भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता में जैन धर्म और हिंदू धर्म दोनों की गहरी जड़ें हैं। हालांकि, दोनों परंपराओं की उत्पत्ति एक ही जगह से जुड़ी हुई मानी जाती है लेकिन इनके सिद्धांत और दर्शन एक-दूसरे से अलग हैं। जैन धर्म में ईश्वर को सृष्टि का रचयिता नहीं मानते हैं। जैन धर्म के लोग आत्मा की मुक्ति के लिए अहिंसा, अपरिग्रह और तपस्या को सर्वोच्च मानते हैं। जबकि हिंदू धर्म ईश्वर के विभिन्न स्वरूपों और उपासना पद्धतियों पर आधारित है।
हिंदू और जैन धर्मों में सांस्कृतिक समानताएं देखने को मिलती हैं। जैन समाज दीपावली, होली और अक्षय तृतीया जैसे कई हिंदू पर्व भी मनाता है, हालांकि उनका स्वरूप और महत्व कुछ अलग होता है। उदाहरण के लिए, दीपावली जैन धर्म में भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है। इसी तरह अक्षय तृतीया को जैन समाज पहले तीर्थंकर ऋषभदेव के आहरण दिवस के रूप में मानता है। ऐसे में जैन और हिंदू धर्म के बीच अंतर स्पष्ट है लेकिन त्योहारों की साझी परंपराएं इन दोनों को सांस्कृतिक रूप से एक सूत्र में बांधे रखती हैं।
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हिंदू धर्म और जैन धर्म का अंतर
हिंदू धर्म वेदों पर आधारित है। हिंदू धर्म में देवी–देवताओं की पूजा, अवतारवाद, कर्म-सिद्धांत, भक्ति और मोक्ष की धारणाएं प्रमुख मानी जाती हैं। हिंदू धर्म में विष्णु जी, शिव जी, देवी दुर्गा, गणेश जी, लक्ष्मी जी और अन्य देवी–देवताओं को पूजा जाता हैं।
वहीं, जैन धर्म महावीर स्वामी और 24 तीर्थंकरों की शिक्षाओं पर आधारित है। जैन धर्म वेदों को प्रमाण नहीं मानता है और इस धर्म में ईश्वर या देवी–देवताओं की सर्वोच्च भूमिका नहीं मानी जाती है। यहां आत्मा की शुद्धि, अहिंसा, अपरिग्रह, सत्य और तप को प्रमुख माना जाता है।
जैन धर्म और हिंदू धर्म के देवी–देवताओं में अंतर
हिंदू धर्म में देवताओं को सृष्टि के रचयिता, पालनकर्ता और संहारकर्ता के रूप में माना जाता हैं, हिंदू धर्म में मान्यता है कि पूरे संसार को देवी-देवता नियंत्रित करते है। वहीं, जैन धर्म के लोगों में देवी–देवता होते तो हैं लेकिन उनकी मान्यता है कि वे संसार को नियंत्रित नहीं करते हैं। जैन धर्म में भगवान के रूप में जिनकी पूजा की जाती है उन्हें 'लोकिक देवता' माना जाता है। जैन धर्म की मान्यता के अनुसार, लोकिक देवता वहीं हैं, जो पिछले पुण्य की वजह से देव योनि में जन्मे हैं।
जैन साधक लोकिक देवताओं की पूजा मुख्यतः सुरक्षा, समृद्धि और आशीर्वाद के लिए करते हैं। जैन धर्म में मोक्ष की प्राप्ति केवल आत्मा के परिश्रम, तप और ज्ञान से ही संभव मानी जाती है। जैन धर्म में उन तीर्थंकरों और सिद्ध पुरुषों को सर्वोच्च और पूज्य माना जाता हैं, जो स्वयं मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं और जिनकी आराधना साधक को मुक्ति की ओर ले जाती है।
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जैन धर्म में पूजा जाने वाले देव-देवताएं
तीर्थंकर
- जैन धर्म में केवल 24 तीर्थंकरों (जिनों) की पूजा की जाती है, इन्हें पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने वाले आत्मा-पुरुष के रूप में पूजा जाता हैं।
- इन्हें देवों की तरह नहीं, बल्कि आदर्श गुरु, आध्यात्मिक मार्गदर्शक और मोक्ष की यात्रा के सज्जन पथ प्रदर्शक माना जाता है।
- प्रमुख रूप से पूजे जाने वाले तीर्थंकरों में ऋषभनाथ, पार्श्वनाथ, वासुपूज्य, और महावीर शामिल हैं
यक्ष–यक्षिणी (रक्षक देवता)
- जैन धर्म में दर्शन के साथ-साथ कुछ राजकीय और स्थानीय देवताओं का भी विशेष स्थान माना जाता है- जिन्हें यक्ष (पुरुष सहयोगी देवता) और यक्षिणी (माधुरी या संस्थापक देवी) कहा जाता है।
- ये मूर्तियां अक्सर तीर्थंकरों के साथ मंदिर में स्थापित होती हैं और मान्यता है कि ये साधकों की रक्षा और समृद्धि सुनिश्चित करते हैं
- उदाहरणत: गोमुखा यक्ष, जैन धर्म के एक प्रमुख रक्षक देवता है जो प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ के साथ पूजे जाते हैं
देवता-देवियां (लोक देवता)
कुछ जैन सम्प्रदायों में लोक देवी-देवताओं की पूजा जायज होती है, जैसे पद्मावती देवी, चक्रेश्वरी देवी आदि। जिन्हें तीर्थंकरों के साथ रखा जाता है और रक्षक के रूप में पूजा जाता है