भगवान शिव के भक्तों को सावन मास के आने का बेसब्री से इंतजार रहता है। खासतौर से सावन महीने के 16 सोमवार को भगवान शिव की पूजा के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि इस महीने में भगवान शिव की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। 11 जुलाई से सावन महीने की शुरुआत हो चुकी है। इस महीने में कांवरियों का जत्था बाबा बैद्यनाथ मंदिर पहुंचता है। यहां पर हर साल श्रावण मेला लगता है।
सावन के महीने में इस मंदिर में हर दिन भीड़ रहती है। बैद्यनाथ को देवघर भी कहा जाता है। यहां पर मुख्य रूप से झारखंड, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बंगाल के श्रद्धालु पहुंचते हैं। आइए इस मंदिर से जुड़ी मान्यताओं के बारे में जानते हैं।
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ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं बैद्यनाथ मंदिर
बैद्यनाथ मंदिर को बाबा धाम कहा जाता है। बाबा धाम 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है। इस ज्योतिर्लिंग को शक्तिपीठ भी कहा जाता है। बावन शक्ति पीठों में से इसे हाद्रपीठ के रूप में जाना जाता है। यहां पर देवी सती का हृदय गिरा था। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक शिव से पहले यहां पर शक्ति पीठ स्थापित था। यहां पर शिव और शक्ति दोनों की पूजा अर्चना होती है। दुनिया भर में ऐसी बहुत कम जगह है जहां पर शिव और शक्ति दोनों की पूजा होती है। इस मंदिर को भगवान विष्णु ने बसाया था।
मंदिर के स्थापना की कथा
मान्यताओं के मुताबिक, एक बार रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घनघोर तपस्या की थी। भगवान को प्रसन्न करने के लिए रावण अपने सिरों को काटकर शिवलिंग पर चढ़ाना शुरू कर देता है। रावण ने एक एक करके अपने नौ सिर चढ़ा दिए। जब दसवें सिर की बारी आई तो महादेव प्रसन्न हो गए। भगवान शिव ने रावण के दसों सिर को वापस कर दिया। इसके बाद रावण ने भगवान शिव से वरदान मांगा कि उन्हें कैलेश से लंका शिवलिंग ले जाने की अनुमति मिले। भगवान ने रावण को शिवलिंग ले जाने की अनुमति दे दी लेकिन एक चेतावनी भी दी थी कि तुमने जहां इस शिवलिंग को रखा। वहीं पर शिवलिंग स्थापित हो जाएगा।
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जब रावण शिवलिंग को कैलाश से लंका ले जा रहे थे तभी देवताओं ने उन्हें रोकने की कोशिश की। इस कोशिश के दौरान रावण को तेज लघुशंका (पेशाब) लगी। तब बीच रास्ते में रावण ने एक बच्चे को शिवलिंग पकड़ने को कहा। वह बच्चा गाय चरा रहा था जिसका नाम बैजू था। माना जाता है कि वह बच्चा भगवान विष्णु थे। रावण ने बैजू को शिवलिंग सौंप दिया और कहा कि मैं लघुशंका करके आता हूं। तुम इसे जमीन पर मत रखना। बच्चे ने शिवलिंग को वहीं पर रख दिया। इसके बाद रावण ने शिवलिंग को उठाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह असफल रहे थे। तभी से वहां पर शिवलिंग स्थापित है जिसे अब बैजनाथ धाम के नाम से जाना जाता है।
कैसा है बैद्यनाथ मंदिर
बैद्यनाथ मंदिर बहुत ही भव्य है। मंदिर के प्रांगण में करीब 22 मंदिर स्थापित हैं। भगवान शिव के सामने माता पार्वती का मंदिर है। दोनों मंदिर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। सावन महीने में हर साल लाखों श्रद्धालु यहां पर दर्शन करने पहुंचते हैं।
हर साल कांवड़िए बिहार के भागलपुर के सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर 105 किलो मीटर की पैदल यात्रा करते हैं। श्रद्धालु मंदिर में पहुंचकर भगवान शिव का गंगाजल से जलाभिषेक करते हैं। बैद्यनाथ मंदिर के बाद श्रद्धालु बासुकिनाथ मंदिर जाते हैं। बिना बासुकिनाथ जाए मंदिर की यात्रा को अधूरा माना जाता है। बाबा धाम से बासुकिनाथ मंदिर की दूरी 42 किलोमीटर है। बैद्यनाथ मंदिर तक पहुंचने के लिए नजदीकी एयरपोर्ट पटना है। यहां सबसे पास रेलवे स्टेशन देवघर जेसीडीह जो बाबा धाम से करीब 5 किलोमीटर दूर है।