परिसीमन का लोकसभा सीट से कनेक्शन क्या? क्यों टेंशन में हैं स्टालिन
राजनीति
• NEW DELHI 28 Feb 2025, (अपडेटेड 28 Feb 2025, 6:27 AM IST)
तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन का दावा है कि परिसीमन के बाद राज्य की 8 लोकसभा सीटें कम हो जाएंगी। हालांकि, गृह मंत्री अमित शाह ने इसे खारिज किया है। ऐसे में समझते हैं कि ये पूरा मामला क्या है?

तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन। (File Photo Credit: PTI)
हिंदी भाषा के बाद अब परिसीमन को लेकर तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने बड़ा दावा किया है। मुख्यमंत्री स्टालिन का दावा है कि अगर आबादी के आधार पर परिसीमन किया गया तो संसद में तमिलनाडु में लोकसभा की 8 सीटें कम हो जाएंगी। हालांकि, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने उनके दावे को खारिज करते हुए कहा कि किसी भी राज्य में एक भी सीट कम नहीं होगी।
क्या है स्टालिन की चिंता?
तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने 5 मार्च को सर्वदलीय बैठक बुलाई है। इस बैठक में न सिर्फ हिंदी बल्कि परिसीमन पर भी चर्चा होगी। स्टालिन का दावा है कि 'परिसीमन के नाम पर दक्षिणी राज्यों पर तलवार लटक रही है।' स्टालिन ने दावा करते हुए कहा, 'आबादी को कंट्रोल करने के लिए अच्छी तरह से फैमिली प्लानिंग लागू करने पर अब तमिलनाडु पर 8 सीटें गंवाने का खतरा मंडरा रहा है।'
अमित शाह ने क्या कहा?
गृह मंत्री अमित शाह ने स्टालिन के दावे को खारिज किया और कहा कि परिसीमन के बाद किसी भी राज्य में 'एक भी सीट' कम नहीं होगी। उन्होंने स्टालिन के दावों को 'झूठ का पुलिंदा' बताया। अमित शाह ने कहा, 'जब परिसीमन किया जाएगा तो तमिलनाडु समेत किसी भी दक्षिणी राज्य में एक भी सीट कम नहीं होगी। जब भी सीटें बढ़ेंगी तो दक्षिणी राज्यों को सही हिस्सेदारी मिलेगी।'
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परिसीमन पर बहस क्यों?
जनगणना के बाद परिसीमन होना है। किसी राज्य में कितनी लोकसभा या विधानसभा सीटें होंगी? इसे परिसीमन आयोग तय करता है। संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत, हर जनगणना के बाद परिसीमन आयोग का गठन किया जाएगा और लोकसभा-विधानसभा सीटों का परिसीमन होगा।
हालांकि, 1976 में इंदिरा गांधी की सरकार ने संविधान संशोधन कर परिसीमन को 2001 तक के लिए टाल दिया। तय किया गया कि 2001 तक 1971 की जनगणना के आधार पर ही लोकसभा सीटें होंगी। 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने फिर संशोधन किया और इस प्रक्रिया को 2026 तक बढ़ा दिया।
परिसीमन और लोकसभा सीटों का कनेक्शन क्या?
आजादी के बाद कई चुनावों तक परिसीमन के आधार पर लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ाई गई थीं। 1951 में जब पहली बार आम चुनाव हुए थे, तब लोकसभा में 489 सीटें थीं। 1971 तक ये सीटों की संख्या बढ़कर 543 हो गईं।
संविधान का अनुच्छेद 81 कहता है कि लोकसभा सांसदों की संख्या 550 से ज्यादा नहीं होगी। हालांकि, माना जाता है कि हर 10 लाख आबादी पर एक सांसद होना चाहिए। आखिरी बार जब 1971 की जनगणना के आधार पर लोकसभा सीटें बढ़ाई गई थीं तो इस बात का ध्यान रखा गया था। 1971 में 54.79 करोड़ आबादी थी। इसी आधार पर लोकसभा सीटों की संख्या 543 की गई थी।
हालांकि, संविधान में इस बात का जिक्र भी है कि लोकसभा सीटों की संख्या इस हिसाब से तय की जाएगी कि किसी भी राज्य के साथ बेइमानी न हो।
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तो दक्षिण को किस बात की चिंता?
चिंता इस बात की है कि आबादी के आधार पर लोकसभा सीटें बढ़ाई गईं तो दक्षिणी राज्यों का प्रतिनिधित्व कम हो सकता है। लोकसभा सीटों के परिसीमन पर रोक दक्षिणी राज्यों की चिंता की वजह से ही लगाई गई थी।
दरअसल, 70 के दशक में सरकार ने बढ़ती आबादी को थामने के लिए फैमिली प्लानिंग पर जोर दिया। दक्षिण के राज्यों ने तो इसे अच्छे से लागू कर आबादी नियंत्रित की मगर उत्तर के राज्यों में ऐसा नहीं हुआ। ऐसे में दक्षिणी राज्यों ने आवाज उठाई कि उन्होंने फैमिली प्लानिंग करके आबादी नियंत्रित की और उनके यहां ही सीटें कम हो जाएंगी। सीटें कम होने का मतलब संसद में प्रतिनिधित्व कम होना।
दक्षिण के राज्यों को इस बात की चिंता है कि उत्तर भारत में तो आबादी तेजी से बढ़ी है, इसलिए वहां परिसीमन के बाद सीटों की संख्या कहीं ज्यादा बढ़ सकती है। मगर दक्षिण में आबादी उत्तर की तुलना में कम है, इसलिए उनकी सीटें या तो घट सकती हैं या बढ़ेंगी भी तो बहुत ज्यादा नहीं।
हालांकि, 10 लाख वाला फॉर्मूला देखा जाए तो अभी देश की अनुमानित आबादी 140 करोड़ के आसपास है। इस हिसाब से लोकसभा की 1,400 सीटें हो सकती हैं। हालांकि, नए संसद भवन में लोकसभा चैम्बर में 888 सीटों की व्यवस्था की गई है।
अगर 10 लाख वाले फॉर्मूले को ही मानकर चलें तो उत्तर प्रदेश की आबादी 24 करोड़ के आसपास है। इस हिसाब से अकेले उत्तर प्रदेश में ही 240 सीटें हो सकती हैं। दूसरी ओर, तमिलनाडु की अनुमानित आबादी 7.70 करोड़ है। ऐसे में यहां लोकसभा सीटों की संख्या 77 तक पहुंच सकती है। हालांकि, ये सिर्फ अनुमान है।
हालांकि, हर राज्य की आबादी के आधार पर सीटों की संख्या तय होगी। जरूरी नहीं है कि 10 लाख वाला फॉर्मूला ही लागू किया जाए। हो सकता है कि किसी राज्य में 20 लाख आबादी पर एक सीट तो किसी में 10 लाख पर एक सीट का फॉर्मूला लाया जाए।
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क्या 2026 में हो जाएगा परिसीमन?
परिसीमन तभी होगा जब जनगणना होगी। आखिरी बार जब संशोधन कर परिसीमन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया गया था तो प्रावधान किया गया था कि 2026 के बाद जो पहली जनगणना होगी और उसके आंकड़े प्रकाशित हो जाएंगे, तभी परिसीमन किया जाएगा।
अभी तो 2021 की जनगणना ही नहीं हुई है। 2021 की जनगणना को होने में ही समय लगेगा। इसके बाद अगली जनगणना 2031 में होगी। इसका मतलब ये हुआ कि परिसीमन की प्रक्रिया भी 2031 के बाद ही शुरू होगी।
अभी कितनी आबादी पर है एक सांसद?
1971 में लगभग हर 10 लाख की आबादी पर एक लोकसभा सांसद होता था। अब लगभग 25 लाख की आबादी पर एक लोकसभा सांसद है। लोकसभा के 543 और राज्यसभा के 245 सांसदों को मिलाकर कुल 788 सांसद होते हैं। इस हिसाब से हर 17.76 लाख आबादी पर एक सांसद है।
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