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ईद से एक रात पहले क्यों किया जाता है शब-ए-जायजा? जानें कुछ खास बातें

ईद से एक रात पहले मुस्लिम धर्म में कई लोग शब-ए-जायजा करते हैं। आइए जानते हैं यह रस्म क्या है और क्यों किया जाता है।

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सांकेतिक चित्र(Photo Credit: Canva Image)

ईद का दिन मुस्लिम धर्म के लिए एक बहुत ही खास दिन होता है। ईद दो तरह की होती है — ईद-उल-फितर और ईद-उल-अजहा। इनमें से ईद-उल-फितर, रमजान के महीने के खत्म होने पर मनाई जाती है। यह दिन इबादत, भाईचारे और नेकियों से भरा होता है। ईद के दिन अल्लाह का शुक्रिया अदा किया जाता है। 

ईद के दिन की खास बातें

नमाज-ए-ईद: ईद की सुबह मुसलमान नहाकर करके नए या साफ कपड़े पहनते हैं और मस्जिद या ईदगाह में जाकर ईद की नमाज अदा करते हैं। नमाज के बाद सभी एक-दूसरे को गले लगाकर ईद की मुबारकबाद देते हैं।

 

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सदका-ए-फित्र: ईद की नमाज से पहले गरीबों और जरूरतमंदों को ‘सदका-ए-फित्र’ देना जरूरी होता है। यह सभी मुस्लिम के लिए जरूरी होता है ताकि समाज के सभी लोग ईद की खुशी में शामिल हो सकें।

 

मेल-मिलाप: ईद के दिन लोग अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के घर जाते हैं, मिठाइयां बांटते है। साथ ही ईद की रात में शब-ए-जायजा किया जाता है, जिसे मुस्लिम धर्म में काफी अहम माना जाता है।

शब-ए-जायजा का मतलब

बता दें कि ‘शब’ का मतलब है रात और ‘जायजा’ का मतलब होता है खुद के बारे में सोचना और माफी मांगना। शब-ए-जायजा का मतलब होता है ‘अपने कर्मों के बारे में रात में सोचना’। यह रात रमजान के महीने की आखिरी रात होती है, यानी ईद से एक दिन पहले की रात। यह रात बहुत खास मानी जाती है।

शब-ए-जायजा की अहमियत

इस रात को मुसलमान अल्लाह के सामने खुद का जायजा लेते हैं कि उन्होंने रमजान के महीने में क्या-क्या अच्छा किया, कौन-से रोजे रखे, नमाज पढ़ी, जकात दी या नहीं। यह वह समय होता है, जब इंसान अपनी गलतियों की माफी मांगता है और आगे की जिंदगी को नेक रास्ते पर चलने का इरादा करता है।

 

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इस रात में मुसलमान इबादत करते हैं, कुरान की तिलावत करते हैं और रात भर जागकर अल्लाह से दुआ मांगते हैं कि उनके रोजे और नमाजें कुबूल हों और अगले साल फिर रमजान का महीना नसीब हो।

शब-ए-जायजा और इबादत

शब-ए-जायजा की रात को कई लोग मस्जिदों में जाकर नफ्ल नमाजें पढ़ते हैं, जो जरूरी नहीं होती लेकिन मुस्लिम धर्म में यह मान्यता है कि यह अल्लाह की रहमत पाने का एक जरिया होती हैं। साथ ही इस रात को ज्यादा से ज्यादा इस्तेगफार (माफी मांगना) और दुआ करने की सलाह दी जाती है। बता दें कि इसका जिक्र कुरान या हदीस में नहीं किया गया है सामान्य प्रचलन है, जिसमें लोग रमजान के खत्म होने पर इबादत करते हैं। यह धार्मिक तौर पर जरूरी नहीं है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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