कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन प्रबोधिनी या देवउठनी एकादशी मनाई जाती है। यह दिन हिन्दू पंचांग के अनुसार, धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं और हिंदू धर्म में शुभ कार्यों की दोबार शुरुआत होती है। देवउठनी एकादशी को भगवान विष्णु के जागरण का पर्व कहा जाता है, जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी (देवशयनी एकादशी) के बाद ठीक चार महीने के बाद आता है। इस दिन भक्तजन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना, व्रत और दीपदान करके उनके जागरण का उत्सव मनाते हैं।
धार्मिक मान्यता है कि इसी दिन से विवाह, गृहप्रवेश, यज्ञ और अन्य सभी शुभ कार्यों का मुहूर्त फिर से आरंभ हो जाता है। देवउठनी एकादशी का संबंध भगवान विष्णु के वामन अवतार से भी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, वामन भगवान ने दानव राजा बलि को पाताल लोक भेजने के बाद वहीं विश्राम किया था। देवताओं की प्रार्थना पर उन्होंने कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन जागकर वैकुण्ठ लौटने का वचन दिया था। तब से ही यह दिन देवताओं के जागरण के रूप में मनाया जाता है।
यह भी पढ़ें: बूढ़ी दीपावली क्यों मनाई जाती है? पहाड़ी क्षेत्रों में क्या है इसकी मान्यता
देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी 2025 में कब है?
वैदिक पंचांग के अनुसार, साल 2025 में देवउठनी एकादशी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन मनाई जाएगी। इस तिथि की शुरुआत 1 नवंबर 2025 के दिन, सुबह 9 बजकर 11 मिनट से होगी और इसका समापन 2 अक्टूबर 2025 के दिन सुबह 7 बजकर 31 मिनट पर होगा।
पारण तिथि- 2 नवंबर 2025 के दिन दोपहर 1 बजकर 11 मिनट से दोपहर 3 बजकर 23 मिनट तक बताई गई है।
यह भी पढ़ें: छठ पूजा के नियम: जानें व्रत के दौरान क्या करें और क्या न करें?
देवउठनी एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार, जब भगवान विष्णु शयन (सोते) करते हैं तो सभी देवता भी विश्राम करते हैं। मान्यता के अनुसार, इस दौरान पृथ्वी पर कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते। यह अवधि आषाढ़ शुक्ल एकादशी (देवशयनी एकादशी) से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवउठनी एकादशी) तक होती है।
कथाओं में कहा गया है कि एक बार जब दानव बलि ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया, तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया। वामन भगवान ने बलि से तीन पग भूमि मांगी, उसके बाद उन्होंने पहले पग में आकाश, दूसरे में पृथ्वी और तीसरे पग में बलि का सिर माप दिया। वामन भगवान ने बलि को पाताल लोक भेज दिया लेकिन उसकी भक्ति देखकर भगवान विष्णु स्वयं उसके लोक में जाकर रहने लगे।
देवताओं ने भगवान विष्णु की अनुपस्थिति से व्याकुल होकर प्रार्थना की, तब भगवान ने कहा कि चार महीने बाद, कार्तिक शुक्ल एकादशी को मैं जागूंगा और दोबारा वैकुण्ठ लौटूंगा। उसी दिन से देवउठनी एकादशी का आरंभ हुआ। इस दिन देवता, ऋषि और भक्त भगवान के जागरण का उत्सव मनाते हैं।
देवउठनी एकादशी से जुड़ी मान्यता
- ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु के जागने के साथ ही सृष्टि में शुभ कार्यों का आरंभ होता है।
- इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन होता है, यह विवाह भगवान विष्णु (शालिग्राम) और माता तुलसी (वृंदा) के प्रतीक रूप में मनाया जाता है।
- मान्यता के अनुसार, जो भी व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस दिन व्रत रखता है और भगवान विष्णु की आराधना करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
- मान्यता के अनुसार, यह दिन विवाह, गृहप्रवेश, भूमि पूजन, यज्ञ आदि शुभ कार्यों की दोबारा शुरुआत का प्रतीक माना जाता है।