सनातन संस्कृति में भगवान विष्णु की उपासना के लिए एकादशी व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। माघ में पहला एकादशी व्रत षटतिला एकादशी व्रत के रूप में रखा जाएगा। मानयता है कि इस विशेष दिन पर पूजा-पाठ करने से व्यक्ति की सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है और व्यक्ति को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, 25 जनवरी के दिन यह व्रत रखा जाएगा और इस विशेष दिन पर शालिग्राम भगवान की उपासना का विधान है।
बता दें कि भगवान शालिग्राम को हिंदू धर्म में भगवान विष्णु का साक्षात रूप मान कर पूजा जाता है। शालिग्राम एक पवित्र शिला है, जिनकी लोग श्रद्धाभाव से पूजा करते हैं। यह नेपाल की गंडकी नदी से प्राप्त होता है और मान्यता है कि इसे घर में रखने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
शालिग्राम की पूजा विधि
पूजा शुरू करने से पहले स्वयं स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को साफ करें और शालिग्राम को गंगाजल से स्नान कराएं। शालिग्राम का अभिषेक दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से करें। इसे पंचामृत स्नान कहते हैं। अभिषेक के बाद शालिग्राम को शुद्ध जल से धोकर पवित्र वस्त्र से साफ करें।
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भगवान शालिग्राम की पूजा में तुलसी पत्र का विशेष महत्व है। शालिग्राम पर तुलसी के पत्ते चढ़ाएं और यह ध्यान रखें कि तुलसी के पत्ते ताजे और साफ हों। शालिग्राम पर चंदन, कुंकुम और सुगंधित धूप अर्पित करें। इसके बाद उन्हें फूल चढ़ाएं। विशेष रूप से सफेद और पीले फूल अर्पित करना शुभ माना जाता है।
शालिग्राम के सामने घी का दीपक जलाएं और नैवेद्य के रूप में फल, मिष्ठान्न या पंचामृत अर्पित करें। भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें। विशेष रूप से 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' और 'श्री विष्णु सहस्रनाम' का पाठ करें। भजन और कीर्तन के माध्यम से भगवान शालिग्राम की महिमा का गुणगान करें। पूजा के अंत में भगवान शालिग्राम की आरती करें और सभी परिवारजनों को प्रसाद वितरित करें।
शालिग्राम की उत्पत्ति की कथा
शालिग्राम की उत्पत्ति से जुड़ी कथा का वर्णन पुराणों में मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार राक्षस जलंधर ने अपने तप और शक्ति से तीनों लोकों अपना आतंक फैला दिया था। उसकी शक्ति का कारण उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म था। जलंधर को कोई पराजित नहीं कर सकता था, क्योंकि वृंदा का तप जालंधर को शक्ति देता था, जिस वजह से देवता भी उसे हराने में सक्षम नहीं थे।
इसी दुविधा को साथ देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे। श्री हरि ने जलंधर का अंत करने के लिए एक योजना बनाई। उन्होंने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने के लिए अपना रूप बदलकर जलंधर का रूप धारण किया और वृंदा के पास गए। वृंदा ने भगवान विष्णु को जलंधर समझकर उनके साथ दांपत्य व्यवहार किया, जिससे पतिव्रता धर्म भंग हो गया। इसके बाद भगवान शिव ने जलंधर का वध कर दिया। जब वृंदा को यह सच पता चला तब उसने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि उनका हृदय पत्थर के समान है इसलिए वे पत्थर का रूप में बदल जाएंगे। इसी श्राप के प्रभाव से भगवान विष्णु शालिग्राम के रूप में प्रकट हुए।
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हालांकि, भगवान के शालिग्राम रूप में आने से सृष्टि का संतुलन बिगड़ गया, जिसके बाद देवताओं ने वृंदा से अपना श्राप वापस लेने की प्रार्थना की। वृंदा ने अपना श्राप वापस ले लिया और फिर आत्मदाह कर लिया। कहते हैं कि वृंदा की राख से देवी तुलसी प्रकट हुईं और भगवान ने उन्हें अपनी पत्नी होने का आशीर्वाद दिया। बता दें कि शालिग्राम नेपाल की गंडकी नदी में पाए जाते हैं और आज भी इनकी पूजा भगवान विष्णु के स्वरूप में की जाती है।
शालिग्राम पूजा का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शालिग्राम की पूजा करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है। यह भगवान विष्णु के आशीर्वाद का प्रतीक है और इसे घर में रखने से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है। एकादशी के दिन शालिग्राम की पूजा करने से विष्णु भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह दिन मोक्ष प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम माना जाता है और शालिग्राम पूजा से व्यक्ति के सभी पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
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