आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में नल्लमाला पहाड़ों पर स्थित अहूबिलम मंदिर को भगवान नरसिंह का दिव्य धाम माना जाता है। मान्यता है कि यहीं पर भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारण कर प्रह्लाद की रक्षा करते हुए असुर राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था। इसी वजह से यह स्थल भक्तों के बीच 'नव नरसिंह' की नगरी के रूप में प्रसिद्ध है। मंदिर परिसर में भगवान नरसिंह के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा होती है। मान्यता के अनुसार, भगवान अपने भक्तों को अलग-अलग आशीर्वाद और अनुभव प्रदान करते हैं।
इतिहासकारों के अनुसार, यह मंदिर 108 दिव्य देशमों में गिना जाता है, जिनका उल्लेख अल्वार संतों की वाणी में मिलता है। मान्यता के अनुसार, विजयनगर साम्राज्य समेत कई दक्षिण भारतीय राजवंशों ने इस मंदिर का संरक्षण किया था। मंदिर की स्थापत्य कला द्रविड़ शैली की झलक दिखाती है और आसपास का पर्वतीय वातावरण इसे और भी भव्य बनाता है।
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अहूबिलम मंदिर की पौराणिक कथा
इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा भक्तों में प्रचलित है। प्रचलित कथा के अनुसार, दैत्यराज हिरण्यकशिपु को ब्रह्मा जी से अमरत्व का वरदान प्राप्त किया था। उसे पृथ्वी पर मौजूद कोई भी प्राणी नहीं मार सकता था। उसे वरदान प्राप्त था कि न ही उसे किसी अस्त्र से मारा जा सकता है और न ही किसी शस्त्र से उसकी हत्या की जा सकती है। कथा के अनुसार, इस वरदान की वजह से वह बहुत अहंकारी और अत्याचारी बन गया था। उसने अपने ही पुत्र प्रह्लाद को भगवान विष्णु की भक्ति करने से रोका और अनेक बार उसे मारने का प्रयास किया।

कथा के अनुसार, जब हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से क्रोधित होकर पूछा, 'अगर तुम्हारा विष्णु है, तो वह कहां है?', तो प्रह्लाद ने कहा, 'वह हर जगह हैं।' हिरण्यकशिपु ने स्तंभ पर प्रहार किया और उसी क्षण भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप (अर्ध-मनुष्य, अर्ध-सिंह) में प्रकट होकर संध्या समय (न दिन, न रात), राजमहल के आँगन में (न अंदर, न बाहर), अपनी जंघा पर (न धरती, न आकाश) हिरण्यकशिपु को उठाकर नाखूनों से उसका वध कर दिया। मान्यता है कि यह अद्भुत लीला अहूबिलम के इसी स्थान पर हुई थी। इसीलिए यहां भगवान नरसिंह के नव स्वरूपों की पूजा होती है।
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मंदिर से जुड़ी पौराणिक मान्यता
- मान्यता है कि हिरण्यकशिपु के अत्याचार से प्रह्लाद की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार यहीं खंभे से प्रकट हुए थे और हिरण्यकशिपु का वध किया था।
- इसी वजह इसे अहो-बिलम (अर्थात् 'आश्चर्यजनक गुफा' या 'दिव्य गुफा') कहा गया।
- कहा जाता है कि भगवान नरसिंह का उग्र रूप यहीं प्रकट हुआ था, इसलिए इस मंदिर को अत्यंत शक्तिशाली और सिद्ध पीठ माना जाता है।
- श्रद्धालु मानते हैं कि यहां दर्शन मात्र से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं और उग्र नरसिंह भक्तों की रक्षा करते हैं।
मंदिर का पौराणिक इतिहास
- यह मंदिर वैष्णव परंपरा का महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है और अहूबिलम मठ की स्थापना यहीं से हुई है।
- मान्यत है कि दक्षिण भारत के आचार्य श्री रामानुजाचार्य और बाद में श्री वेदांत देशिक ने यहां आकर साधना की थी।
- मंदिर को विजयनगर साम्राज्य और स्थानीय राजाओं ने समय-समय पर भव्य स्वरूप प्रदान किया था।

भगवान नरसिंह के नव रूप के मंदिर हैं
- ज्वाला नरसिंह
- आहव नरसिंह
- मालोला नरसिंह
- क्रोध नरसिंह
- करण नरसिंह
- उग्र नरसिंह
- योगानंद नरसिंह
- भुवर नरसिंह
- लक्ष्मी नरसिंह
यहां कैसे पहुंचें?
सड़क मार्ग:
- कुरनूल शहर से लगभग 70 किमी की दूरी पर स्थित है।
- हैदराबाद से दूरी लगभग 320 किमी है।
नजदीकी रेलवे स्टेशन:
- नजदीकी रेलवे स्टेशन नंद्याल और कुरनूल हैं।
नजदीकी एयरपोर्ट
- नजदीकी हवाई अड्डा हैदराबाद (राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा) है।