भारत की प्राचीन संस्कृति में भी स्त्रियों का स्थान केवल परिवार या समाज तक सीमित नहीं था, बल्कि वेदों के युग में वह ज्ञान, तप, साधना व दर्शन के क्षेत्र में भी अग्रणी थीं। उस समय महिलाएं भी ऋषि बन सकती थीं और उन्होंने वेदों की रचना में सक्रिय भूमिका निभाई। ऐसे कई उदाहरण वेदों में मिलते हैं जहां स्त्रियों ने मंत्रों की रचना की और समाज को आध्यात्मिक दिशा दी।
वेदों में महिला ऋषियों की भूमिका
वेद चार हैं- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। इनमें से ऋग्वेद सबसे पुराना और सबसे समृद्ध माना जाता है। ऋग्वेद में लगभग 30 महिला ऋषियों के नाम मिलते हैं, जिन्होंने वेद मंत्रों की रचना की थी। इन महिलाओं को ‘ऋषिका’ कहा जाता है, यानी वेदज्ञानी स्त्री। इनकी रचनाएं वैदिक मंत्रों में आज भी सुरक्षित हैं।
इन ऋषिकाओं का योगदान सिर्फ भक्ति और साधना तक सीमित नहीं था, बल्कि वह जीवन, ब्रह्मज्ञान, योग, सामाजिक संतुलन और स्त्री की गरिमा जैसे विषयों पर भी गहन विचार रखती थीं।
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प्रमुख महिला ऋषि और उनके योगदान
घोषा ऋषिका
घोषा ऋग्वेद की एक प्रमुख ऋषिका थीं। वे प्रसिद्द वैद्य ऋषि दधीचि की पुत्री थीं। घोषा ने दो सूक्तों की रचना की है जो ऋग्वेद के दसवें मंडल में आते हैं। उनके मंत्रों में विशेष रूप से आरोग्य, दीर्घायु और गृहस्थ जीवन की कामना की गई है। वे कहती हैं कि एक स्त्री को भी जीवन के हर क्षेत्र में पूर्ण अधिकार मिलना चाहिए — विवाह, विद्या, वैराग्य या सांसारिक सुख। घोषा के श्लोक आत्मविश्वास और स्त्री शक्ति को दर्शाते हैं।
अपाला ऋषिका
अपाला एक अत्यंत तपस्विनी और ज्ञानवती ऋषिका थीं। ऋग्वेद के आठवें मंडल में उनका सूक्त मिलता है। अपाला का शरीर एक समय रोगों से ग्रसित था लेकिन उन्होंने अपने तप और ध्यान से उस बीमारी को पराजित किया। इंद्र देवता ने उनके तप से प्रसन्न होकर उन्हें स्वास्थ्य और तेज प्रदान किया।

लोपामुद्रा ऋषिका
लोपामुद्रा प्राचीन ऋषि अगस्त्य की पत्नी थीं, लेकिन वे स्वयं भी एक महान ज्ञानयोगिनी थीं। उन्होंने ऋग्वेद के एक सूक्त की रचना की है। लोपामुद्रा ने स्त्री की इच्छा, प्रेम, दाम्पत्य जीवन और आत्मिक सुख जैसे विषयों पर खुलकर विचार व्यक्त किए। वह कहती हैं कि दांपत्य केवल संतानोत्पत्ति के लिए नहीं, बल्कि आत्मिक मिलन और संतुलन का माध्यम होना चाहिए।
गार्गी वाचक्नवी
गार्गी यजुर्वेद की महान दार्शनिका और विदुषी थीं। वे जनक राजा की सभा में हुए ब्रह्मवाद विवाद में भाग लेने वाली एकमात्र महिला थीं। उन्होंने याज्ञवल्क्य जैसे महान ऋषियों से प्रश्न किए और आत्मा, ब्रह्म, और ब्रह्मांड की रचना पर गहन तर्क रखे। गार्गी इतनी विद्वान थीं कि उन्हें ‘ब्रह्मवादिनी’ कहा गया। ग्रंथों में मौजूद उनके विचारों में दर्शन और विज्ञान का संतुलन देखने को मिलता है।
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मैत्रेयी ऋषिका
मैत्रेयी याज्ञवल्क्य की पत्नी और ब्रह्मज्ञानी महिला थीं। उन्होंने ब्रह्मविद्या को समझने के लिए गृहस्थ जीवन का त्याग किया और आत्मज्ञान की साधना में लग गईं। ‘बृहदारण्यक उपनिषद’ में उनका संवाद प्रसिद्ध है, जहां वह पूछती हैं – 'यदि मुझे संपूर्ण पृथ्वी का स्वामी बना दिया जाए, तो क्या मैं अमर हो जाऊँगी?' यह प्रश्न आत्मज्ञान के प्रति उनके उत्कट जिज्ञासा को दर्शाता है।
महिला ऋषियों के नियम और अधिकार
प्राचीन वैदिक काल में महिलाओं को वेद पढ़ने, यज्ञ करने और शास्त्रार्थ में भाग लेने की पूरी स्वतंत्रता थी। उपनयन संस्कार (जो वेद अध्ययन की पहली सीढ़ी होता है) महिलाओं का भी होता था। वे ब्रह्मचारिणी बनकर गुरुकुलों में शिक्षा ले सकती थीं।
महिला ऋषियों के लिए विशेष नियम नहीं थे, बल्कि वही नियम थे जो पुरुष ऋषियों के लिए थे, जिसमें सत्य का पालन, तप, स्वाध्याय और ब्रह्मचर्य। इसके साथ ईश्वर और आत्मा के संबंध में चिंतन व यज्ञ और मंत्रों का अध्ययन।