भारत में उत्तराखंड चार धाम यात्रा का अपना एक खास स्थान है। इन चार धामों में यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम शामिल। इनमें यमुनोत्री धाम यात्रा पहले शुरू होती है। बता दें कि यमुनोत्री धाम यात्रा 30 अप्रैल से शुरू हो रही है। यह धाम उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में स्थित है और समुद्र तल से लगभग 3,293 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां मां यमुना का मंदिर स्थित है, जो यमुना नदी का उद्गम स्थल माना जाता है। यमुनोत्री धाम को न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी बेहद खास माना जाता है।
यमुनोत्री धाम की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यमुनोत्री का संबंध सूर्यदेव की पुत्री देवी यमुना और उनके भाई यमराज से है। कहा जाता है कि यमराज और यमुना जुड़वां भाई-बहन थे। एक बार यमुनाजी ने अपने भाई यमराज से यह वचन लिया कि जो भी व्यक्ति यमुनोत्री में स्नान करेगा, उनकी मृत्यु शांतिपूर्ण होगी और उसे यमलोक में कष्ट नहीं सहना पड़ेगा। इसलिए ऐसी मान्यता है कि यमुनोत्री धाम में स्नान करने से पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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बता दें कि यमुनोत्री मंदिर के पास ही कालिंदी पर्वत है, जहां से यमुना नदी का उद्गम स्थल माना जाता है। हालांकि वास्तविक उद्गम स्थल बर्फीले ग्लेशियर पर स्थित है, जिसे 'यमुनोत्री ग्लेशियर' कहा जाता है, जो मंदिर से लगभग 1 किलोमीटर ऊपर स्थित है। ये स्थान बहुत कठिनाई से पहुंचने योग्य है, इसलिए श्रद्धालु मुख्य रूप से मंदिर परिसर में ही दर्शन और पूजा करते हैं।
मान्यता है कि महान ऋषि असित मुनि यमुनोत्री क्षेत्र में तपस्या किया करते थे। वह प्रतिदिन यमुनोत्री और गंगोत्री दोनों स्थानों पर स्नान करते थे। जब उनकी आयु अधिक हो गई और वह चल नहीं सकते थे, तब देवी यमुना स्वयं एक जलधारा के रूप में उनके पास प्रकट हुईं, जिससे वह स्थान और भी पवित्र हो गया।
यमुनोत्री मंदिर का निर्माण और इससे जुड़ी मान्यताएं
यमुनोत्री मंदिर का निर्माण 19वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा प्रताप शाह ने करवाया था। यह मंदिर काले पत्थरों से बना हुआ है और यहां यमुनाजी की एक काले संगमरमर की मूर्ति स्थापित है। मंदिर के पास कई गर्म जल कुंड हैं, जिनमें 'सूर्यकुंड' प्रमुख है। श्रद्धालु इस गर्म पानी में चावल और आलू पकाकर देवी को अर्पित करते हैं, जिसे प्रसाद के रूप में लिया जाता है।
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ऐसा माना जाता है कि यमुनोत्री की यात्रा से मनुष्य के सारे पाप धुल जाते हैं और उसे मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। अक्षय तृतीया के अवसर पर यहां भारी संख्या में भक्त पहुंचते हैं। यात्रा का मुख्य मार्ग जानकी चट्टी से शुरू होता है, जहां से लगभग 6 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके भक्त मंदिर तक पहुंचते हैं।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।