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महादेव के अनसुने रहस्य, जानें क्यों उन्हें कहा जाता है देवों के देव?

हिन्दू धर्म में भगवान शिव को देवाधिदेव के नाम से जाना जाता है। आइए जानते हैं, इनसे जुड़े कुछ अनसुने रहस्य और खास बातें।

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भगवान शिव को कहा जाता है देवाधिदेव।(Photo Credit: Sora AI)

भगवान शिव हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। उन्हें संहार के देवता कहा जाता है, वह विनाश ही नहीं, बल्कि जन्म-मृत्यु और कल्याण के भी प्रतीक हैं। भगवान शिव को 'महादेव' के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है- देवों में भी सबसे बड़े। आम तौर पर लोग भगवान शिव को कैलाश पर्वत पर रहने वाले, त्रिशूल धारण करने वाले, गले में सर्प लपेटे हुए, जटाओं में गंगा को धारण करने वाले रूप में जानते हैं। हालांकि हमारे धर्म ग्रंथों में शिव जी से जुड़ी कई ऐसी गूढ़ और रहस्यमयी बातें भी कही गई हैं, जिनसे बहुत कम लोग परिचित हैं।

 

भगवान शिव की महिमा का वर्णन वेदों, पुराणों, उपनिषदों और अनेक ग्रंथों में विस्तार से मिलता है। उनके कई रूप, स्वरूप, नाम और रहस्य ऐसे हैं जो साधारण व्यक्ति की समझ से परे होते हैं। शिव एक योगी हैं, तपस्वी हैं, तो वहीं गृहस्थ भी हैं। वह करुणा के सागर हैं लेकिन रुद्र रूप में प्रलय भी ला सकते हैं।

 

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शिव कौन हैं?

सबसे पहली और अनोखी बात यह है कि शिव को 'अनादि और अनंत' माना गया है। न उनका कोई जन्म है और न ही मृत्यु। वह स्वयंभू हैं, अर्थात स्वयं उत्पन्न हुए हैं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश को त्रिदेव कहा जाता है लेकिन शिव जी को समय से भी परे बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार, वह सृष्टि की उत्पत्ति से पहले भी थे और सृष्टि के अंत के बाद भी रहेंगे।

 

महादेव को 'अर्धनारीश्वर' भी कहा जाता है। इसका अर्थ है कि वह आधे पुरुष और आधे स्त्री रूप में एक ही शरीर में उपस्थित हैं। जो बताता है कि सृष्टि में स्त्री और पुरुष दोनों समान हैं और सृजन तभी संभव है जब दोनों का समन्वय हो।

 

शिव जी को भील, किरात, हनुमान, भैरव, कालभैरव, वीरभद्र जैसे अनेक रूपों में पूजा जाता है। उनके अनेक रूपों का वर्णन पुराणों में मिलता है लेकिन कुछ रूप जैसे कि अघोर रूप लोगों में महादेव से जुड़े रहस्यों को और गहरा करते हैं।

भगवान शिव के आभूषणों का अर्थ

एक और रहस्य यह है कि भगवान शिव ने त्रिशूल, डमरू, सर्प, भस्म, और रुद्राक्ष जैसे प्रतीकों को क्यों धारण किया। त्रिशूल तीन गुणों (सत्व, रज और तम) का प्रतिनिधित्व करता है। डमरू ध्वनि और सृष्टि का स्रोत है। सर्प मृत्यु का प्रतीक होते हुए भी शिव के गले का आभूषण है, जिससे यह संकेत मिलता है कि उन्होंने मृत्यु पर विजय पाई है।

 

 

धार्मिक ग्रंथों में यह भी बताया गया है कि शिव जी ने समुद्र मंथन के समय हलाहल विष को पी लिया था, जिससे उनका गला नीला हो गया और वह 'नीलकंठ' कहलाए। यह उनकी करुणा और बलिदान का प्रतीक है, क्योंकि उन्होंने संसार की रक्षा के लिए विष को स्वयं में समाहित कर लिया।

 

शिव जी का कला और संगीत से भी गहरा लगाव है। उनका तांडव नृत्य इस बात का प्रमाण है। वह नटराज के रूप में तांडव नृत्य करते हैं। यह नृत्य केवल विनाश का नहीं बल्कि निर्माण का भी प्रतीक होता है। इसके साथ उनकी डमरू से जो ध्वनि उत्पन्न होती है, उसे संस्कृत भाषा के व्याकरण का मूल भी माना गया है।

 

एक और गूढ़ रहस्य यह भी है कि शिव जी को मृत्यु के देवता यमराज से भी अधिक शक्तिशाली माना गया है। मार्कंडेय ऋषि की कथा इसका प्रमाण है। जब यमराज ऋषि को ले जाने आए, तब महादेव ने स्वयं प्रकट होकर यमराज को पराजित कर दिया और अपने भक्त की आयु बढ़ा दी। इससे यह भी सिद्ध होता है कि सच्चे मन से शिव की भक्ति करने वाले की रक्षा स्वयं महादेव करते हैं।

 

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भगवान शिव के गण

देवाधिदेव के गण और सेवकों में भूत, प्रेत, पिशाचों का भी नाम आता है। यही कारण है कि उन्हें भूतनाथ कहा जाता है। वह हर वर्ग के देवता हैं- चाहे वह देव हो, असुर हो, मानव हो या पशु। वह भेदभाव नहीं करते और अपने भक्तों को सहज भाव से स्वीकार करते हैं।

 

शिव के विवाह से जुड़ी भी कई गूढ़ बातें हैं। माना जाता है कि उन्होंने माता पार्वती को कई जन्मों के तप के बाद स्वीकार किया। इससे यह शिक्षा मिलती है कि प्रेम में धैर्य और समर्पण आवश्यक है। उनका विवाह सिर्फ पारिवारिक जीवन का आरंभ नहीं था, बल्कि यह भी संदेश था कि योग और भोग का संतुलन जरूरी है।

भगवान शिव के नामों का रहस्य

भगवान शिव को अनन्य नामों से जाना जाता है। जहां एक तरफ उनका नाम रुद्र है, वहीं दूसरी ओर वह आशुतोष और भोलेनाथ के नाम से भी जानें जाते हैं। भगवान शिव का रुद्र रूप सृष्टि के अंत का कारण भी बन सकता है। वहीं आशुतोष उन्हें इसलिए कहा जाता है क्योंकि क्योंकि वह जल्दी अपने भक्तों से प्रसन्न हो जाते हैं। पुराणों में यह बताया गया है कि चाहे वह दानव हो या देवता, सभी से शिव एक समान प्रेम करते हैं और आशीर्वाद देते हैं। इसी तरह उनके प्रत्येक नाम महादेव के महिमा को बताते हैं, जिनमें पशुपति, महेश्वर, शंकर, गंगाधर आदि सबसे अधिक प्रयोग में लाए जाने वाले नाम हैं।

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