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देवी कूष्मांडा जिनके तेज से हुई थी ब्रह्मांड की उत्पत्ति, जानें कथा

चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन देवी कूष्मांडा की पूजा का विधान है। जानते हैं देवी का स्वरूप, पौराणिक कथा और विधि।

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नवरात्रि के चौथे दिन होती है देवी कुष्मांडा की पूजा।(Photo Credit: Creative Image)

नवरात्रि पर्व के चतुर्थी तिथि पर नवदुर्गा के चौथे स्वरूप देवी कूष्मांडा की उपासना की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, उनकी कृपा से भक्तों को सुख, समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति होती है। बता दें कि कूष्मांडा का अर्थ है, जिनकी हल्की मुस्कान से संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना हुई। देवीभागवत पुराण सहित विभिन्न धर्म ग्रंथों में देवी के स्वरूप और कथा का विस्तृत वर्णन किया गया है, आइए विस्तार से जानते हैं।

मां कूष्मांडा की पौराणिक कथा

प्राचीन काल में जब संपूर्ण सृष्टि अंधकार में डूबी हुई थी, तब कोई भी जीव-जंतु, सूर्य, चंद्रमा या ग्रह-नक्षत्र अस्तित्व में नहीं थे। उस समय मां कूष्मांडा ने अपनी मंद मुस्कान से इस ब्रह्मांड की रचना की। कहा जाता है कि जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी सृष्टि के निर्माण में असमर्थ थे, तब मां कूष्मांडा प्रकट हुईं और उन्होंने अपने तेज से चारों दिशाओं को प्रकाशित कर दिया। उनके मुखमंडल की आभा से सूर्य, चंद्रमा और अन्य ग्रहों का निर्माण हुआ।

 

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उन्होंने ब्रह्मांड में जीवन उत्पन्न करने के लिए अपनी शक्ति से अष्टभुजा धारण की, जिससे वे 'अष्टभुजा देवी' भी कहलाती हैं। उनके हाथों में कमल, अमृतपात्र, धनुष-बाण, चक्र, गदा और जपमाला सुशोभित रहते हैं। उनका वाहन सिंह है, जो उनकी शक्ति और निर्भयता का प्रतीक है। कहा जाता है कि देवी कूष्मांडा ने सृष्टि को जन्म देकर समस्त प्राणियों को जीवनदान दिया, इसलिए इन्हें "आदि शक्ति" भी कहा जाता है।

मां कूष्मांडा का स्वरूप

मां कूष्मांडा का दिव्य स्वरूप अति मनोहारी और तेजस्वी है। वे अष्टभुजा धारण करती हैं और प्रत्येक हाथ में अलग-अलग अस्त्र-शस्त्र एवं वस्त्र सुशोभित होते हैं, जिसमें कमल शुद्धता और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक, अमृत कलश अमरता और आरोग्य का, धनुष और बाण धर्म और शक्ति के संतुलन का, चक्र काल पर नियंत्रण और संपूर्ण ब्रह्मांड की रक्षा का प्रतीक माना जाता है। 

 

इसके साथ देवी एक हाथ में गदा है जो शक्ति एवं पराक्रम का प्रतीक है, एक में जपमाला धारण करती है, जो आध्यात्मिक साधना और ध्यान का प्रतीक है, अक्षसूत्र को ज्ञान और दिव्यशक्ति का प्रतीक माना जाता है और अभय मुद्रा को भक्तों को भयमुक्त करने और आशीर्वाद देने का संकेत माना जाता है। उनका वाहन सिंह है, जो पराक्रम और निर्भयता का प्रतीक है।

मां कूष्मांडा की पूजा विधि

प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और देवी कूष्मांडा का ध्यान करें। पूजा स्थल पर स्थापित कलश की विधिवत पूजा करें और देवी को ताजे फूल, माला, फल, दूध, दही, शहद, पंचामृत और (पेठा) का भोग लगाएं। पूजा के दौरान देवी के स्वरूप का ध्यान करते हुए 'ॐ कूष्मांडायै नमः' मंत्र का जाप करें। इस दौरान घी का दीपक जलाकर मां की आरती करें और प्रसाद वितरित करें। साथ ही देवी के सहस्त्रनाम का पाठ करने या उनकी स्तुति गाने से व्यक्ति को विशेष लाभ प्राप्त होता है।

 

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मां कूष्मांडा की पूजा का महत्व

मां कूष्मांडा की पूजा करने से भक्तों को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं, जिसमें व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसके साथ मान्यता है कि देवी कृपा से रोगों का नाश होता है और व्यक्ति दीर्घायु प्राप्त होता है। मां की कृपा से परिवार में धन-धान्य की वृद्धि होती है। साधक को मानसिक शांति मिलती है और उसके जीवन में आत्मबल बढ़ता है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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