सुखबीर सिंह बादल ने शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष पद से शनिवार को इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपना इस्तीफा पार्टी वर्किंग कमेटी को सौंप दिया है। उनका यह फैसला अकाल तख्त साहेब द्वारा उनको 'तनखैया' घोषित किए जाने के दो महीने बाद आया है। तनखैया का मतलब है सिख धार्मिक नियमों का उल्लंघन करने वाला।
इस घटनाक्रम की पुष्टि करते हुए एसएडी के प्रवक्ता दलजीत सिंह चीमा ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, "एसएडी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने नए अध्यक्ष के चुनाव का रास्ता साफ करन के लिए आज पार्टी की कार्यसमिति को अपना इस्तीफा सौंप दिया। उन्होंने अपने नेतृत्व में विश्वास व्यक्त करने और पूरे कार्यकाल के दौरान पूरे दिल से समर्थन और सहयोग देने के लिए सभी पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को धन्यवाद दिया।"
सुखबीर के इस्तीफे के बाद बलविंदर सिंह भुंडर को पार्टी का वर्किंग प्रेसिडेंट बनाया गया है।
इस्तीफे की उठ रही थी मांग
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने जनवरी 2008 में सुखबीर को पार्टी अध्यक्ष बनाया था। बेअदबी और गुरु ग्रंथ साहिब की चोरी की घटनाओं के बाद अक्टूबर 2015 से पार्टी के भीतर से सुखबीर के खिलाफ आवाज उठने लगी थी।
2022 के विधानसभा चुनावों में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद पार्टी के बागी नेताओं ने सुखबीर के खिलाफ आवाज उठाई।
इस साल जुलाई में अकाली दल से अलग होकर गुरप्रताप सिंह वडाला के नेतृत्व में अकाली दल सुधार लहर नाम से एक गुट का गठन किया गया था। अकाली दल सुधार लहर में शामिल वरिष्ठ शिअद नेता लंबे समय से सुखबीर के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं।
अकाल तख्त ने घोषित किया था 'तनखैया'
30 अगस्त को अकाल तख्त ने सुखबीर को 2007 से 2017 तक उपमुख्यमंत्री और पार्टी प्रमुख के रूप में की गई “गलतियों” और उनके द्वारा लिए गए उन फैसलों के लिए ‘तनखैया’ घोषित किया था, जिनसे “पंथ की छवि को गहरा नुकसान पहुंचा और सिख हितों को नुकसान पहुंचा”।
तब से सुखबीर राजनीतिक रूप से निष्क्रिय हैं। अक्टूबर में, जब उन्होंने आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के खिलाफ दो धरनों में भाग लिया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि सत्तारूढ़ पार्टी उम्मीदवारों को पंचायत चुनावों के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने की अनुमति नहीं दे रही है, तो सुधार लहर के नेताओं ने इस घटनाक्रम पर आपत्ति जताई थी।
बाद में, अकाल तख्त जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह ने भी स्पष्ट किया कि सुखबीर को तब तक किसी भी राजनीतिक गतिविधि में भाग लेने की अनुमति नहीं है, जब तक कि उनका ‘तनखैया’ दर्जा बरकरार है। हालांकि, अकाल तख्त जत्थेदार ने अभी तक सिख धार्मिक संहिता का उल्लंघन करने के लिए ‘तनख्वाह’ या सजा की घोषणा नहीं की है।
बीजेपी सरकार में रहे हैं मंत्री
सुखबीर ने 1996 में फरीदकोट से सांसद चुने जाने के बाद अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी। 1999 में वे सीट हार गए और 2001 में राज्यसभा सांसद के रूप में संसद गए, जहां उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के तहत केंद्रीय मंत्री के रूप में शपथ ली। 2004 में सुखबीर ने फिर से फरीदकोट लोकसभा सीट जीती। अगस्त 2009 में, उन्होंने जलालाबाद उपचुनाव जीतकर राज्य की राजनीति में प्रवेश किया और अगस्त 2009 से मार्च 2017 तक पंजाब के उपमुख्यमंत्री रहे। एसएडी अध्यक्ष के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान, एसएडी-भाजपा गठबंधन ने 2012 के चुनावों में जीत हासिल की।