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फाल्गुन पूर्णिमा व्रत को क्यों कहते हैं पुण्यदायी, यहां जानें कथा

हिंदू धर्म में पूर्णिमा व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। आइए जानते हैं, कब रखा जाएगा फाल्गुन पूर्णिमा व्रत और पौराणिक कथा।

AI Image of Lord Vishnu in Temple

भगवान विष्णु पूजा।(Photo Credit: AI Image)

हिंदू धर्म में फाल्गुन पूर्णिमा को बहुत ही महत्वपूर्ण व्रतों में गिन जाता है। यह दिन विशेष रूप से होलिका दहन और होलाष्टक के समापन के रूप में प्रसिद्ध है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन व्रत रखने और पूजा-पाठ करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि इस दिन स्नान-दान और हवन करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

फाल्गुन पूर्णिमा व्रत 2025 तिथि

फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 13 मार्च 2025 को सुबह 10:35 बजे से

फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि समाप्त: 14 मार्च 2025 को दोहपर 12:23 बजे तक

फाल्गुन पूर्णिमा व्रत: 13 मार्च 2025, गुरुवार

 

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फाल्गुन पूर्णिमा की पौराणिक कथा

फाल्गुन पूर्णिमा का संबंध प्रह्लाद, होलिका और भगवान विष्णु से जुड़ा हुआ है। पौराणिक काल में हिरण्यकशिपु नाम का असुरों का राजा था, जो स्वयं को देवताओं से भी शक्तिशाली मानता था। उसने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी से यह वरदान प्राप्त कर लिया कि कोई भी मानव, देवता, राक्षस, पशु या अस्त्र-शस्त्र उसे मार नहीं सकता। इस वरदान के कारण वह अहंकारी और अत्याचारी बन गया।

 

हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का परम भक्त था। वह हर समय विष्णु जी के नाम जाप करता था और उनकी आराधना करता था। यह बात हिरण्यकशिपु को सहन नहीं हुई। उसने अपने पुत्र को बार-बार हरि भक्ति छोड़ने की चेतावनी दी लेकिन प्रह्लाद अपने मार्ग पर अडिग रहे।

 

गुस्से में आकर हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए, जिसमें ऊंची पहाड़ी से गिराया लेकिन विष्णु जी की कृपा से वह सुरक्षित रहे। उन्हें विष पिलाने की कोशिश की पर वह विष भी अमृत बन गया और हाथी के पैरों तले कुचलने की योजना बनाई लेकिन हाथी ने उन्हें छुआ तक नहीं।

 

जब सभी उपाय विफल हो गए, तो हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका को बुलाया। होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जल सकती। हिरण्यकशिपु ने योजना बनाई कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठेगी और प्रह्लाद जलकर भस्म हो जाएगा।

 

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होलिका ने फाल्गुन पूर्णिमा के दिन प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। हालांकि, भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद फिर सुरक्षित बच गए, जबकि होलिका स्वयं जलकर राख हो गई। इसी घटना की स्मृति में फाल्गुन पूर्णिमा की रात को होलिका दहन किया जाता है, साथ ही कई लोग व्रत का पालं करते हैं।

फाल्गुन पूर्णिमा व्रत का महत्व

मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन व्रत और होलिका दहन की अग्नि की परिक्रमा करने से नकारात्मक शक्तियां नष्ट हो जाती हैं।
इस दिन दान, स्नान और हवन करने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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