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चीन के विरोध के बावजूद जारी रहेगी 'दलाई लामा' परंपरा, ट्रस्ट करेगा खोज

बौद्ध धर्म के 14वें दलाई लामा ने यह घोषणा की है कि ‘दलाई लामा की परंपरा आगे भी जारी रहेगी।’ जानिए क्या है इससे जुड़ी सभी जरूरी बातें।

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बौद्ध धर्म के 14वें दलाई लामा।(Photo Credit: Dalai Lama/ X)

बौद्ध धर्म में 'दलाई लामा' एक बहुत पूजनीय और आध्यात्मिक पद है। दलाई लामा को अवलोकितेश्वर (करुणा के देवता) का अवतार माना जाता है और यह परंपरा लगभग 600 सालों से चली आ रही है। हर बार जब एक दलाई लामा का निधन होता है, तो उनके पुनर्जन्म (reincarnation) को खोजकर अगला दलाई लामा नियुक्त किया जाता है। वर्तमान (14वें) दलाई लामा, तेनजिन ग्यात्सो, साल 1950 से इस पद पर हैं और दुनियाभर में शांति और अहिंसा के बड़े चेहरे कहे जाते हैं।

 

2011 में 14वें दलाई लामा ने पहली बार यह सार्वजनिक रूप से कहा कि वह स्वयं इस बात को लेकर खुले हैं कि भविष्य में दलाई लामा की परंपरा जारी रखी जाए या नहीं। उन्होंने कहा कि जब वे 90 वर्ष के करीब होंगे, तब वह विभिन्न बौद्ध परंपराओं के प्रमुख, तिब्बती जनता और अन्य अनुयायियों से परामर्श करके यह निर्णय लेंगे।

क्या दलाई लामा का पद जारी रहेगा?

हालांकि उन्होंने औपचारिक रूप से अब तक किसी सार्वजनिक चर्चा की शुरुआत नहीं की थी लेकिन बीते 14 सालों में उन्हें कई क्षेत्र- भारत, तिब्बत, मंगोलिया, चीन, रूस और हिमालयन क्षेत्रों से यह अनुरोध मिला कि दलाई लामा की परंपरा को जारी रखा जाए। खास तौर से तिब्बत के भीतर भी लोगों ने उन्हें गुप्त और खुले माध्यमों से यह निवेदन किया कि यह संस्था बनी रहनी चाहिए।

 

 

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इन अनुरोधों को ध्यान में रखते हुए, उन्होंने आधिकारिक रूप से यह घोषणा की है कि ‘दलाई लामा की परंपरा आगे भी जारी रहेगी।’ साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि अगली बार जब दलाई लामा का पुनर्जन्म होगा तो उसे मान्यता देने की जिम्मेदारी गदेन फोद्रंग ट्रस्ट की होगी, जो कि उनके कार्यालय से जुड़ा हुआ संगठन है। यही ट्रस्ट दूसरे बौद्ध परंपराओं के प्रमुखों और पारंपरिक 'धर्म संरक्षकों' (जो दलाई लामा की परंपरा से बंधे होते हैं) के साथ मिलकर भविष्य के दलाई लामा की खोज करेगा।

चीन और दलाई लामा के बीच का विवाद

 

यहां यह जानना जरूरी है कि दलाई लामा के पुनर्जन्म को लेकर सबसे बड़ा विवाद चीन और तिब्बती समुदाय के बीच है। चीन तिब्बत को अपना हिस्सा मानता है और 1959 से वहां पर अपनी सत्ता स्थापित कर चुका है। दलाई लामा का तिब्बत से निर्वासन और भारत में शरण लेना चीन को कभी स्वीकार नहीं रहा।

 

2007 में चीन ने एक नया आदेश (Decree Number 5) जारी किया, जिसमें कहा गया कि किसी भी बौद्ध लामाओं के पुनर्जन्म को मान्यता देने के लिए चीन की सरकार की अनुमति जरूरी होगी। इस घोषणा को तिब्बतियों ने धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला माना और यह मुद्दा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उठा।

 

चीन की यह नीति खासतौर से दलाई लामा के भविष्य के पुनर्जन्म को लेकर ज्यादा विवादास्पद है। चीन का मानना है कि अगला दलाई लामा उनकी निगरानी में चुना जाएगा, ताकि वह उनकी सत्ता के अनुसार कार्य करे। वहीं, दलाई लामा और उनके अनुयायियों का मानना है कि यह निर्णय सिर्फ धार्मिक प्रक्रिया और परंपराओं के अनुसार होना चाहिए, न कि किसी राजनीतिक दबाव में।

केंद्रीय तिब्बती प्रशासन ने भी दी प्रतिक्रिया

 

केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के अध्यक्ष पेपा त्सेरिंग सिक्योंग ने कहा कि ‘धार्मिक मामलों की 15वीं तिब्बती सम्मेलन के दौरान धर्मशाला में आयोजित, निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं पर सहमति बनी- दलाई लामा के पुनर्जन्म को मान्यता देने की मुख्य प्रक्रिया तिब्बती बौद्ध परंपरा के अनुसार है। इसलिए, हम न सिर्फ चीन द्वारा पुनर्जन्म के विषय का राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करने की कड़ी निंदा करते हैं, बल्कि हम इसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे। तिब्बत के अंदर और बाहर तिब्बतियों ने राष्ट्रीय एकता बनाए रखने और तिब्बत के न्यायसंगत उद्देश्य के लिए संघर्ष जारी रखने का संकल्प लिया है, ताकि दलाई लामा की इच्छाओं और आकांक्षाओं की प्राप्ति के लिए पूरे मन से सहयोग किया जा सके।’

 

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गदेन फोद्रंग की भूमिका

दलाई लामा ने यह पूरी तरह स्पष्ट कर दिया है कि अगले दलाई लामा को मान्यता देने का अधिकार सिर्फ गदेन फोद्रंग ट्रस्ट के पास होगा। इस प्रक्रिया में चीन या कोई अन्य राजनैतिक शक्ति हस्तक्षेप नहीं कर सकती। उन्होंने यह भी दोहराया कि अगला दलाई लामा पूर्व परंपरा के अनुरूप, ध्यानपूर्वक खोज और आध्यात्मिक चिन्हों के आधार पर ही चुना जाएगा।

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