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क्या थलपति को मिलेगी विजय? साउथ की सियासत और सिनेमा के कॉकेटल की कहानी

साउथ की राजनीति में एक और सुपरस्टार की एंट्री हो गई है। तमिल फिल्मों के सुपरस्टार कहे जाने वाले थलपति विजय अपनी पार्टी का सीएम चेहरा हो गए हैं।

thalapathy vijay

प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)

तमिलनाडु की सियासत में एक और सुपरस्टार की एंट्री हो गई है। एंट्री तो वैसे पिछले साल ही हो गई थी लेकिन अब उन्होंने खुद को अपनी पार्टी का मुख्यमंत्री चेहरा भी घोषित कर दिया है। यहां जिसकी बात हो रही है, उसका नाम थलपति विजय है। इन्हें 'सुपरस्टार विजय' भी कहा जाता है। विजय ने पिछले साल 'तमिलगा वेत्री कझगम' यानी TVK नाम से पार्टी लॉन्च की थी।

 

सुपरस्टार विजय की पार्टी अगले साल होने वाले तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में उतरेगी। इस चुनाव में पार्टी का मुख्यमंत्री चेहरा विजय ही होंगे।

 

हाल ही में TVK की एक्जीक्यूटिव कमेटी की मीटिंग हुई थी। इस मीटिंग में प्रस्ताव पास किया गया है कि तमिलनाडु चुनाव में विजय ही पार्टी का सीएम चेहरा होंगे।

'DMK या BJP से गठबंधन नहीं करेंगे'

सिनेमा से अब सियासी पर्दे पर उतरने जा रहे विजय ने साफ किया है कि उनकी पार्टी तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में किसी से गठबंधन नहीं करेगी।

 

विजय ने कहा, 'हम DMK या AIADMK जैसे नहीं हैं, जो राजनीतिक फायदे के लिए बीजेपी से गठबंधन कर लेंगे। हम TVK हैं।' बीजेपी पर आरोप लगाते हुए विजय ने कहा, 'केंद्र की सरकार सस्ती राजनीति और राजनीतिक फायदे के लिए लोगों को सांप्रदायिक आधार पर बांटने की कोशिश कर रही है।' उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि 'उनकी यह ओछी राजनीति कहीं और चल सकती है लेकिन तमिलनाडु में काम नहीं करेगी। तमिलनाडु एक ऐसी धरती है, जहां भाईचारे की जड़ें गहरी हैं।'

 

विजय की पार्टी ने जो प्रस्ताव पास किया है, उसमें लिखा है कि उनकी पार्टी सिर्फ ऐसी पार्टियों से ही गठबंधन करेगी जो DMK, AIADMK या बीजेपी के खेमे में नहीं होगी।

 

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तमिलनाडु में स्टार ही बने CM

तमिलनाडु की सियासत में यहां की सिनेमा हावी रही है। छह दशक से ज्यादा हो गया है, जब यहां के मुख्यमंत्री का नाता तमिल सिनेमा रहा है। अन्नादुरई, करुणानिधि, एमजीआर, जयललिता और यहां तक कि मौजूदा मुख्यमंत्री एमके स्टालिन भी तमिल सिनेमा से जुड़े रहे हैं।

 

अन्नादुरई तमिल सिनेमा में स्क्रिप्ट राइटर्स थे। उनकी फिल्मों में तमिल राष्ट्रवाद दिखाई पड़ता था। पेरियार से मतभेद के कारण उन्होंने तमिल राष्ट्रवाद का नारा देते हुए द्रमुक यानी DMK बनाई। साल 1967 के चुनाव में द्रमुक ने 234 में से 138 सीटें जीतीं और पहली बार तमिलनाडु में पार्टी की सरकार बनी। आजाद भारत के इतिहास में यह पहली बार था जब कोई रीजनल पार्टी सत्ता में आई थी।

 

अन्नादुरई के बाद द्रमुक की कमान संभालने वाले एम. करुणानिधि भी फिल्मों से जुड़े हुए थे। करुणानिधि चार बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने।

 

वहीं, अन्नादुरई से मतभेद के कारण एमजी. रामचंद्रन ने अन्नाद्रमुक (AIADMK) बनाई। एमजीआर 1977 से 1987 तक मुख्यमंत्री रहे। उनके बाद पार्टी की कमान संभालने वालीं जयललिता भी तमिल एक्ट्रेस थीं। जयललिता 5 बार तमिलनाडु की सीएम बनी थीं।

 

तमिलनाडु के मौजूदा मुख्यमंत्री एमके स्टालिन भी 1980 और 90 के दशक में कई तमिल फिल्मों में काम कर चुके हैं। उनके बेटे और DMK सरकार में मंत्री उदयानिधि स्टालिन भी फिल्मों में एक्टिंग कर चुके हैं।

 

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विजय की एंट्री से बढ़ी मुश्किल!

तमिल सिनेमा में विजय सुपरस्टार हैं। उनकी ज्यादातर फिल्में सुपरहिट होती हैं। ऐसे में अब उन्होंने राजनीति में उतरने का फैसला लिया है।

 

पिछले साल 27 अक्टूबर को विजय की पार्टी की पहली रैली हुई थी। दावा था कि इस रैली में एक लाख से ज्यादा लोग शामिल हुए थे। पहली रैली को संबोधित करते हुए ही विजय ने साफ कर दिया था कि उनकी पार्टी किसी से गठबंधन नहीं करेगी। उसी रैली में विजय ने 2026 का चुनाव लड़ने का ऐलान किया था।

 

विजय की एंट्री ने तमिलनाडु के चुनाव को दिलचस्प बना दिया है। विजय की एंट्री से पहले तक तमिलनाडु में द्रमुक (DMK) और अन्नाद्रुमक (AIADMK) के बीच ही अहम मुकाबला माना जा रहा था। यहीं पार्टियां यहां सत्ता और विपक्ष में रहती हैं। बीजेपी का अन्नाद्रमुक और कांग्रेस का द्रमुक से गठबंधन है। हालांकि, विजय की एंट्री दोनों के लिए थोड़ी मुश्किल जरूर खड़ी कर सकती है।

 

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लेकिन सबको सब नहीं मिलता!

तमिलनाडु की जनता को 'सिनेमा और सियासत का कॉकटेल' पसंद तो आता है लेकिन सारे फिल्मी सितारों की सियासी किस्मत चमके, यह जरूरी नहीं है।

 

साल 2005 में 150 से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुके तमिल सुपरस्टार विजयकांत ने भी सियासी पर्दे पर किस्मत आजमाई। उन्होंने 2006 में अपनी पार्टी देसिया मुरपोक्कु द्रविड़ कझगम (DMDK) बनाई। इसने उसी साल पहला विधानसभा चुनाव लड़ा। पार्टी ने सभी 234 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन जीती सिर्फ एक। हालांकि, पार्टी को 8 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे। 2011 में विजयकांत की DMDK ने अन्नाद्रमुक और बीजेपी के साथ मिलकर गठबंधन में चुनाव लड़ा। पार्टी ने 41 सीटों पर चुनाव लड़ा और 29 सीटें जीत लीं।

 

2016 और 2021 के चुनाव में पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ा और एक भी सीट नहीं जीत सकी। 2011 में पार्टी का वोट शेयर 7.8% था, जो 2011 में घटकर 2.39% और फिर 2021 में 0.43% पर आ गया।

 

इसी तरह कमल हासन भी सियासत में किस्मत आजमा चुके हैं। उन्होंने 2018 में मक्कल निधि मय्यम (MKM) नाम से अपनी पार्टी बनाई थी। उनकी पार्टी ने 2021 के चुनाव में 180 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन एक भी नहीं जीती। कमल हासन ने भी कोयंबटूर सीट से चुनाव लड़ा लेकिन बीजेपी उम्मीदवार से हार गए।

 

इनके अलावा, साउथ के सबसे बड़े स्टार माने जाने वाले रजनीकांत भी राजनीति में किस्मत आजमा चुके हैं। उन्होंने 2021 का चुनाव लड़ने का ऐलान किया था लेकिन बाद में खराब तबियत के चलते सियासत से दूरी बना ली।

 

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साउथ में सिनेमा और सियासत का कॉकटेल

साउथ के फिल्मी सितारे सिर्फ फिल्म ही नहीं, बल्कि सियासत में भी खूब चमकते हैं। 60 और 70 के दशक में साउथ में जो फिल्में बनाई जाती थीं, उनमें छुआछूत, जाति प्रथा जैसी कुप्रथाओं को प्रमुखता से पर्दे पर दिखाया जाता था। इससे जनता से फिल्मी सितारों का सीधा कनेक्शन बन जाता था।

 

तमिलनाडु की ज्यादातर फिल्मों में 'अन्ना' नाम का किरदार होता था, जो बहुत समझदार और तार्किक होता था। अन्ना को तमिल में बड़ा भाई कहा जाता है। ऐसे में जब 60 के दशक में तमिलनाडु में अन्नादुरई रैलियां करते थे तो उन्हें सुनने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती थी। इसी तरह जयललिता ने अपना जो पहला गाना गाया था, उसके बोल 'अम्मा का प्यार' थे। इसलिए जयललिता को लोग अम्मा कहकर भी बुलाते थे।

 

इसका एक उदाहरण एनटी रामा राव भी हैं। उन्होंने अपनी ज्यादातर फिल्मों में पौराणिक कहानियों का किरदार निभाया है। यही उनकी पहचान बन गया। एनटीआर ने ही तेलुगु देशम पार्टी (TDP) बनाई थी। 1983 के विधानसभा चुनाव से कुछ महीनों पहले ही TDP बनी थी। उन्होंने जमकर प्रचार किया। इस चुनाव में TDP ने 294 में से 201 सीटें जीत लीं। कांग्रेस 60 सीटों पर सिमट गए और एनटीआर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

 

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पवन कल्याण जैसे चमकेंगे विजय?

तेलुगु सुपरस्टार चिरंजीवी ने भी 2009 में प्रजा राज्यम पार्टी नाम से अपनी पार्टी बनाई। आंध्र प्रदेश के 2009 के चुनाव में उनकी पार्टी ने 18 सीटें भी जीतीं। सभी 294 सीटों पर उनकी पार्टी ने चुनाव जीता था और इनमें से 235 सीटें ऐसी थीं, जहां पार्टी को 10 हजार से ज्यादा वोट मिले थे। हालांकि, बाद में उनकी पार्टी का कांग्रेस में विलय हो गया और चिरंजीवी ने सियासत से दूरी बना ली।

 

पवन कल्याण और सीएम चंद्रबाबू नायडू। (Photo Credit: PTI)

 

बाद में उनकी राजनीतिक विरासत को उनके भाई पवन कल्याण ने संभाला। पवन कल्याण ने 2014 में जन सेना पार्टी बनाई। उनकी पार्टी ने 2014 और 2019 में आंध्र का चुनाव भी लड़ा लेकिन उनकी पार्टी कुछ खास कमाल नहीं कर सकी।

 

तेलंगाना में पिछले साल का विधानसभा चुनाव पवन कल्याण ने बीजेपी और TDP के साथ मिलकर लड़ा। इस चुनाव में उनकी पार्टी ने 21 सीटों पर जीत दर्ज की। और तो और गठबंधन सरकार में पवन कल्याण डिप्टी सीएम भी हैं।

 

अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या पवन कल्याण की तरह ही थलपति विजय भी किसी गठबंधन के साथ जुड़ते हैं और सरकार में शामिल होते हैं? हालांकि, माना जा रहा है कि थलपति विजय की पार्टी अगले चुनाव में 'किंगमेकर' की भूमिका में आ सकती है।

 

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