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राधा रानी मंदिर: जहां विराजती हैं कृष्ण की किशोरी

उत्तर प्रदेश के बरसाना में स्थित राधा रानी का मंदिर राधा देवी के जन्मस्थान के रूप में पूजा जाता है। मान्यता के अनुसार, इस मंदिर की स्थापना हजारों साल पहले हुई थी।

Radha rani mandir

राधा रानी का मंदिर: Photo credit: X handle/ Keshav Beniwal

बरसाना का राधा रानी मंदिर, जिसे श्रीजी मंदिर या लाड़ली लाल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, ब्रजभूमि की सबसे पवित्र स्थली और भक्तों की आस्था का केंद्र माना जाता है। यह मंदिर उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के बरसाना में स्थित है। यह मंदिर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है और इसे राधा रानी की जन्मभूमि के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि बरसाना वृषभानु जी की नगरी थी और यहीं पर उनकी पुत्री राधा का प्राकट्य हुआ था। मंदिर तक पहुंचने के लिए सैकड़ों सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर में पहुंचने पर भक्तों को देवी राधा और श्रीकृष्ण की दिव्य लीला और प्रेम का आभास होता है।

 

मान्यता है कि ऐतिहासिक रूप से इस मंदिर का निर्माण भगवान कृष्ण के परपोते वज्रनाभ ने करवाया था। समय के साथ मंदिर खंडित हो गया था लेकिन 16वीं शताब्दी में महाप्रभु वल्लभाचार्य के शिष्य नारायण भट्ट ने इसे पुनर्निर्मित कराया था। प्रचलित कथा के अनुसार, बाद में राजा वीर सिंह और मुगल दरबारी टोडरमल की सहायता से यह मंदिर और अधिक भव्य रूप में विकसित करवाया गया था। आज यह मंदिर अपनी स्थापत्य कला, लाल-सफेद पत्थरों की भव्यता और धार्मिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है।

पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार, बरसाना वृषभानु जी की नगरी थी और यहीं पर उनकी पुत्री राधा रानी का जन्म हुआ था। यही वजह है कि इसे राधा रानी की जन्मभूमि माना जाता है। कथाओं में कहा गया है कि भगवान कृष्ण यहां गोपियों के साथ रास-लीला रचाने आते थे। बरसाना और नंदगांव के बीच लट्ठमार होली की परंपरा भी इन्हीं कथाओं से जुड़ी हुई है। यह मंदिर मूल रूप से भगवान कृष्ण और राधा देवी को समर्पित है। मान्याता के अनुसार, यह मंदिर 5000 साल पुराना है। 

 

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मान्यताएं और उत्सव

मंदिर में मुख्य देवता राधा–कृष्ण (लाडली लाल स्वरूप) हैं, जिन्हें ब्रज की पूजनीय शक्ति के रूप में पूजा जाता है। यहां मुख्य रूप से राधाष्टमी, जन्माष्टमी, और लट्ठमार होली का आयोजन किया जाता हैं। यहां लट्ठमार होली में बरसाना की महिलाएं नंदगांव से आए पुरुषों को प्रतीकात्मक रूप से लकड़ी (लाठी) से मारती हैं, इसे राधा-कृष्ण की पुरानी कलाओं का प्रतीक माना जाता है।
 
राधाष्टमी के समय मंदिर को फूलों और लाइटों से सजाया जाता है और यहां 56 प्रकार के व्यंजन (छप्पन भोग) भोग के रूप में अर्पित किए जाते हैं।

 

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हर वर्ष राधाष्टमी और बरसाने की लट्ठमार होली पर लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं। भक्तों की मान्यता है कि यहां दर्शन करने से राधा-कृष्ण का प्रेम आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त होता है। यह मंदिर केवल आस्था का केंद्र ही नहीं, बल्कि ब्रज संस्कृति की जीवंत पहचान भी है।

मंदिर तक पहुंचने का रास्ता

  • नजदीकी रेलवे स्टेशन: निकटतम रेलवे स्टेशन मथुरा जंक्शन है, जो लगभग 50 किमी दूर है।
  • सड़कमार्ग: मथुरा और वृंदावन से बस और टैक्सी आसानी से मिल जाती है। दिल्ली से लगभग 3 से 4 घंटे की दूरी पर है।
  • नजदीकी एयरपोर्ट: निकटतम हवाई अड्डा आगरा (105 किमी) और दिल्ली (160 किमी) है।
  • मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं लेकिन बुजुर्गों और श्रद्धालुओं के लिए पालकी सेवा भी उपलब्ध है।

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