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अनंत चतुर्दशी 2025: जानें कब रखना है व्रत, कथा और विशेषता

अनंत चतुर्दशी को हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत और पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस व्रत की मान्यता भगवान विष्णु से जुड़ी है। आइए जानते हैं व्रत रखने का मुहूर्त, पौराणिक कथा और विशेषता।

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo credit: AI

अनंत चतुर्दशी को हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत और पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस व्रत की मान्यता भगवान विष्णु से जुड़ी है। भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी को मनाए जाने वाला यह पर्व खास तौर पर अनंत सूत्र (चौदह गांठों वाला धागा) से संबंधित है, जिसे व्रत रखने वाले अपने हांथों पर बांधते हैं और भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की आराधना करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को करने से जीवन के संकट दूर होते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

 

इस व्रत के महात्म को महाभारत काल से जोड़ा जाता है। प्रचलित कथा के अनुसार, महाभारत काल में जब पांडव जुए में सबकुछ हारकर वनवास भोग रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को अनंत चतुर्दशी का व्रत करने की सलाह दी थी। इसी तरह एक अन्य कथा ब्राह्मण कौंडिन्य और उनकी पत्नी सुशीला से जुड़ी है। आज भी श्रद्धालु इस दिन उपवास रखते हैं, पूजा-अर्चना करते हैं और अनंत सूत्र को बांधकर भगवान विष्णु से जीवन में कल्याण और समृद्धि की कामना करते हैं।

 

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कब है अनंत चतुर्दशी 2025?

वैदिक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 6 सितम्बर को सुबह 03:10 मिनट से होगी और इस तिथि का समापन 7 सितम्बर को सुबह के समय 01:35 मिनट पर होगा। ऐसे में अनंत चतुर्दशी व्रत 6 सितम्बर 2025, शनिवार के दिन रखा जाएगा। 

अनंत चतुर्दशी की पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार महर्षि सुतजी ने पांडवों को अनंत चतुर्दशी का महत्व बताया था। इससे जुड़ी प्रचलित कथा के अनुसार, जब पांडव जुए में सब कुछ हार गए और वनवास चले गए थे, तब द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण से इसकी वजह पूछा थी। ऐसे में श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी का व्रत करने को कहा था। कथा के अनुसार, द्रौपदी ने श्रद्धा से यह व्रत किया और उसके प्रभाव से पांडवों का दुर्भाग्य समाप्त हो गया था और वे दोबारा संपन्न और शक्तिशाली हो गए थे।

 

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कथा का एक और रूप है जिसमें कहा जाता है कि भगवान विष्णु क्षीरसागर में 'अनंत शेष नाग' के रूप में विराजमान हैं और उनका यह स्वरूप सृष्टि के पालन और स्थायित्व का प्रतीक माना जाता है। इसीलिए इस दिन 'अनंत सूत्र' (धागा) बांधने की परंपरा है, जिसे भगवान विष्णु के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है।

 

इस व्रत से जुड़ी एक और कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार,  एक वीर ब्राह्मण कौंडिन्य और उनकी धर्मपरायण पत्नी सुशीला एक दिन यात्रा के दौरान नदी के किनारे पहुंचे थे, जहां सुशीला ने देखा कि कुछ महिलाएं विधिपूर्वक अनंत व्रत (जिसमें चौदह गांठों वाला 'अनंत सूत्र' बांधा जाता है) कर रही थीं। उन्होंने भी तत्परता से यह व्रत अपनाया। फिर उन्हें शीघ्र ही धन-वैभव प्राप्त हुआ।

 

बाद में जब कौंडिन्य ने यह विश्वास किया कि यह सब उनकी मेहनत का फल है, तो क्रोधित होकर उन्होंने सुशीला का बांधा हुआ अनंत सूत्र फाड़कर जला दिया। इससे भगवान विष्णु (अनंत) नाराज हो गए और कौंडिन्य को गरीबी और दुःखों का सामना करना पड़ा।

 

कथा के अनुसार, अपनी भूल का एहसास होने पर कौंडिन्य ने तपस्या की, तिरस्कार के लिए पश्चाताप किया और फिर से 14 वर्षों तक अनंत व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनकी संपत्ति लौट आई, उनका जीवन सुखी हो गया और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।

अनंत चतुर्दशी की विशेषता क्या है?

  • यह व्रत भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की आराधना के लिए किया जाता है। मान्यता है कि विष्णु के अनंत रूप की उपासना करने से जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं।
  • इस दिन श्रद्धालु अनंत सूत्र (चौदह गांठों वाला धागा) को दाहिने हाथ में (पुरुष) और बाएं हाथ में (महिलाएं) बांधते हैं। यह सूत्र जीवन में समृद्धि, सुरक्षा और सुख-शांति का प्रतीक माना जाता है।
  • व्रत रखने से परिवार में सुख-शांति और वैवाहिक जीवन में सामंजस्य बढ़ता है।
  • इस दिन व्रत और पूजा करने से मनुष्य को सौभाग्य, धन-समृद्धि और संतानों की उन्नति का आशीर्वाद मिलता है।
  • अनंत चतुर्दशी का खास महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसी दिन गणेश विसर्जन होता है, जो भक्तों की भावनाओं और आस्था का रूप माना जाता है।
  • पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस व्रत से न केवल सांसारिक लाभ मिलते हैं, बल्कि यह व्रत मोक्ष की प्राप्ति में भी सहायक माना गया है।

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