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संवाद कथा: जब देवी ने त्रिदेवों को दिया अपने 32 रूपों का ज्ञान

देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों का वर्णन वेद-पुराणों में किया गया है। आइए जानते हैं उनके 32 रूप और उनकी विशेषताओं के बारें में।

Image of Devi Durga

देवी दुर्गा(Photo Credit: Canva)

देवी भागवत पुराण एक प्रमुख पुराण है जो विशेष रूप से मां भगवती की महिमा, शक्तियों और उनके विविध रूपों की व्याख्या करता है। इसमें एक महत्वपूर्ण प्रसंग है जब त्रिदेव — ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) — देवी से संवाद करते हैं और उनसे सृष्टि, पालन और संहार की शक्तियों के बारे में प्रश्न करते हैं। इस संवाद में देवी न केवल त्रिदेवों को अपने दिव्य स्वरूप का परिचय देती हैं, बल्कि अपने 32 विशेष रूपों के बारे में भी विस्तार से बताती हैं।

त्रिदेव और देवी का संवाद

एक बार ब्रह्मा, विष्णु और शिव गहन ध्यान और तप में लीन हो गए। उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि ब्रह्मांड की यह अपार शक्ति किसकी है और वह कौन है जो उन्हें भी संचालित करती है। तभी देवी भगवती प्रकट हुईं — अद्भुत तेज और सौंदर्य से भरपूर।

 

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त्रिदेवों ने विनम्रता से देवी से पूछा, 'हे आद्या शक्ति, आप कौन हैं? और यह संपूर्ण जगत आपकी शक्ति से कैसे संचालित होता है?”

 

देवी ने उत्तर दिया- 'हे ब्रह्मा, विष्णु और महेश, तुम सभी मेरे ही अंश से उत्पन्न हुए हो। मैं ही इस सृष्टि की आदि शक्ति हूं — अनादि, अजर, अमर और निर्गुण। सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार — ये सब मेरे ही विभिन्न रूप हैं, जिन्हें तुम लोग निभाते हो। तुम तीनों मेरी शक्ति से ही यह कार्य कर पा रहे हो।”

देवी के 32 रूप

इसके बाद देवी ने अपने 32 रूपों का वर्णन किया, जो समय-समय पर भक्तों की रक्षा, दुष्टों के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए प्रकट होते हैं। ये रूप विभिन्न गुणों, कार्यों और शक्तियों से युक्त हैं।

 

दुर्गा: संकटों से रक्षा करने वाली

 

काली: अधर्म का विनाश करने वाली


लक्ष्मी: धन, वैभव और समृद्धि की देवी


सरस्वती: ज्ञान, संगीत और बुद्धि की देवी


अन्नपूर्णा: अन्न और भोजन प्रदान करने वाली


चंडी: राक्षसों का संहार करने वाली


त्रिपुरा सुंदरी: सौंदर्य और प्रेम की प्रतीक


भवानी: जीवनदायिनी शक्ति


भ्रामरी: भ्रम से मुक्ति दिलाने वाली


दत्त्री: सभी दिशाओं में व्याप्त देवी


कामाख्या: इच्छा पूरी करने वाली


विष्णुमाया: मोह और माया की अधिष्ठात्री


भुवनेश्वरी: संपूर्ण जगत की स्वामिनी


महाकाली: काल की भी अधिपति शक्ति


महालक्ष्मी: सात्विक संपत्ति की देवी


महासरस्वती: शुद्ध ज्ञान की प्रतीक


शाकंभरी: वनस्पति और अन्न की देवी


नवदुर्गा: नवरात्रि में पूजित नौ रूप


दक्षिणकाली: न्याय देने वाली शक्ति


तारा: मार्गदर्शक देवी


मातंगी: वाणी और तंत्र की देवी


कुर्बा: रक्षा और युद्ध की देवी


भैरवी: क्रोध और शक्ति की प्रतीक


ललिता: सौंदर्य और सृजन की देवी


कालरात्रि: अज्ञान और भय का नाश करने वाली


सिद्धिदात्री: सिद्धि प्रदान करने वाली


महामाया: भ्रम और बंधनों से मुक्त करने वाली


विन्ध्यवासिनी: पर्वतों की अधिष्ठात्री


कात्यायनी: युद्ध में विजयी शक्ति

 

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हिंगलाज: सीमाओं की रक्षक


जयंतिका: विजय देने वाली देवी


रक्तदंतिका: राक्षसी प्रवृत्तियों का संहार करने वाली

देवी के रूपों का उद्देश्य

हर रूप का एक विशेष उद्देश्य होता है- कोई भक्तों को धन देता है, कोई विद्या, कोई भय से मुक्ति और कोई शत्रुओं का नाश करता है। देवी ने बताया कि ये सभी रूप एक ही शक्ति के भिन्न-भिन्न पक्ष हैं, जो समय के अनुसार रूप बदलते हैं ताकि धर्म की रक्षा हो सके।

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