1951 से 2020 तक: बिहार में कांग्रेस के उदय और अस्त की कहानी
राजनीति
• PATNA 12 Jul 2025, (अपडेटेड 16 Jul 2025, 12:50 PM IST)
1990 के बाद से कांग्रेस अपने दम पर बिहार में आज तक अपनी सरकार नहीं बना पाई है। 2015 में महागठबंधन के साथ चुनाव जरूर जीती। मगर यह सरकार कुछ दिनों तक ही चली। बिहार में पार्टी वह करिश्मा आज तक नहीं कर पाई, जो 1990 से पहले किया करती थी।

बिहार में कांग्रेस का सियासी प्रदर्शन। (AI Generated Image)
1951 से 1967 तक कांग्रेस का बिहार में एक छत्र राज रहा। मगर 1967 में उसकी सियासी धमक कमजोर पड़ी और बिहार को पहली गैर-कांग्रेसी सरकार मिली, लेकिन यह ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी। 1968 में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की। उसकी भी सरकार अधिक नहीं टिकी। इसी साल कांग्रेस (ओ) के नेता भोला पासवान शास्त्री पहली बार बिहार के सीएम बने। 1969 से 1970 तक बिहार में दो बार राष्ट्रपति शासन लगा। 1968 से 70 तक कांग्रेस ने चार और कांग्रेस (ओ) ने तीन बार सीएम बनाने में कामयाबी हासिल की। मगर सत्ता की डगर ज्यादा दूर नहीं जा सकी। 1970 से 72 तक कांग्रेस ने दो बार और सोशलिस्ट पार्टी ने एक बार सरकार बनाई।
1972 से 1990 तक कांग्रेस ने नौ और जनता पार्टी ने दो बार सरकार का गठन किया। 1990 में पहली बार लालू प्रसाद यादव बिहार के सीएम बने। बिहार में लालू यादव के उदय के साथ ही कांग्रेस का सियासी सूर्य अस्त होने लगा। 1990 के बाद से आज तक कांग्रेस कभी बिहार की सत्ता में सीधे तौर पर काबिज नहीं हो सकी। पहले लालू और बाद में नीतीश के करिश्मा के आगे कभी देश की सबसे बड़ी सियासी पार्टी रही कांग्रेस बिहार में सिर्फ राजद की सहयोगी बनकर रह गई। बिहार को 18 सीएम देने वाली पार्टी पिछले 35 साल से सबसे बड़े सियासी अकाल से जूझ रही है। आज कहानी 1951 से 2020 तक बिहार की सियासत में कांग्रेस के उदय और अस्त की।
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1951 विधानसभा चुनाव
साल 1951 में बिहार में पहला विधानसभा चुनाव हुआ। कांग्रेस ने 322 सीटों पर चुनाव लड़ा। पार्टी अकेले 239 सीटों पर जीती। उसे कुल 42.15 फीसदी मत मिले। सिर्फ छह सीटों पर पार्टी को अपनी जमानत गंवानी पड़ी थी। इस चुनाव में 11 राष्ट्रीय पार्टी समेत कुल 16 दलों ने चुनाव लड़ा था। कृष्णा सिंह बिहार के मुख्यमंत्री बने।
1957 विधानसभा चुनाव
बिहार के दूसरे विधानसभा चुनाव में चार राष्ट्रीय दलों समेत कुल 6 दलों ने किस्मत आजमाई। 312 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस को 210 सीटों पर जीत मिली और बहुमत से दूसरी बार सरकार बनी। कृष्ण सिंह को फिर मुख्यमंत्री बनाया गया। इस चुनाव में कांग्रेस को पिछले चुनाव की तुलना में 42.56 फीसदी मत मिले। पार्टी की छह सीटों पर जमानत जब्त हुई।
1962 विधानसभा चुनाव
1962 में कांग्रेस तीसरी बार बिहार की सत्ता पर काबिज हुई। पार्टी ने 318 सीटों पर चुनाव लड़ा और बहुमत का आंकड़ा पाने में सफल रही। उसे कुल 185 सीटों पर जीत मिली। मगर 10 सीटों पर पार्टी के प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा सके। इस चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर घटकर 41.35 फीसदी तक पहुंच गया। चुनाव में छह राष्ट्रीय दलों समेत कुल 9 दलों ने चुनाव लड़ा। कांग्रेस के बाद सबसे अधिक 50 सीटों पर स्वतंत्र पार्टी को जीत मिली। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को 29 सीटों पर कामयाबी मिली। झारखंड पार्टी 20 सीटों पर जीती।।
1967 विधानसभा चुनाव
1967 के विधानसभा चुनाव बिहार की सियासत में एक अलग अध्याय साबित हुए। इस साल बिहार को पहली गैर-कांग्रेसी सरकार मिली। 8 राष्ट्रीय दलों समेत कुल 9 पर्टियों ने चुनाव लड़ा। सभी 318 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस बहुमत से दूर रही। उसे 128 सीटों पर जीत मिली। 30 सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई। कांग्रेस के बाद सबसे अधिक 68 सीटों पर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने जीत दर्ज की। कांग्रेस को कुल 33.09 फीसदी वोट मिले।
महामाया प्रसाद बने पहले गैर-कांग्रेसी सीएम
कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी। महेश प्रसाद को विधायक दल का नेता चुना गया। मगर राज्यपाल ने सरकार बनाने का न्योता नहीं भेजा। सीपीआई, जनसंघ, जन क्रांति दल, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और प्रजा समाजवादी ने मिलकर सरकार बनाई। जन क्रांति पार्टी के महामाया प्रसाद सिन्हा को सीएम बनाया गया। वे पहले गैर-कांग्रेस सीएम बने।
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28 जनवरी 1968 में महामाया की सरकार गिर गई। इसी दिन कांग्रेस के सतीश प्रसाद सिंह सीएम बने। चार दिन बाद उनकी जगह एक फरवरी को कांग्रेस के ही बीपी मडंल ने शपथ ली। एक महीने में उनकी भी सरकार 2 मार्च 1968 को गिर गई। 22 मार्च 1968 को पहली बार कांग्रेस (ओ) के भोला पासवान शास्त्री सीएम बने। तीन महीने बाद उनकी भी सरकार 29 जून 1968 को धराशायी हो गई। इसी दिन बिहार में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगा।
1969 विधानसभा चुनाव
1969 विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला। पार्टी ने 318 सीटों पर चुनाव लड़ा। मगर सिर्फ 118 पर ही जीत सकी। 42 सीटों पर कांग्रेस को जमानत गंवानी पड़ी। पार्टी का वोट शेयर गिरता गया। कुल 30.46 फीसदी मत ही मिले। चुनाव में 7 राष्ट्रीय पार्टी समेत कुल 21 दलों ने चुनाव लड़ा था। कांग्रेस के बाद सबसे अधिक 56 सीटों पर जीत संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी को मिली। भारतीय जनसंघ को सिर्फ 34 सीटें मिलीं।
1972 विधानसभा चुनाव
- कांग्रेस ने 259 सीटों पर चुनाव लड़ा।
- पार्टी को 167 सीटों पर जीत मिली।
- 12 सीटों पर जमानत जब्त हुई।
- कांग्रेस को 41.42 फीसदी वोट मिले।
इस चुनाव में भारतीय जनसंघ को 25 और कम्युनिष्ट पार्टी ऑफ इंडिया को 35 सीटों पर जीत मिली। इंडियन नेशलन कांग्रेस (ओ) ने 30 और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने 33 सीटों पर कब्जा किया।
1977 विधानसभा चुनाव
- कांग्रेस 286 सीटों पर चुनाव लड़ी।
- सिर्फ 57 सीटों पर ही जीत मिली।
- कांग्रेस को 80 सीटों पर जमानत गंवानी पड़ी।
- 23.6 फीसदी वोट शेयर मिला।
जनता पार्टी की आंधी में कांग्रेस उड़ गई। जनता पार्टी ने 311 सीटों पर चुनाव लड़ा और 214 सीटों पर जीत दर्ज की। 10 सीटों पर ही पार्टी की जमानत जब्त हुई। कांग्रेस को अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। सीपीआई के खाते में सिर्फ 21 सीटें आईं। चुनाव में चार राष्ट्रीय दलों समेत कुल 14 दल मैदान में थे।
1980 विधानसभा चुनाव
- 10 नेशनल पार्टी समेत कुल 10 पर्टियां चुनाव मैदान में थी। पहली बार भाजपा बिहार के सियासी समर में उतरी।
- 1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के दो धड़े हो चुके थे।
- कांग्रेस (आई) ने 311 सीटों पर चुनाव लड़ा। 169 सीटों पर जीत मिली। 30 सीटों पर जमानत जब्त हुई। 34.2 फीसदी वोट मिले।
- कांग्रेस के बाद सर्वाधिक 42 सीटों पर जनता पार्टी (सेक्युलर) को जीत मिली।
- सीपीआई के खाते में 23 सीटें आईं। कांग्रेस के दूसरे धड़े कांग्रेस (यू) के खाते में सिर्फ 14 सीटें आईं। पार्टी ने 185 सीटों पर चुनाव लड़ा। इनमें से 139 सीटों पर जमानत जब्त हुई।
- भाजपा 246 सीटों पर चुनाव लड़ी। सिर्फ 21 सीटों पर जीत मिली। 173 सीटों पर पार्टी को जमानत गंवानी पड़ी। पहले चुनाव में भाजपा को सिर्फ 8.4 फीसदी वोट मिले थे।
1985 विधानसभा चुनाव
- सात राष्ट्रीय दल समेत कुल 12 पर्टियों ने चुनाव में हिस्सा लिया।
- कांग्रेस ने 323 सीटों पर चुनाव लड़ा। 196 सीटों पर जीत मिली। 16 सीटों पर जमानत जब्त हुई। 39.3 फीसदी मत मिले।
- भाजपा ने 234 सीटों पर प्रत्याशी उतारे। सिर्फ 16 सीटें जीतीं। 172 में जमानत गंवानी पड़ी। 7.5 फीसदी वोट मिले।
- कांग्रेस के बाद सबसे अधिक 46 सीटों पर लोकदल (एलकेडी) को जीत मिली।
- बहुमत से कांग्रेस की सरकार बनी।
1990 विधानसभा चुनाव
1990 विधानसभा चुनाव के बाद बिहार में कांग्रेस का उदय नहीं हो सका। इस चुनाव में 8 राष्ट्रीय पार्टी समेत 45 दल मैदान में थे। कांग्रेस ने 323 सीटों पर चुनाव लड़ा। सिर्फ 71 सीटों पर जीत मिली। 103 सीटों पर पार्टी की जमानत जब्त हुई। 24.8 फीसदी वोट मिले। पार्टी को अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। 122 सीटों पर चुनाव जीतकर जनता दल सबसे बड़ी सियासी पार्टी बनी। लालू प्रसाद यादव पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। भाजपा ने कुल 237 सीटों पर चुनाव लड़ा था। मगर जीत सिर्फ 39 सीटों पर मिली।
1995 विधानसभा चुनाव
1995 के चुनाव में भी जनता दल का जलबा कायम रहा। पार्टी ने कुल 264 सीटों पर चुनाव लड़ा और कुल 167 सीटों पर जीत हासिल की। जनता दल लेफ्ट गठबंधन को कुल 192 सीटों पर कामयाबी मिली। कांग्रेस को अपने सबसे बुरे दौर से गुजरना पड़ा। पार्टी ने 320 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन जीत सिर्फ 29 पर ही मिली। बता दें कि इस चुनाव में जितनी सीटों पर जनता दल ने चुनाव जीता था, कांग्रेस को उतनी ही सीटों पर अपनी जमानत गंवानी पड़ी। मतलब पार्टी 167 सीटों पर जमानत नहीं बचा पाई। पार्टी को कुल 16.3 फीसदी वोट मिले। यह पहला चुनाव था, जब बीजेपी विधायकों की संख्या कांग्रेस से अधिक हो गई थी। पार्टी ने कुल 315 सीटों पर चुनाव लड़ा और 41 सीटों पर जीत हासिल की। 208 सीटों पर जमानत जब्त हुई। उसे कुल 13.4 फीसदी मत मिले।
2000 विधानसभा चुनाव
5 जुलाई 1997 में लालू प्रसाद यादव ने जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का गठन किया। 2000 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी का करिश्मा खूब चला। 124 सीटों के साथ आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। पार्टी ने 293 सीटों पर चुनाव लड़ा था। 65 सीटों पर जमानत जब्त हुई थी। वोट शेयर की बात करें तो उसे 28.3 फीसदी मत मिले। नीतीश कुमार महज 7 सात दिन के लिए पहली बार सीएम बने। बाद में राबड़ी देवी के नेतृत्व में आरजेडी की सरकार बनी और 2005 तक चली।
चुनाव में 8 राष्ट्रीय पार्टी समेत कुल 51 दलों ने चुनाव लड़ा। मगर खाता सिर्फ 13 का ही खुला। 20 सीटों पर निर्दलीयों का जलवा कायम रहा। कांग्रेस ने सभी 324 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन सिर्फ 23 सीटों पर जीत मिली। आजादी के बाद यह दूसरी बार था जब कांग्रेस 30 के भीतर ही सिमट गई। कांग्रेस प्रत्याशी 231 सीटों पर अपनी जमानत नहीं बचा सके। पार्टी का वोट शेयर भी घटकर 11.1 फीसदी पहुंच गया।
भाजपा ने 168 सीटों पर चुनाव लड़ा। उसे 67 सीटों पर जीत मिली। यह पहला चुनाव था, जब बिहार में भाजपा ने 50 का आंकड़ा पार किया और कांग्रेस की तुलना में उसके विधायकों की संख्या सदन में दोगुनी से ज्यादा हो गई थी। पार्टी को 33 सीटों पर भले ही जमानत गंवानी पड़ी, लेकिन उसका वोट शेयर 14.6 फीसदी तक पहुंच गया। जेडीयू को 21 सीटों पर जीत मिली।
2005 विधानसभा चुनाव (फरवरी)
- छह नेशल पार्टी समेत कुल 65 दलों ने चुनाव लड़ा।
- बिहार में पहली बार कांग्रेस साल 2005 में 100 से कम सीटों पर चुनाव लड़ी। 84 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस को सिर्फ 10 सीटों पर जीत मिली।
- 58 सीटों पर जमानत जब्त हुई। 14.43 फीसदी मत मिले।
- भाजपा कुल 103 सीटों पर चुनाव लड़ी। 37 सीटों पर जीत और 34 में जमानत गंवानी पड़ी। 11 फीसदी वोट मिले।
- जेडीयू 138 सीटों पर चुनाव लड़ी। 55 सीटों पर चुनाव जीता। 39 सीटों पर जमानत गई। 14.6 फीसदी मत मिले।
- सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी बनी। 215 सीटों पर चुनाव लड़ा। 75 सीटों पर जीत हासिल की। 29 सीटों पर जमानत जब्त हुई। 25.1 फीसदी मत मिले।
- किसी को बहुमत नहीं मिलने पर राष्ट्रपति शासन लगा।
2005 विधानसभा चुनाव (नवंबर)
2005 में एक साल में दूसरी बार बिहार की जनता को चुनाव का सामना करना पड़ा। कांग्रेस ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। सिर्फ 51 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतरने वाली कांग्रेस को 9 सीटों पर जीत मिली। पार्टी प्रत्याशियों को 5 सीटों पर जमानत गंवानी पड़ी। आजादी के बाद यह पहला चुनाव था, जब कांग्रेस दहाई के आंकड़े तक को नहीं छू पाई। इस चुनाव में कांग्रेस को जीतनी सीटों पर जीत मिली थी, भाजपा को उतनी ही सीटों पर यानी 9 विधानसभा क्षेत्रों में अपनी जमानत गंवानी पड़ी थी।
खास बात यह है कि भाजपा की सहयोगी जेडीयू की भी 9 सीटों पर ही जमानत जब्त हुई थी। इस चुनाव में छह राष्ट्रीय पार्टी समेत कुल 58 दलों ने चुनाव लड़ा। जेडीयू ने 139 सीटों पर चुनाव लड़ा और कुल 88 सीटों पर जीत हासिल की और भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई। नीतीश कुमार ने दूसरी बार सीएम पद की शपथ ली।
- आरजेडी ने 175 सीटों पर चुनाव लड़ा। 54 सीटों पर जीती। 8 सीटों पर जमानत जब्त हुई।
- 203 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली एलजेपी के खाते में सिर्फ 10 सीटें आईं।
2010 विधानसभा चुनाव
2010 विधानसभा चुनाव के परिणाम एकदम करिश्माई थे। छह राष्ट्रीय दलों समेत कुल 90 पर्टियों ने चुनाव लड़ा। इस चुनाव में सबसे बुरी हालत कांग्रेस की हुई। उसने अकेले दम पर सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ा। पार्टी सिर्फ 4 सीटों पर ही जीती। उसे 216 सीटों पर जमानत गंवानी पड़ी। पहली बार पार्टी का वोट शेयर भी दहाई के नीचे आ पहुंचा। उसे सिर्फ 8.4 फीसदी मत मिले। यह बिहार के इतिहास में कांग्रेस का सबसे खराब प्रदर्शन था।
- भाजपा ने 102 सीटों पर चुनाव लड़ा और 91 सीटों पर जीत हासिल की। 2 सीटों पर पार्टी की जमानत जब्त हुई। 16.5 फीसदी मत मिले।
- भाजपा की सहयोगी जेडीयू ने 141 सीटों में से 115 पर जीत हासिल की। एक सीट पर जमानत गंवानी पड़ी। 22.6 फीसदी मत मिले।
- आरजेडी ने 168 सीटों पर चुनाव लड़ा। 22 सीटों पर जीती और 23 पर जमानत गंवानी पड़ी। 18.8 फीसदी मत मिले।
- आरजेडी ने एलजेपी के साथ यह चुनाव लड़ा था। 75 सीटों में से एलजेपी को सिर्फ तीन सीटों पर ही जीत मिली।
2015 विधानसभा चुनाव
2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने आरजेडी और नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के साथ मिलकर महागठबंधन के तहत चुनाव लड़ा। आजाद भारत के इतिहास में पहली बार कांग्रेस ने बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में सबसे कम सिर्फ 41 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। उसकी सहयोगी पार्टी आरजेडी ने 101 सीटों पर चुनाव लड़ा। कांग्रेस को 27 और आरजेडी को 80 सीटों पर जीत मिली। सहयोगी जेडीयू 71 सीटों पर जीती। भाजपा के खिलाफ बना आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस का महागठबंधन 178 के आंकड़े तक पहुंच गया।
2017 तक नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार चली। बाद में नीतीश कुमार ने महागठबंधन से नाता तोड़कर 53 सीटें जीतने वाली भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई। कांग्रेस 2015 में सरकार में जरूर शामिल हुई, लेकिन अपने दम पर कोई खास करिश्मा नहीं दिखा पाई। उसे सिर्फ 6.8 फीसदी मत ही मिले।
- यह पहला चुनाव था जब कांग्रेस और आरजेडी के किसी भी प्रत्याशी की जमानत जब्त नहीं हुई। दूसरी तरफ भाजपा के एक प्रत्याशी को जमानत गंवानी पड़ी। जेडीयू के सभी प्रत्याशी जमानत बचाने में कामयाब रहे। 42 सीटों पर एलजेपी ने चुनाव लड़ा। मगर जीत 2 पर मिली थी।
2020 विधानसभा चुनाव
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में कांग्रेस ने 70 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। सिर्फ 19 सीटों पर जीत मिली। चार की जमानत जब्त हुई। 9.6 फीसदी मत मिले। कांग्रेस के साथ महागठबंधन का हिस्सा आरजेडी ने 144 सीटों पर चुनाव लड़ा। 75 सीटों पर जीत मिली और विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनी। उसे कुल 23.5 फीसदी वोट मिले। आरजेडी और कांग्रेस नेतृत्व वाले गठबंधन को कुल 110 सीटें मिलीं। वहीं भाजपा नेतृत्व वाला एनडीए 125 सीटें जीतने पर सफल रहा।
भाजपा ने कुल 110 सीटों पर चुनाव लड़ा। 74 सीटों पर जीत मिली। आरजेडी के बाद विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनी। तीन प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई और पार्टी को कुल 19.8 फीसदी मत मिले। जेडीयू ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा। मगर उसका प्रदर्शन भाजपा की तरह नहीं रहा। उसे सिर्फ 43 सीटों पर जीत मिली। 5 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई। उसे 15.7 फीसदी वोट मिले।
पहले भाजपा के साथ नीतीश कुमार ने सरकार बनाई। बाद में 2022 में आरजेडी के साथ सरकार बनाई। मगर कुछ समय बाद ही नीतीश कुमार ने एक बार फिर पाला बदला और भाजपा के साथ अब सरकार चला रहे हैं।
अमेजिंग फैक्ट
- साल 1995 के विधानसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस बिहार में 30 विधायकों का आंकड़ा नहीं पार कर सकी।
- कांग्रेस आखिरी बार 2010 विधानसभा चुनाव में बिहार की सभी सीटों पर चुनाव लड़ी थी। मगर जीत सिर्फ 4 पर मिली थी।
- 1667 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पहली बार बहुमत के आंकड़े से दूर रहना पड़ा। इसी साल बिहार को पहला गैर-कांग्रेसी सीएम मिला।
- बिहार में पहली बार 29 जून 1968 से 26 फरवरी 1969 तक राष्ट्रपति शासन लगा। बिहार में कुल 8 बार राष्ट्रपति शासन लग चुका है।
- बिहार में आखिरी बार राष्ट्रपति शासन 2005 में लगा था।
- गजब तथ्य है कि बिहार में तीन बार राष्ट्रपति शासन भोला पासवान शास्त्री की सरकार और दो बार राबड़ी देवी की सरकार गिरने के बाद लगा।
- दिसंबर 1989 में आखिरी बार कांग्रेस के सीएम के तौर पर जगन्नाथ मिश्रा ने सेवा की। वह 10 मार्च 1090 तक सीएम रहे। इसके बाद से आज तक बिहार में कांग्रेस का कोई सीएम नहीं बना है।
- बिहार को कुल 18 सीएम देने वाली कांग्रेस को पिछले 35 साल से अपने सीएम का इंतजार है।
विधानसभा चुनाव | मिले मत प्रतिशत |
1951 | 42.15 |
1957 | 42.56 |
1962 | 41.35 |
1967 | 33.09 |
1969 | 30.46 |
1972 | 41.42 |
1977 |
23.6 |
1980 |
34.2 |
1985 |
39.3 |
1990 |
24.8 |
1995 |
16.3 |
2000 |
11.1 |
2005 |
6.1 |
2010 |
8.4 |
2015 |
6.8 |
2020 |
9.6 |
नोट: आंकड़े भारत निर्वाचन आयोग और इंडिया वोट्स से लिए गए हैं।
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