भगवान कृष्ण की नगरी द्वारका, हिंदू धर्म के 4 धामों से एक है। मथुरा में अत्याचारी राजा जरासंध के लगातार आक्रमणों से तंग आकर भगवान कृष्ण ने यह नगरी छोड़ थी। भगवान ने रणछोड़ बनकर मथुरा से यदुवंशियों को लेकर द्वारका जा बसे। इस नगरी को भगवान कृष्ण ने रचाया-बसाया है। यह नगरी, आदिगुरु शंकराचार्य की द्वारा स्थापित चारधामों से एक धाम है।
ऐसी पौराणिक मान्यता है कि द्वापर में महाभारत के अंत के बाद जब ऋषियों के श्राप की वजह से यदुवंश का नाश हो गया, तब भगवान ने भी अपने लौटने के मन बना लिया। उनके पांव में एक शिकारी ने तीर मारा और उन्होंने देह त्याग दिया। उनके देह त्यागने के बाद ही द्वारका नगरी डूब गई।
कहते हैं कि भेट द्वारका में ही डूबी हुई नगरी है, जिसे देखने लाखों श्रद्धालु आते हैं। यहां द्वारका धाम का मंदिर भी है, जो 16वीं शताब्दी में बना था। यहीं द्वारकाधीश मंदिर से करीब 2 किलोमीटर दूर एक मंदिर भगवान कृष्ण की पत्नी रुक्मणी का भी है। द्वारका अब दो नगरियों में बंटी है। एक द्वारका गोमती द्वारका है, दूसरी द्वारका भेट द्वारका है।
इसलिए कृष्ण कहलाए द्वारकाधीश
द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण भगवान कृष्ण के वंशज राजा वज्रनाभ ने कराया था। ऐसी मान्यता है कि भगवान बद्रीनाथ धाम में स्नान करते हैं, स्नान के बाद जगन्नाथ धाम में भोजन करते हैं और रामेश्वरम में विश्राम करते हैं, वहां से पुरी जाकर विश्राम करते हैं। द्वारकाधाम तो उन्हीं की नगरी है।
क्यों खास है द्वारका धाम?
द्वारकाधीश मंदिर के गर्भगृह में भगवान कृष्ण चांदी के सिंहासन पर विराजते हैं। यहां उनकी प्रतिमा चतुर्भुज रूप में है। भगवान कृष्ण के हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल है। उनकी अलौकिक प्रतिमा लोगों का मन मोह लेती है। मंदिर के दक्षिणी हिस्से में चक्रतीर्थ घाट है। वहीं से थोड़ी दूर पर समुद्रनारायण मंदिर है। यहीं पंचतीर्थ है, जहां के 5 कुओं के जल से स्नान करते हैं।
कैसा है द्वारकाधीश मंदिर?
द्वारकाधीश मंदिर अलौकिक है। मंदिर में 5 तल और 72 स्तंभ हैं। मंदिर पर सूर्य और चंद्रमा के प्रतीकों वाली धर्मध्वजा फहराती है।
कहां देखें समुद्र में डूबी द्वारका नगरी?
अरब सागर के काठियावाड़ हिस्से में समुद्र में समाई हुई द्वारका नगरी है। यह भेट द्वारका में आता है। यहां प्राचीन द्वारका के कुछ अवशेष मिले हैं। इसकी बनावट समुद्र के बीच द्वीप पर बने किले की तरह है। इसी हिस्से को कुशस्थली भी कहा गया है।