विष्णु शतनाम स्तोत्र: इन मंत्रों में छिपे हैं भगवान विष्णु के 100 नाम
धर्म-कर्म
• NEW DELHI 06 Aug 2025, (अपडेटेड 07 Aug 2025, 9:22 AM IST)
भगवान विष्णु की उपासना के लिए विष्णु शतनाम स्तोत्र को बहुत ही पुण्यदायी माना जाता है। आइए जानते हैं इस स्तोत्र कि महिमा और अर्थ।

भगवान विष्णु की प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI
विष्णु शतनाम स्तोत्र भगवान विष्णु के 100 पवित्र नामों का एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्तोत्र है। यह स्तोत्र भगवान विष्णु की स्तुति और भक्ति के लिए पढ़ा जाता है। इस स्तोत्र में भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों, गुणों और कार्यों का उल्लेख किया गया है। यह स्तोत्र न केवल भगवान विष्णु की महिमा का वर्णन करता है, बल्कि इसके पाठ से व्यक्ति को मानसिक शांति, आध्यात्मिक उन्नति और सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति मिलती है।
विष्णु शतनाम स्तोत्र की रचना महान ऋषि वेद व्यास ने की थी। ऐसा माना जाता है कि जो कोई भी प्रातःकाल इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसे बहुत ही समय में ही समृद्धि, स्वास्थ्य और दिव्य सुख की प्राप्ति होती है।
श्री विष्णु शतनाम स्तोत्र
श्लोक:
ॐ वासुदेवं हृषीकेशं वामनं जलशायिनम् ।
जनार्दनं हरि कृष्णं श्रीवक्षं गरुड़ध्वजम् ।।1।।
भावार्थ:
भगवान गणेश को नमस्कार। नारद कहते हैं: ॐ, मैं वासुदेव, हृषीकेश, वामन, जल पर शयन करने वाले, जनार्दन, हरि, कृष्ण और सुंदर वक्षस्थल वाले गरुड़ध्वज की पूजा करता हूं।
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श्लोक:
वाराहं पुण्डरीकाक्षं नृसिंहं नरकंटकम्।
अव्यक्तं शाश्वतं विष्णुमनन्तमजमव्ययम् ।।2।।
भावार्थ:
मैं वराह, पुण्डरीकाक्ष, नृसिंह, नरक के नाश करने वाले, अव्यक्त, सनातन विष्णु, अनंत, अजन्मा और अविनाशी की पूजा करता हूं।
श्लोक:
नारायणं गदाध्यक्षं गोविंदं कीर्तिभजनम्।
गोवर्धनोद्धारं देवं भूधरं भुवनेश्र्वरम् ।।3।।
भावार्थ:
मैं गदाधारी नारायण, यश के अधिकारी गोविन्द, पृथ्वी के स्वामी गोवर्धन को उठाने वाले देवता तथा समस्त प्राणियों के स्वामी की पूजा करता हूं।
श्लोक:
वेत्तारं यज्ञपुरुषं यज्ञेशं यज्ञवाहकम्।
चक्रपाणिं गदापाणिं शंखपाणिं नरोत्तमम् ।।4।।
भावार्थ:
मैं उन यज्ञों के ज्ञाता, यज्ञों में सर्वश्रेष्ठ, यज्ञ के उपकरण धारण करने वाले, चक्र, गदा तथा शंख धारण करने वाले, मनुष्यों में श्रेष्ठ पुरुष की पूजा करता हूं।
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श्लोक:
वैकुण्ठं दुष्ठदमनं भुगर्भं पीतवाससम।
त्रिविक्रमं त्रिकालज्ञानं त्रिमूर्तिं नंदिकेश्वरम् ।।5।।
भावार्थ:
मैं दुष्टों का नाश करने वाले, पृथ्वी के सारस्वत, पीले वस्त्र धारण करने वाले, भूत, वर्तमान और भविष्य के ज्ञाता त्रिविक्रम, त्रिदेवों और नंदिकेश्वर की पूजा करता हूं।
श्लोक:
रामं रामं हयग्रीवं भीमं रौद्रं भवोद्भवम्।
श्रीपतिं श्रीधरं श्रीशं मंगलं मंगलायुधम् ।।6।।
भावार्थ:
मैं राम, हयग्रीव, भीम, जो भयंकर हैं, जो भवसागर से प्रकट हुए हैं, धन के स्वामी हैं, समृद्धि के वाहक हैं, शुभ हैं और जो शुभ शस्त्र धारण करते हैं, उनकी पूजा करता हूं।
श्लोक:
दामोदरं दमोपेतं केशवं केशिसुदानम् ।
वरेण्यं वरदं विष्णुमानन्दं वासुदेवजम् ।।7।।
भावार्थ:
मैं प्रेम से बंधे हुए, सुन्दर केशों वाले, केशी दैत्य का वध करने वाले, श्रेष्ठतम, वर देने वाले, आनन्द देने वाले भगवान विष्णु तथा वसुदेव के पुत्र दामोदर की पूजा करता हूं।
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श्लोक:
हिरण्यरेतासं दीप्तं पुराणं पुरूषोत्तम ।
सकलं निष्कलं शुद्धं निर्गुणं गुणशाश्वतम ।।8।।
भावार्थ:
मैं उन तेजस्वी, प्राचीन, परम पुरुष, सर्वव्यापी, निराकार, शुद्ध, निर्गुण और शाश्वत गुणों वाले हिरण्यरेता की पूजा करता हूं।
श्लोक:
हिरण्यतनुससंकाशं सूर्ययुत्समप्रभम्।
मेघश्यामं चतुर्बाहुं कुशलं कमलेक्षणम् ।।9।।
भावार्थ:
मैं हिरण्यतनु की पूजा करता हूं, जो सोने के समान चमक वाले, हजारों सूर्यों के समान चमक वाले, श्याम वर्ण वाले, चार भुजाओं वाले, कुशल और कमल के समान नेत्रों वाले हैं।
श्लोक:
ज्योतिरूपमरूपं च स्वरूपं रूपसंस्थितम्।
सर्वज्ञं सर्वरूपस्थं सर्वेषां सर्वतोमुखम् ।।10।।
भावार्थ:
मैं उस प्रकाशस्वरूप, निराकार, रूपों में स्थित, सर्वज्ञ, सब रूपों में विद्यमान, सबके स्वामी तथा सब दिशाओं में मुख वाले की पूजा करता हूं।
श्लोक:
ज्ञानं कुष्ठमचलं ज्ञानं परमं प्रभुम् ।
योगीशं योगनिष्ठातम योगिनं योगरूपिणम् ।।11।।
भावार्थ:
मैं उस ज्ञान की पूजा करता हूं जो स्थिर और अपरिवर्तनशील है, जो बुद्धि के दाता हैं, जो परम प्रभु हैं, जो योगियों के गुरु हैं, जो योग में निपुण हैं और जो सभी योगियों के लिए योग के स्वरूप हैं।
श्लोक:
ईश्वरं सर्वभूतानां वन्दे भूतमयं प्रभुम्।
इति नमशतं दिव्यं वैष्णवं खलु पापहम् ।।12।।
भावार्थ:
मैं समस्त प्राणियों के स्वामी, समस्त सृष्टि के स्वामी की आराधना करता हूं। ये दिव्य शतनाम वास्तव में पापों का शमन करने वाली एक शक्तिशाली औषधि हैं।
श्लोक:
व्यासेन कथितं पूर्वं सर्वपाप्रणाशनम् ।
यः पथेत्प्रातरुत्थाय स भवेद्वैष्णवो नरः ।।13।।
भावार्थ:
प्राचीन काल में व्यास जी ने इसे समस्त पापों का नाश करने वाला बताया था। जो कोई प्रातःकाल (सुबह) उठकर इसका पाठ करेगा, वह निश्चित ही विष्णु भक्त बन जाएगा।
श्लोक:
सर्वपापविशुद्धात्मा विष्णुसायुज्यमाप्नुयात् ।
चान्द्रायणसहस्राणी कन्यादानशतानि च।।14।।
भावार्थ:
समस्त पापों से शुद्ध हुआ जीव भगवान विष्णु से मिलन प्राप्त करता है। जो व्यक्ति हजारों चन्द्रायण यज्ञ करता है और सैकड़ों कन्याओं का दान करता है, वह उसके समान महान नहीं है।
श्लोक:
गावं लक्षसहस्राणी मुक्तिभागी भवेन्नरः ।
अश्वमेधायुतं पुण्यं फलं प्राप्नोति मानवः ।।15।।
भावार्थ:
जो व्यक्ति इसका पाठ करता है, उसे एक लाख गायों के दान का पुण्य प्राप्त होता है तथा दस हजार अश्वमेध यज्ञों के फल का भागी होता है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।
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