंग मुस्लिमों से जुड़ा है। बीजेपी की रैलियों में सड़कें भगवा रंग से पट जाती हैं। रैलियों में आने वाले भगवा झंडों के साथ दिखाई पड़ते हैं। मीडिया में भी अक्सर बीजेपी सरकार को 'भगवा सरकार' कहकर संबोधित किया जाता है। हिंदू राष्ट्रवादियों के बढ़ते प्रभाव का विरोध करने वाले 'भगवाकरण' का आरोप लगाते हैं।
राजनीति का एक नया रंग- गुलाबी
भगवा, हरा, लाल या नीला तो राजनीति में काफी पुराना है लेकिन अब 'गुलाबी रंग' ने भी अपनी पहचान बना ली है। तेलंगाना की भारत राष्ट्र समिति (BRS) के झंडे में गुलाबी रंग का इस्तेमाल किया गया है।
गुलाबी रंग चुने जाने को लेकर 2014 में चंद्रशेखर राव की बेटी के. कविता ने कारण बताया था। कविता ने कहा था, 'गुलाबी रंग इसलिए चुना क्योंकि ये सफेद और लाल रंग का मिक्स्चर है। सफेद रंग जहां गरिमा, शालीनता, पारदर्शिता और ईमानदारी का प्रतीक है, वहीं लाल रंग आंदोलन के जुनून को दिखाता है।'
काले से भी दूरी?
काले रंग को सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पश्चिमी मुल्कों में भी अशुभ माना जाता है। काले रंग को आमतौर पर विरोध के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। यही वजह है कि जब किसी का विरोध करना होता है तो उसे काले झंडे दिखाए जाते हैं।
हालांकि, दक्षिण भारत की पार्टी द्रविण मुनेत्र कड़गम (DMK) अपने झंडे में काले रंग का इस्तेमाल करती है। इसकी वजह पेरियार हैं। ईवी रामास्वामी, जिन्हें पेरियार के नाम से भी जाना जाता था, उन्होंने धर्म और ब्राह्मण वर्चस्व के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। उनके झंडे में काला रंग और उसके बीच में लाल घेरा हुआ करता था। बाद में इसी से DMK बनी और उसने अपने झंडे में लाल और काले रंग का इस्तेमाल जारी रखा।
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