भारत में जैन धर्म दो प्रमुख सम्प्रदायों में बंटा हुआ है। जैन धर्म के संप्रदायों में श्वेतांबर और दिगंबर के नाम शामिल हैं। दोनों ही सम्प्रदाय अहिंसा, सत्य और मोक्ष के सिद्धांतों पर आधारित हैं लेकिन आचार-विचार, वेश-भूषा और धार्मिक मान्यताओं में गहरा अंतर रखते हैं। जहां श्वेतांबर साधु-संत सफेद कपड़ा पहनते हैं, वहीं दिगंबर साधु पूरी तरह निर्वस्त्र रहकर तपस्या करते हैं। दोनों के पूजा-पाठ, मूर्ति-स्थापना और महिलाओं के मोक्ष को लेकर विचार भी अलग हैं।
इतिहासकारों के अनुसार, इन दोनों सम्प्रदायों का विभाजन लगभग दो हजार वर्ष पहले उस समय हुआ जब जैन मुनि भद्रबाहु के नेतृत्व में दक्षिण भारत चले गए और स्थुलभद्र के अनुयायी मगध में ही रह गए। जलवायु, सामाजिक परिस्थितियों और साधना-पद्धतियों की वजह से दोनों समूहों में समय के साथ मतभेद गहराते गए और दो अलग परंपराएं विकसित हुईं।
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दिगंबर और श्वेतांबर में प्रमुख अंतर क्या है?
वेश-भूषा
- श्वेतांबर मुनि सफेद कपड़ा पहनते हैं।
- दिगंबर मुनि निर्वस्त्र यानी की बिना कपड़ों के रहते हैं, इस संप्रदाय के मुनि कपड़ा त्यागकर तप करते हैं।
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स्त्रियों का मोक्ष-दृष्टिकोण
- श्वेतांबर संप्रदाय में महिलाओं को मोक्ष की योग्य माना जाता है।
- वहीं, दिगंबर संप्रदाय में वर्तमान स्थिति में स्त्रियों को मोक्ष के योग्य नहीं माना जाता है। इस संप्रदाय में पुरुष जन्म के बाद ही मोक्ष योग्य माना जाता है।
धार्मिक ग्रंथ
- श्वेतांबरों के पास 12 अंग और 12 उपांग माने गए हैं, जिनका संकलन उन्होंने किया है।
- दिगंबरों के अनुसार, मूल आगम ग्रंथ समय के साथ नष्ट हो गए, इसलिए उन्होंने बाद में ‘प्रवचनसार’, ‘समयसार’, ‘तत्त्वार्थसूत्र’ आदि ग्रंथों को प्रमुख माना।
मूर्ति का श्रृंगार
- श्वेतांबर संप्रदाय में तर्थंकरों की मूर्तियां वस्त्र और आभूषण सहित होती हैं।
- वहीं, दिगंबर संप्रदाय में मूर्तियों में वस्त्र, आभूषण यहां तक कि बाल-नाखून आदि भी नहीं होते हैं। निर्वस्त्र छवि इस संप्रदाय में प्रमुख मानी जाती है।
भगवान महावीर का जीवन चित्रण
- श्वेतांबरों का मत है कि भगवान महावीर का जन्म कुमारिका त्रिशला के गर्भ में हुआ था और उन्होंने वस्त्र धारण कर संन्यास लिया।
- दिगंबरों का विश्वास है कि महावीर ने निर्वस्त्र होकर संन्यास ग्रहण किया और संपूर्ण जीवन वस्त्रविहीन रहकर साधना की।
साधु-साध्वियों का आचार
- श्वेतांबर साधु अपने पास राजोहरण (झाड़ू) और कमंडलु (पानी का पात्र) रखते हैं।
- दिगंबर साधु केवल मोरपंख झाड़ू (पिच्छी) और कमंडलु रखते हैं और जमीन पर हाथ से भोजन ग्रहण करते हैं।
भौगोलिक प्रसार
- श्वेतांबर संप्रदाय मुख्य रूप से गुजरात, राजस्थान और पश्चिमी भारत में फैला है।
- दिगंबर संप्रदाय मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, दक्षिण भारत और बुंदेलखंड में ज्यादा पाया जाता है।
श्वेतांबर और दिगंबर संप्रदाय की समानताएं
- दोनों सम्प्रदाय त्रिरत्न (संगत – ज्ञान – चारित्र), अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह आदि मूल जैन सिद्धांत स्वीकारते हैं।
- दोनों तीर्थंकरों की पूजा करते हैं, हालांकि शैली-विधान अलग-अलग हैं।
- दोनों का लक्ष्य आत्मा-शुद्धि, कर्म-बंधन से मुक्ति और मोक्ष-प्राप्ति है।