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अग्नि केली: कर्नाटक का अनोखा उत्सव, जहां होती है आग की बरसात

कर्नाटक के मंगलुरु में अग्नि केली उत्सव मनाया जाता है, जिसमें देवी भक्त एक दूसरे पर आग के अंगारे फेंकते हैं। जाने इस पर्व का इतिहास।

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मंगलुरु में अग्नि केली उत्सव।(Photo Credit: @hsatishblr/ Instagram)

भारत एक विविधताओं से भरा देश है जहां हर क्षेत्र की अपनी अलग और अनोखी परंपराएं व रीति-रिवाज हैं। इन्हीं में से एक अनोखी परंपरा है ‘अग्नि केली’। यह परंपरा कर्नाटक राज्य में हर साल हजारों श्रद्धालुओं की आस्था और उत्साह के साथ निभाई जाती है। इस परंपरा में लोग एक-दूसरे पर जलते हुए अंगारे फेंकते हैं। यह सुनने में थोड़ा खतरनाक जरूर लग सकता है लेकिन इसके पीछे श्रद्धा और देवी की भक्ति की गहरी भावना छिपी होती है।

अग्नि केली कहां मनाई जाती है?

अग्नि केली मुख्य रूप से कर्नाटक के दक्षिणी हिस्से में स्थित मंगलुरु जिले के कटीले गांव में स्थित श्री दुर्गा परमेश्वरी मंदिर में मनाई जाती है। यह परंपरा मंदिर में होने वाले नौ दिन के वार्षिक उत्सव का हिस्सा होती है। इस परंपरा में भाग लेने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं और मां दुर्गा के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।

 

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परंपरा की शुरुआत कैसे हुई?

ऐसा कहा जाता है कि इस अनोखी परंपरा की शुरुआत सैकड़ों साल पहले हुई थी। कहते हैं कि पुराने समय में जब इस क्षेत्र में युद्ध, बीमारी या प्राकृतिक आपदाएं आती थीं, तब गांववालों ने मां दुर्गा से प्रार्थना की थी कि वह इन कष्टों को दूर करें। मां को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने अग्नि पूजा की और नारियल की जलती हुई छालें एक-दूसरे पर फेंकीं। तभी से यह परंपरा शुरू हुई, जो अब श्रद्धा और धार्मिक उत्सव का रूप ले चुकी है।

 

अग्नि केली कैसे मनाई जाती है?

इस परंपरा में भाग लेने वाले भक्त नारियल के सूखे छिलकों को जलाते हैं और फिर एक-दूसरे पर फेंकते हैं। यह आयोजन रात को होता है, जब मंदिर के सामने खाली स्थान पर उड़ती हुई आग की लपटे दिखाई देती हैं। इसमें दो टीमें बनाई जाती हैं, जो आमने-सामने खड़ी होकर एक-दूसरे पर जलते हुए छालें फेंकते हैं। यह प्रक्रिया करीब 15 से 20 मिनट तक चलती है।

 

जो लोग इस आयोजन में भाग लेते हैं, वह खासतौर पर तैयार होते हैं। सिर्फ कमर तक धोती पहनते हैं ताकि कपड़े में आग लगने का खतरा न हो। इसके अलावा आयोजन से पहले सभी प्रतिभागी नदी में स्नान करते हैं, जिससे उन्हें शुद्ध माना जाता है।

 

हालांकि, यह परंपरा जोखिम से भरी लगती है लेकिन स्थानीय प्रशासन और मंदिर समिति पूरी सुरक्षा का ध्यान रखती है। आग बुझाने वाले उपकरण, मेडिकल टीमें और स्वयंसेवकों की मौजूदगी सुनिश्चित की जाती है। आयोजन को देखने हजारों दर्शक आते हैं, इसलिए सुरक्षा और व्यवस्था कड़ी होती है।

 

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भारत में आग से जुड़ी अन्य परंपराएं

भारत में आग से जुड़ी परंपराएं केवल कर्नाटक तक ही सीमित नहीं हैं। देश के कई हिस्सों में अग्नि से जुड़े विभिन्न अनुष्ठानों का खास महत्व है।

  • होलिका दहन (उत्तर भारत): होली से एक दिन पहले लकड़ियों का ढेर जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मनाया जाता है।
  • थिमिथी उत्सव (तमिलनाडु): इस पर्व में भक्त आग पर चलते हैं। यह मां द्रौपदी को समर्पित होता है।
  • लोहड़ी (पंजाब): आग के चारों ओर नृत्य और गीतों के साथ नए साल और फसल की खुशी मनाई जाती है।
  • अग्नि नृत्य (आंध्र प्रदेश): विशेष अवसरों पर अग्नि के चारों ओर नाच कर भगवान को प्रसन्न किया जाता है।

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