दक्षेश्वर महादेव मंदिर उत्तराखंड राज्य के हरिद्वार जिले में स्थित एक प्रसिद्ध और पवित्र शिव मंदिर है। यह मंदिर हर की पौड़ी से लगभग 6.5 किलोमीटर की दूरी पर कनखल नामक क्षेत्र में स्थित है। यह स्थान धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह मंदिर शिवभक्तों के प्रमुख आस्था केंद्र के रूप में माना जाता है। इस मंदिर का संबंध भगवान शिव और उनकी पत्नी माता सती से जुड़ी एक पौराणिक कथा से है, जो इसे विशेष बनाती है।
दक्षेश्वर महादेव मंदिर को लेकर मान्यता है कि यह वही स्थान है जहां प्राचीन काल में राजा दक्ष प्रजापति ने एक बड़ा यज्ञ आयोजित किया था। राजा दक्ष, माता सती के पिता और ब्रह्मा जी के पुत्र थे। उन्होंने इस यज्ञ में भगवान शिव आमंत्रित नहीं किया था। माता सती इस यज्ञ में बिना बुलावे के ही चली गईं थीं। मान्यता है कि यज्ञ आयोजन में राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया था। भगवान शिव का अपमान सुनकर क्रोध में आकर माता सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे।
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पौराणिक मान्यता
दक्षेश्वर महादेव मंदिर का संबंध एक प्रसिद्ध पौराणिक घटना से जुड़ा हुआ है, जो माता सती और भगवान शिव के जीवन से जुड़ी है। कथा के अनुसार, राजा दक्ष प्रजापति, जो माता सती के पिता थे और ब्रह्मा जी के पुत्र माने जाते हैं। उन्होंने कनखल क्षेत्र में एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में उन्होंने जानबूझकर अपने दामाद भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया था क्योंकि वह भगवान शिव को उचित सम्मान नहीं देते थे।
माता सती ने जब इस आयोजन के बारे में सुना तो वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गईं थी। कथाओं के अनुसार, राजा दक्ष यज्ञ के दौरान भगवान शिव का अपमान कर रहे थे। अपने पति के अपमान से आहत होकर माता सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर वहीं अपने प्राण त्याग दिए थे। जब यह समाचार भगवान शिव को मिला, तो वह क्रोधित हो उठे और उन्होंने वीरभद्र नामक गण को उत्पन्न किया। वीरभद्र ने यज्ञ स्थल पर जाकर विनाश कर दिया था और राजा दक्ष का सिर काट दिया था।
मान्यताओं के अनुसार, बाद में भगवान शिव ने अपने क्रोध को शांत किया और राजा दक्ष को दोबारा जीवित किया था लेकिन इस बार उनके मानव शरीर पर बकरे का सिर लगा दिया। शिव पुराण की मान्यता के अनुसार, यही वह स्थान है जहां यह पूरी घटना घटी थी और इसलिए यह मंदिर 'दक्षेश्वर महादेव' के नाम से जाना जाता है। 'दक्षेश्वर' शब्द का अर्थ होता है, दक्ष के ईश्वर, यानी भगवान शिव।
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धार्मिक मान्यता
यह मंदिर भगवान शिव के उन स्वरूपों में से एक को समर्पित है जहां वह गंभीर, शांत और करुणामय रूप में पूजे जाते हैं। यहां भगवान शिव की पूजा शिवलिंग रूप में होती है। हर साल शिवरात्रि और श्रावण माह में लाखों भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में पूजा करने से व्यक्ति के सारे पाप कटते हैं और जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है। लोगों में ऐसा विश्वास है कि यहां श्रद्धा से की गई प्रार्थना भगवान शिव निश्चित रूप से स्वीकार करते हैं।
मंदिर के पास ही एक अन्य महत्वपूर्ण स्थान है, जिसे सती कुंड के नाम से जानते हैं। मान्यताओं के अनुसार, यह स्थान वही है जहां माता सती ने अपने प्राण त्यागे थे। श्रद्धालु वहां भी दर्शन करने जाते हैं।
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मंदिर तक पहुंचने का रास्ता
ट्रेन से कैसे पहुंचें: हरिद्वार रेलवे स्टेशन उत्तर भारत के मुख्य रेलवे स्टेशनों से जुड़ा हुआ है। स्टेशन से कनखल क्षेत्र लगभग 5-6 किलोमीटर की दूरी पर है, जहां से टैक्सी या ऑटो रिक्शा लेकर मंदिर पहुंचा जा सकता है।
सड़क के रास्ते कैसे पहुंचें: उत्तराखंड रोडवेज और निजी बसें हरिद्वार के लिए नियमित रूप से उपलब्ध हैं। दिल्ली, देहरादून, ऋषिकेश, मेरठ आदि शहरों से आसानी से सड़क मार्ग से यहां पहुंचा जा सकता है।
हवाई मार्ग से कैसे पहुंचें: नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है जो हरिद्वार से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वहां से टैक्सी या बस से हरिद्वार और फिर कनखल पहुंच सकते हैं।