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अजा एकादशी व्रत कब है,  जानें कथा, मान्यता, व्रत के नियम और पूजा विधि

सनातन धर्म में अजा एकादशी का महत्व अन्य एकादशी से ज्यादा होता है। आइए जानते हैं व्रत रखने का सही समय, कथा और पूजन विधि।

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI

सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। हर एकादशी को भगवान विष्णु की आराधना के लिए श्रेष्ठ माना गया है। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली अजा एकादशी का स्थान तो और भी पावन है। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी वजह से इसे 'पापमुक्ति एकादशी' भी कहा जाता है। अजा एकादशी का व्रत दशमी तिथि से ही शुरू हो जाता है।

 

व्रत के एक दिन पहले से ही सात्त्विक भोजन करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करके व्रत का संकल्प लिया जाता है। कई भक्त निर्जल व्रत रखते हैं जबकि कुछ लोग फलाहार कर सकते हैं। इस दिन झूठ बोलने, किसी का अपमान करने और क्रोध जैसी नकारात्मक भावनाओं से दूर रहने का विशेष महत्व बताया गया है।

 

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अजा एकादशी 2025 तिथि

वैदिक पंचाग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 18 अगस्त, 2025 को शाम 05:22 से शुरू होगी और इस तिथि का समापन 19 अगस्त 2025 को शाम के समय 03:30 बजे होगा। ऐसे में अजा एकादशी का व्रत 19 अगस्त 2025 के दिन रखा जाएगा। इस व्रत का पारण 20 अगस्त 2025 को किया जाएगा।

अजा एकादशी व्रत की पौराणिक कथा

अजा एकादशी की कथा महाभारत और पद्म पुराण में बताई गई है। कथा के अनुसार राजा हरिशचंद्र सत्य और धर्म के लिए प्रसिद्ध थे लेकिन एक बार उन्हें अपने वचन की वजह से अपना राज-पाट, रानी और यहां तक कि बेटे को भी खोना पड़ा था। वह श्मशान में काम करने लगे और जीवन बहुत कठिन हो गया। एक दिन उन्होंने महात्मा गौतम ऋषि से मिलकर अपनी व्यथा सुनाई। तब ऋषि ने उन्हें अजा एकादशी का व्रत करने की सलाह दी।

 

राजा हरिशचंद्र ने पूरे नियम से यह व्रत रखा। इसके प्रभाव से उनका सारा पाप नष्ट हो गया और उन्हें अपना खोया हुआ सब कुछ वापस मिल गया। तभी से यह एकादशी बहुत पवित्र और फलदायी मानी जाती है।

अजा एकादशी व्रत रखने के नियम

दशमी से ही नियम शुरू करें – एक दिन पहले यानी दशमी तिथि से ही सात्त्विक भोजन करें, मांस, शराब, प्याज-लहसुन जैसी चीजों का त्याग करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।

स्नान और संकल्प – एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें कि 'मैं भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति के लिए अजा एकादशी का व्रत रख रहा/रही हूं।'

निर्जल या फलाहार व्रत – इस व्रत को रखने वाले लोग या तो निर्जल रहते हैं (बिना भोजन-पानी के) या फिर फलाहार करते हैं।

भक्ति और नियम पालन – दिनभर भगवान विष्णु का ध्यान करें, झूठ न बोलें, किसी का अपमान न करें और पवित्र मन रखें।

जागरण – रात को जागरण करके विष्णु भगवान के भजन-कीर्तन करें।

पारण – अगले दिन (द्वादशी तिथि) सुबह पूजा करने के बाद दान-पुण्य करें और फिर व्रत खोलें।

 

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अजा एकादशी पूजा विधि

  • मंदिर या घर में पूजा स्थान सजाएं और भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखें।
  • गंगाजल से स्नान कराकर भगवान को पीले वस्त्र पहनाएं।
  • धूप, दीप, चंदन, पुष्प और तुलसी पत्र अर्पित करें।
  • पीले फल और मिठाई का भोग लगाएं।
  • अजा एकादशी व्रत कथा पढ़ें या सुनें।
  • श्री विष्णु सहस्रनाम या गीता पाठ करें, यह बहुत शुभ माना जाता है।
  • अंत में आरती करें और परिवार के सभी लोग भगवान का आशीर्वाद लें।

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