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सेममुखेम मंदिर: जहां शेषनाग के अवतार में बसते हैं भगवान कृष्ण

उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित सेममुखेम मंदिर अपनी सुंदरता और पौराणिक कथाओं के लिए जाना जाता है। इस मंदिर को नागराज का स्थाई निवास भी माना जाता हैं।

Sem Mukhem Mandir

सेममुखेम मंदिर का गेट| Photo Credit: Ranvijay Singh/X

उत्तराखंड जैसे खूबसूरत राज्य से पूरा देश वाकिफ है। इस राज्य को देव भूमि के नाम से भी जाना जाता है। इस राज्य में बहुत से ऐसे मंदिर हैं जिनकी मान्यताएं द्वापर युग से जुड़ी हुई हैं। ऐसा ही एक मंदिर टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित है। यह मंदिर सेममुखेम नागराज मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर को न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र माना जाता है, बल्कि इसे गढ़वाल की सांस्कृतिक परंपराओं और नाग देवता की उपासना का प्रमुख स्थान भी माना जाता है। सेममुखेम नागराज मंदिर विशेष रूप से नाग पूजा के लिए प्रसिद्ध है।

 

सेममुखेम नागराज मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यह मंदिर नाग देवता को समर्पित है। मान्यताओं के आधार पर इस मंदिर में भगवान कृष्ण की शेषनाग के अवतार के रूप में पूजा की जाती है। यह मंदिर उत्तराखंड के ऊंचे पहाड़ों के बीच स्थित है, जिसकी वजह से यहां का दृश्य टूरिस्टों को अपनी ओर आकर्षित करता है। प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ यहां का शांत और पवित्र वातावरण भक्तों को एक आध्यात्मिक अनुभूति कराता है।

 

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क्या है मंदिर की विशेषता?

यह मंदिर विशेष रूप से नागराज की मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है, जिसे श्रद्धालु श्रद्धा और भक्ति से पूजते हैं। मंदिर की मूर्ति को बहुत ही सुंदर ढंग से सजाया जाता है और विशेष अवसरों जैसे नाग पंचमी और महाशिवरात्री के दिन यहां पारंपरिक गीत-संगीत और नृत्य भी किए जाते हैं। इस मंदिर की पूजा पारंपरिक गढ़वाली रीति-रिवाजों के अनुसार की जाती है।

पौराणिक मान्यता

इस मंदिर से जुड़ी एक प्राचीन पौराणिक कथा है, जो इसे अत्यंत विशेष बनाती है। मान्यता है कि जब भगवान कृष्ण ने धरती पर अपना अवतार लिया तो उनके सुदर्शन चक्र से नागलोक के राजा शेषनाग बहुत प्रभावित हुए। वह धरती पर भगवान की आराधना करने आए और टिहरी गढ़वाल की इन पहाड़ियों में तप करने लगे। उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान दिया कि वह इस स्थान पर पूजित होंगे। उसी के बाद से यहां नागराज की पूजा होने लगी।

 

एक अन्य लोककथा के अनुसार, नागराज शेषनाग ने यहां पर अशांत शक्तियों को शांत किया था और यह क्षेत्र देवताओं के लिए सुरक्षित स्थान बन गया था। तभी से नागराज यहां के रक्षक माने जाते हैं। इस मंदिर को नागराज का स्थाई निवास माना जाता है। यहां की मान्यता है कि इस मंदिर में सच्चे मन से प्रार्थना करने से नाग दोष और सर्पदोष जैसी समस्याओं से मुक्ति मिलती है।

 

 

एक अन्य कथा के अनुसार, महाभारत युद्ध के बाद भगवान श्रीकृष्ण यात्रा पर निकले तो सेम मुखेम नामक स्थान उन्हें बेहद सुंदर लगा। उन्होंने वहां के राजा गंगू रमोला से कुछ जगह मांगी तो गंगू रमोला ने श्रीकृष्ण को जगह नहीं दी। राजा की बात से नाराज होकर श्रीकृष्ण ने वहां उनकी गाय और भैंस को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया। 

 

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उसके बाद गंगू रमोला की पत्नी ने भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति की और उन्हें वहां पर रहने की जगह दी। उसके बाद श्रीकृष्ण भगवान शेषनाग के रूप में वहीं पर स्थापित हो गए और लोग वहां नागराज की पूजा करने लगे।

धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं

सेममुखेम नागराज मंदिर को गढ़वाल क्षेत्र में सांपों की पूजा का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। यहां हर साल भाद्रपद मास (नवंबर महीने) में एक विशेष मेले का आयोजन होता है, जिसे सेममुखेम यात्रा के नाम से जाना जाता है। यह यात्रा 7 से 10 दिनों की होती है, जिसमें श्रद्धालु कठिन पहाड़ी रास्तों से होते हुए मंदिर तक पहुंचते हैं। यात्रा के दौरान भक्त ढोल-नगाड़ों, हुंकारों, भजनों और नृत्यों के साथ मंदिर तक पहुंचते हैं। इस आयोजन गढ़वाली संस्कृति, आस्था और लोक परंपराओं का जीवंत उदाहरण माना जाता है।

 

 

यहां नागराज को धरती के रक्षक, बारिश लाने वाले और संपन्नता देने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। स्थानीय लोग मानते हैं कि नागराज की कृपा से उनके खेतों में अच्छी फसल होती है और गांव में शांति बनी रहती है। यही वजह है कि इस मंदिर की पूजा न केवल धार्मिक विश्वास से जुड़ी है, बल्कि गांव के जीवन के सुख-शांति और समृद्धि से भी इसका गहरा संबंध है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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