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देवी सिद्धिदात्री: जिनसे भगवान शिव ने प्राप्त की थीं अष्ट सिद्धियां

चैत्र नवरात्रि के अंतिम दिन देवी सिद्धिदात्री की उपासना का विधान है। आइए जानते हैं, पूजा विधि, कथा और महत्व।

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देवी सिद्धिदात्री।(Photo Credit: Social Media)

नवरात्रि के नवें और अंतिम दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। यह नवदुर्गा के नौवें स्वरूप हैं। बता दें कि 'सिद्धिदात्री' का अर्थ होता है – 'सिद्धियां प्रदान करने वाली देवी।' धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह देवी भक्तों को अष्टसिद्धियां और नौ निधियां प्रदान करती हैं। देवी सिद्धिदात्री का रूप भक्तों के लिए कल्याणकारी और पूर्णता की प्राप्ति कराने वाला माना गया है।

पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब ब्रह्मांड की रचना नहीं हुई थी, तब चारों ओर अंधकार और शून्यता थी। तब आदिशक्ति (जो स्वयं मां दुर्गा थीं) ने स्वयं को देवी सिद्धिदात्री के रूप में प्रकट किया। उन्हीं की कृपा से ब्रह्मा, विष्णु और महेश को अपने-अपने कार्य सौंपे गए।

 

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भगवान शिव ने भी सिद्धियों की प्राप्ति के लिए देवी सिद्धिदात्री की तपस्या की थी। उनकी कृपा से शिवजी को अष्टसिद्धियां प्राप्त हुईं और उनका आधा शरीर देवी का हो गया। इसी कारण उनका नाम 'अर्धनारीश्वर' पड़ा। यह दर्शाता है कि सृष्टि में शक्ति (नारी) और शिव (पुरुष) दोनों समान रूप से आवश्यक हैं।

पूजा विधि

देवी सिद्धिदात्री की पूजा विशेष नियमों और श्रद्धा के साथ की जाती है। सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर या मंदिर में देवी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। उनके सामने दीपक जलाएं। इसके बाद कलश में जल, सुपारी, अक्षत, लौंग आदि डालकर स्थापना करें। देवी को कमल, गुलाब या सफेद फूल अर्पित करें और भोग के रूप में नारियल, फल, मिठाई भी चढ़ाएं। पूजा के दौरान 'ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः' इस मंत्र का 108 बार जप करें। अंत में देवी की आरती करें और प्रसाद सभी को बांटें।

धार्मिक महत्व

देवी सिद्धिदात्री अपने भक्तों को आठों प्रकार की सिद्धियां – अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व प्रदान करती हैं। कहा जाता है कि जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता और सिद्धि प्राप्त करने के लिए देवी की कृपा आवश्यक मानी जाती है। साधक जब अपनी साधना की उच्चतम अवस्था में पहुंचता है, तब उसे देवी सिद्धिदात्री की अनुभूति होती है। यह मोक्ष की ओर पहला कदम माना जाता है। धर्म ग्रंथों में यह भी बताया गया है कि देवी सिद्धिदात्री ही भगवान शिव के भीतर शक्ति रूप में स्थित हैं।

 

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नवरात्रि की नवमी तिथि पर देवी सिद्धिदात्री की पूजा करने से व्यक्ति की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसके साथ विद्यार्थी या ज्ञान की चाह रखने वाले साधकों को देवी सिद्धिदात्री की उपासना विशेष लाभ देती है। जो लोग किसी विशेष साधना या लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं, वे इस दिन देवी से मार्गदर्शन और सिद्धि की कामना करते हैं। देवी सिद्धिदात्री की पूजा के साथ ही नवदुर्गा पूजा भी पूर्ण मानी जाती है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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