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3 वजहें जिनके चलते फडणवीस को 'न' नहीं कह सका केंद्रीय नेतृत्व

महाराष्ट्र की सियासत में कई दिनों से चला आ रहा सस्पेंस अब जाकर खत्म हुआ है। आखिर देवेंद्र फडणवीस की ऐसी कौन सी काबिलियत थी, जिनकी वजह से उन्हें एक बार फिर मुख्यमंत्री बनाया गया है, आइए विस्तार से समझते हैं।

Devendra Fadanvis

निर्मला सीतारमण, विजय रूपाणी और देवेंद्र फडणवीस (तस्वीर-PTI)

महाराष्ट्र में लंबे चले शह और मात खेल के बाद बाजी देवेंद्र फडणवीस के हाथ में आ गई है। अब कौन सा मोहरा कितने कदम चलेगा अब ये देवेंद्र फडणवीस तय करेंगे। फडणवीस के नजरिए, नम्रता और नेतृत्व क्षमता के आगे गठबंधन के घटक दल भी नतमस्तक हो गए हैं। केंद्रीय नेतृत्व को देवेंद्र फडणवीस को ये तीनों खूबियां भा गईं, जिनके चलते उनकी काबिलियत को नकार पाना भारतीय जनता पार्टी के लिए मुश्किल था। 
 
देवेंद्र फडणवीस पर केंद्रीय नेतृत्व से लेकर राज्य नेतृत्व तक बहुमत से सहमत नजर आया। विधायक दल की बैठक में भी किसी ने उनके नाम पर ऐतराज नहीं जताया। बीजेपी ने पहली बार विधायक दल की बैठक में कैमरों की इजाजत दी और सब कुछ सार्वजनिक तरीके से हुआ। 

देशभर की नजरें विधायक दल की बैठक पर टिकी थीं और वहां वही हुआ, जिसकी अटकलें लगाई जा रही थीं। महाराष्ट्र के केंद्रीय पर्यवेक्षक विजय रूपाणी ने विधायक दल की बैठक में कहा कि देवेंद्र फडणवीस ही विधायक दल के नेता होंगे और महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री होंगे। अब सवाल ये उठ रहे हैं कि आखिर उन्हें ही क्यों यह जिम्मेदारी दी गई है।

वजह बेहद दिलचस्प है। महाराष्ट्र की राजनीति समझने वाले राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि देवेंद्र फडणवीस को यह जिम्मेदारी बीजेपी ने तीसरी बार सिर्फ इसलिए सौंपी है क्योंकि केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें बार-बार परखा है और हर परीक्षा में वह सफल रहे हैं। विश्लेषण में तीन बातें निकलकर सामने आईं, जिनकी वजह से देवेंद्र फडणवीस ने उन पर भरोसा किया। ये तीन बातें हैं- नम्रता, नजरिया और नेतृत्व। कैसे, आइए समझते हैं। 

1. नजरिया
सियासत में नेताओं को पद लुभाता रहा है। यह आदिकाल से होता आया है। उद्धव ठाकरे के आलोचक कहते हैं कि बाला साहेब ठाकरे के सियासी वारिस ने अपनी 'शिवसेना'ही पद के लोभ में गंवा दी। उनके आलोचक कहते हैं कि पद की लालच में उद्धव ठाकरे ने पिता की विचारधारा तक से समझौता कर लिया। देवेंद्र फडणवीस पास नजरिया था। उन्हें पता था कि कट्टर हिंदुत्व की पोषक पार्टी कही जाने वाली शिवसेना को उद्धव ठाकरे का सेक्युलर रूप रास नहीं आएगा।

देवेंद्र फडणवीस ने एकनाथ शिंदे से मुलाकात की, उन्हें भरोसे में लिया। नतीजा सबके सामने है। शिवसेना मिटी नहीं, शिवसेना है लेकिन उद्धव ठाकरे को नई शिवसेना (यूबीटी) बनानी पड़ी। पार्टी का निशान तक वे गंवा बैठे। यह नजरिया ही था जिसने शरद पवार जैसे नेता के परिवार में विभाजन करा दिया। देवेंद्र फडणवीस को भरोसा था कि उनके अजित दादा, उन पर भरोसा करेंगे और एनसीपी का विभाजन करेंगे। साल 2023 में एनसीपी में विभाजन हुआ, अजित पवार महायुति का हिस्सा बने और अब उनके पास 41 सीटें हैं।

एक तरफ दूसरी सियासी पार्टियां चुनाव परिणामों में मनचाहा नतीजा न मिले तो हताश हो जाती हैं, देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में बीजेपी ने नई कहानी लिख दी। महाराष्ट्र के लोकसभा चुनाव बीजेपी के लिए ठीक नहीं रहे। उन्होंने महज कुछ महीनों में इतनी मेहनत की कि सारे समीकरण और नैरेटिव ध्वस्त हुए और बीजेपी 132 सीटें जीतकर आई। हार को जीत में तब्दील करने वाला नजरिये को भी देखकर बीजेपी ने तय किया कि उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाना चाहिए। 

महाराष्ट्र में राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपते एकनाथ शिंदे। (तस्वीर-PTI)

2. नम्रता
देवेंद्र फडणवीस बेहद विनम्र नेता माने जाते हैं। उनके धुर आलोचक भी उनके खिलाफ बहुत मुखर होकर कुछ नहीं बोल पाते हैं। देवेंद्र फडणवी के समर्थक उन्हें 'देवा भाऊ' कहते हैं। बीजेपी  के केंद्रीय नेतृत्व ने जब भी कोई फैसला किया, उन्होंने उसे सिर झुकाकर स्वीकार किया। चाहे विपक्ष में बैठने का फैसला हो, चाहे डिप्टी सीएम बनने का। देवेंद्र फडणवीस के इस गुण को देखते हुए बीजेपी उन्हें मुख्यमंत्री पद देने से मना नहीं कर पाई। 

देवेंद्र फडणवीस की छवि साफ दिल वाले नेता की रही है। वे बेहद साफगोई से अपनी बात कहते हैं, बीजेपी के किसी धड़े में उनके नाम को लेकर विरोध नहीं है। यही वजह है कि महाराष्ट्र बीजेपी के चीफ चंद्रशेखर बावनाकुले, पंकजा मुंडे से लेकर सुधीर मुनगंटीवार तक हर कोई देवेंद्र फडणवीस के नाम पर सहमत रहा है। उनका किसी के विरोध नहीं रहा है।  उनमें सियासी नफासत है, जिसका हर कोई कायल है।

उर्दू के इस शब्द का मतलब है मृदुलता, सरलता और कोमलता। देवेंद्र फडणवीस को जानने वाले लोग कहते हैं कि वे बेहद सरल हैं। वे मृदुभाषी हैं और किसी की भी कठोर आलोचना से बचते हैं। एक राजनेता के तौर पर उन्हें सबको सुनने आता है और उसी अंदाज में जवाब देने भी आता है। उनके भाषणों में तीखे तेवर नजर नहीं आते। किसी राजनेता में जितनी सियासी नजाकत होनी चाहिए, वह उनमें है। जानकारों का कहना है कि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को पता था कि महाराष्ट्र के किसी दूसरे नेता के पास इस हद तक शालीनता नहीं है, जिसे सीएम पद जैसी अहम जिम्मेदारी सौंपी जाए।

3. नेतृत्व
साल 2014 में जब देवेंद्र फडणवीस पहली बार मुख्यमंत्री बने तो लोगों ने कहा कि इतने बड़े राज्य की जिम्मेदारी एक युवा मुख्यमंत्री कैसे संभालेगा। वे बेहतर मुख्यमंत्री साबित हुए। उनके नेतृत्व में साल 2019 का विधानसभा चुनाव लड़ा गया, एनडीए गठबंधन को जनादेश मिला लेकिन शिवसेना ने बगावत कर ली। वे मुख्यमंत्री से नेता प्रतिपक्ष हो गए। उन्होंने तब भी ये जिम्मेदारी बेहद संजीदगी से अदा की। वे बीजेपी को संगठनात्मक स्तर पर मजबूत करने की कोशिश करते रहे।

साल 2022 में देवेंद्र शिवसेना को दो धड़े में बांटने में कामयाब रहे। उद्धव ठाकरे की पार्टी बंट गई, शिवसेना की कमान एकनाथ शिंदे ने संभाली और वे अपने समर्थक विधायकों के साथ सत्ता में आ गए। एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने का केंद्रीय नेतृत्व ने वादा किया तो उनके डिप्टी बनने के लिए देवेंद्र फडणवीस राजी हो गए। ऐसा तब हुआ जब वे 2014 में मुख्यमंत्री रह चुके थे।

2024 में विधानसभा चुनाव हुए तो यह उनका नेतृत्व ही था कि राज्य में प्रंचड बहुमत से महायुति सरकार की वापसी हुई। उन्होंने सधे कदमों से यह दिखा दिया कि उनके नेतृत्व में दम है और महाराष्ट्र में बीजेपी के भविष्य देवेंद्र फडणवीस हैं। उनके नाम पर बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को आपत्ति भी इसीलिए नहीं रही।

लंबे खींचतान पर ऐसे लगा विराम
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के जब नतीजे आए 10 दिन से ज्यादा हो गए थे लेकिन यह तय नहीं हो पाया था कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा। ऐसी चर्चा चली कि देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाने के लिए एकनाथ शिंदे तैयार नहीं है, जबकि अजित पवार समर्थन कर रहे हैं। सीएम पर सस्पेंस बढ़ा तो शिवसेना के रवैये पर ही सवाल उठने लगे। खबरें चलीं कि महायुति की सरकार इसलिए नहीं बन पा रही है क्योंकि एकनाथ शिंदे नहीं चाहते हैं कि देवेंद्र फडणवीस राज्य के मुख्यमंत्री हों।  

अटकलें इतनी लगाई गईं कि 27 नवंबर को एकनाथ शिंदे को प्रेस कन्फ्रेंस करना पड़ा। उन्होंने कहा कि उन्हें बीजेपी के सीएम से ऐतराज नहीं है। महायुति के नेता यह तय कर लेंगे कि सीएम कौन होगा। मंत्रालयों और विभागों को लेकर लंबी खींचतान चली, बुधवार को बीजेपी विधायक दल की बैठक में यह तय कर लिया गया कि राज्य का मुख्यमंत्री कौन होगा। अब सबसे बड़ा सवाल सुलझ चुका है। सीएम देवेंद्र फडणवीस ही होंगे, इस जंग को वे पहले ही जीत चुके थे, मोहर बुधवार को लगी।

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