देवशयनी एकादशी हिन्दू धर्म में बहुत ही पुण्यदायी और विशेष दिन माना जाता है। यह आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आता है, जब भगवान विष्णु क्षीर सागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस दिन से चातुर्मास की शुरुआत होती है जो कि चार महीनों तक चलता है। इस अवधि में भगवान विष्णु पृथ्वी पर सांसारिक कार्यों से विराम लेते हैं और भक्तगण नियम, व्रत, भक्ति और सेवा में लगे रहते हैं। इस पावन अवसर पर श्रीविष्णु का एक दिव्य स्तोत्र पढ़ा जाता है, जिसका भावार्थ अत्यंत प्रभावशाली और जीवन को पुण्यवान बनाने वाला है।
यह स्तोत्र भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों, रूपों और नामों का स्मरण कराता है। पहला श्लोक इस बात को स्पष्ट करता है कि जो व्यक्ति भगवान के सहस्त्र नामों का बार-बार जाप करता है, वह दिव्यता को प्राप्त करता है। भगवान के जिन-जिन नामों का इसमें स्मरण किया गया है, वह सभी उनके विभिन्न रूपों और कार्यों का प्रतीक हैं।
श्री विष्णु स्तोत्र
किं नु नाम सहस्राणि जपते च पुनः पुनः ।
यानि नामानि दिव्यानि तानि चाच केशवः ॥
अर्थ: जो मनुष्य भगवान के सहस्र नामों का बार-बार जाप करता है, वह दिव्य नामों का स्मरण करता है, जो स्वयं केशव (विष्णु) हैं।
मत्स्यं कूर्मं वराहं च वामनं च जनार्दनम् ।
गोविन्दं पुरीषाक्षं माधवं मधुसूदनम् ॥
अर्थ: जो भगवान के अवतार मत्स्य, कूर्म, वराह, वामन, जनार्दन, गोविन्द, पुरीषाक्ष (संपूर्ण सृष्टि के साक्षी), माधव, और मधुसूदन के नामों का स्मरण करता है...
पद्मनाभं सहस्राक्षं वनमालिं हलायुधम् ।
गोवर्धनं ऋषीकेशं वैकुण्ठं पुरुषोत्तमम् ॥
अर्थ: वह जो पद्मनाभ, सहस्राक्ष, वनमाली (वनमाला धारण करने वाले), हलायुध (बलराम), गोवर्धनधारी, ऋषीकेश, वैकुण्ठपति और पुरुषोत्तम नामों का जाप करता है...
यह भी पढ़ें: महर्षि भारद्वाज रचित 'विमान शास्त्र' और आधुनिक युग में इसका प्रभाव
विपं वा सुदेवं रामं नारायणं हरिम् ।
दामोदरं श्रीधरं च वेदान्तगदजं तथा ॥
अर्थ: वह जो विभु, सुदेव, राम, नारायण, हरि, दामोदर, श्रीधर और वेदों के सार को प्रकट करने वाले (वेदान्तगदज) भगवान विष्णु के नामों का स्मरण करता है...
अनन्तं कृगोपालं जपतो नास्ति पातकम् ।
गवां कोटिदानमेधशतं कन्यादानसहस्रकम् ॥
अर्थ: जो व्यक्ति अनंत और कृष्ण रूप गोपाल के नामों का जाप करता है, उसके लिए कोई पाप शेष नहीं रहता। ऐसा जाप करने से करोड़ों गायों का दान, सैकड़ों अश्वमेध यज्ञ और हजारों कन्याओं के दान के समान फल प्राप्त होता है।
अमायां वा पौर्णमास्यां एकाशां तथैव च ।
संध्याकाले रवेर्नित्यं प्रातःकाले तथैव च ॥
अर्थ: जो व्यक्ति अमावस्या, पूर्णिमा, एकादशी के दिन, संध्याकाल, प्रातःकाल और मध्यान्ह में इन नामों का नित्य जाप करता है।
मध्याह्ने च जपन्नित्यं सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥
अर्थ: वह मनुष्य नित्य इन नामों का मध्यान्ह में भी जाप करे तो वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
देवशयनी एकादशी का महत्व
देवशयनी एकादशी पर इस स्तोत्र का जाप इसलिए भी अधिक फलदायी माना गया है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु निद्रा में चले जाते हैं और उनके नामों का स्मरण उन्हें आत्मिक रूप से जागृत करता है। यह दिन आत्मचिंतन, संयम और भक्ति का प्रतीक है। जो इस दिन व्रत रखकर या इस स्तोत्र का जाप करके प्रभु का स्मरण करता है, उसे हजार यज्ञों और तपों के बराबर पुण्य फल प्राप्त होता है।