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जब गणेश जी ने पिता की आज्ञा के लिए सहा भगवान परशुराम का वार

हिंदू धर्म में संकष्टी चतुर्थी को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। आइए जानते हैं, इस व्रत से जुड़ी रोचक कथा और महत्व।

AI Image of Bhagwan Ganesh Puja

चतुर्थी व्रत के दिन है भगवान गणेश की उपासना का विधान।(Photo Credit: AI)

हिंदू धर्म में भगवान गणेश को विघ्नहर्ता के के रूप में पूजा जाता है। उनके अनेक नाम हैं, जिसमें गणपति, लंबोदर, गजानन और उनमें से एक प्रमुख नाम 'एकदंत' है, जिसका अर्थ 'एक दांत वाले देवता' है। इस नाम के पीछे एक विशेष पौराणिक कथा जुड़ी हुई है जो भगवान गणेश के साहस दर्शाती है।

एकदंत गणेश की कथा

पुराणों के अनुसार, एक बार महर्षि परशुराम, जो भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं, भगवान शिव से मिलने कैलाश पर्वत पहुंचे। उस समय भगवान शिव विश्राम कर रहे थे और उन्होंने अपने पुत्र गणेश को आदेश दिया कि कोई उन्हें परेशान न करे।

 

जब परशुराम वहां पहुंचे और शिव से मिलने की जिद करने लगे, तो गणेशजी ने उन्हें रोक दिया। परशुराम को यह बात अपमानजनक लगी और उन्होंने अपने क्रोध में आकर अपने परशु (कुल्हाड़ी) से गणेश जी पर वार कर दिया। यह परशु स्वयं भगवान शिव का दिया हुआ था, इसलिए गणेशजी ने उसका सम्मान रखते हुए उस वार को सहन किया। इस परशु के प्रहार से गणेशजी का एक दांत टूट गया और तभी से उनका नाम 'एकदंत' पड़ा।

 

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इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि भगवान गणेश केवल शक्ति के प्रतीक नहीं हैं, बल्कि वे सम्मान, संयम और त्याग के भी प्रतीक हैं। उन्होंने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए अपने शरीर का कष्ट सह लिया लेकिन अपने कर्तव्य से विचलित नहीं हुए।

एकदंत संकष्टी व्रत का महत्व

संकष्टी चतुर्थी हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को आती है और भगवान गणेश की पूजा का विशेष दिन मानी जाती है। साल में 12 संकष्टी चतुर्थियां होती हैं और प्रत्येक का एक विशेष नाम होता है। इन्हीं में से एक 'एकदंत संकष्टी चतुर्थी' व्रत को भी बहुत खास माना जाता, जो भगवान गणेश के 'एकदंत' रूप को समर्पित है।

 

इस दिन भगवान गणेश की विशेष पूजा की जाती है और व्रत का पालन किया जाता है। यह व्रत खास तौर पर संकटों से मुक्ति, मानसिक शांति, परिवारिक सुख और संतान की समृद्धि के लिए किया जाता है।

व्रत विधि

  • सुबह जल्दी स्नान करके साफ वस्त्र धारण करें और गणेशजी की मूर्ति के समक्ष दीपक जलाएं।
  • उन्हें दूर्वा, लाल फूल, मोदक या लड्डू अर्पित करें।
  • गणेश जी के 'एकदंत' स्वरूप का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
  • दिनभर व्रत रखें और शाम को चंद्रमा के दर्शन के बाद व्रत खोलें।
  • रात को चंद्रमा को अर्घ्य देकर गणेश जी की कथा सुनना आवश्यक होता है।

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इस पूजा और व्रत के लाभ

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत सभी प्रकार की बाधाओं और संकटों से छुटकारा दिलाता है। साथ ही पढ़ाई, नौकरी, व्यापार या दांपत्य जीवन में आने वाली समस्याएं दूर होती हैं।

एक मान्यता यह भी है कि बच्चों के लिए किया गया यह व्रत उन्हें दीर्घायु और बुद्धि प्रदान करता है। इसके साथ इस व्रत से मानसिक शांति, आत्मिक संतुलन और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

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