अक्षय तृतीया के दिन देवी लक्ष्मी उपासना का खास महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, धन, सौभाग्य और सुख-समृद्धि की देवी लक्ष्मी की उपासना करने से व्यक्ति के सभी कष्ट और दुख दूर हो जाते हैं और धन-धान्य व सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वेदों में देवी लक्ष्मी को समर्पित कई मंत्र और स्तोत्र का उल्लेख मिलता है। जिनमें लक्ष्मी स्तोत्र का अपना एक खास स्थान है। इसे विशेष रूप से धन, ऐश्वर्य, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए पढ़ा जाता है। हालांकि इस स्तोत्र के मूल श्लोक का पाठ करने मात्र से भी कई लाभ प्राप्त होते हैं।
स्तोत्र का मूल श्लोक:
नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥
सरल अर्थ:
नमस्तेस्तु महामाये — हे महामाया! आपको नमस्कार है। आप सम्पूर्ण सृष्टि की आधार शक्ति हैं।
श्रीपीठे — आप श्री अर्थात ऐश्वर्य और सम्पन्नता के आसन पर विराजमान हैं।
सुरपूजिते — देवता भी आपकी पूजा और वंदना करते हैं।
शङ्खचक्रगदाहस्ते — आपके हाथों में शंख, चक्र और गदा जैसे दिव्य आयुध हैं।
महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते — हे महालक्ष्मी! आपको बारंबार नमस्कार है।
यह भी पढ़ें: अक्षय तृतीया से है जगन्नाथ रथ यात्रा का विशेष संबंध, जानें सब कुछ
इस श्लोक का भावार्थ:
यह श्लोक देवी लक्ष्मी को सम्पूर्ण जगत की जननी और शक्ति का प्रतीक मानकर उनकी वंदना करता है। इसमें कहा गया है कि देवी लक्ष्मी न केवल ऐश्वर्य प्रदान करती हैं, बल्कि वह पूरे ब्रह्मांड की संचालन शक्ति भी हैं। उनके हाथों में जो शंख, चक्र और गदा है, व उनकी शक्ति, संरक्षण और धर्म की रक्षा के प्रतीक हैं।
इस स्तोत्र का महत्व
मान्यता है कि जो व्यक्ति श्रद्धा भाव से इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसे मां लक्ष्मी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। उसके जीवन में आर्थिक समृद्धि, सफलता और खुशहाली आती है।
माना जाता है कि इस स्तोत्र का नियमित उच्चारण घर और मन से नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है। यह व्यक्ति के भीतर सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास भरता है।
देवी लक्ष्मी के शंख और चक्र का प्रतीक यह बताता है कि माता अपने भक्तों की बुरी शक्तियों और विघ्न-बाधाओं से रक्षा करती हैं।
इस श्लोक का पाठ करते समय साधक के हृदय में भक्ति, श्रद्धा और आस्था का संचार होता है। यह उसे आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।