धन के देवता कुबेर और विघ्नहर्ता गणेश की कथा आज भी आस्था और विनम्रता का बड़ा संदेश देती है। मान्यता है कि एक बार अहंकार से भरे कुबेर भगवान ने गणेश जी को अपने घर भोज में आमंत्रित किया था, जिससे वह अपनी अपार संपत्ति और ऐश्वर्य का प्रदर्शन कर सकें। कथा के अनुसार, जब गणेश जी ने भोजन करना शुरू किया तो भगवान कुबेर के घर के सारे भंडार खाली हो गए थे।
प्रचलित कथा के अनुसार, अंत में भगवान कुबेर को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह भगवान शिव-पार्वती से क्षमा मांगने पहुंचे थे। इस कथा को शिव पुराण और गणेश पुराण में विस्तार से बताया गया है। यह प्रसंग केवल धार्मिक आस्था ही नहीं, बल्कि जीवन के उस शाश्वत सत्य को भी उजागर करता है कि धन और वैभव से नहीं बल्कि विनम्रता और भक्ति से ही ईश्वर को प्रसन्न किया जा सकता है।
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गणेश जी और भगवान कुबेर की कथा
कुबेर को देवताओं का कोषाध्यक्ष और धन का देवता माना जाता है। उनके पास अपार धन-संपत्ति थी। एक बार भगवान कुबेर अपने वैभव और ऐश्वर्य का अहंकार करने लगे। उन्हें लगा कि उनके पास जितना धन है, उतना और किसी के पास नहीं है। इसी घमंड में उन्होंने कैलाश पर्वत पर भगवान शिव और माता पार्वती के दर्शन किए और उन्हें अपने महल में भोजन के लिए आमंत्रित किया।
भगवान शिव ने मुस्कुराकर कहा, 'हम तो तपस्वी हैं, हमें भोग की इच्छा नहीं है लेकिन तुम्हारा निमंत्रण व्यर्थ न जाए, इसलिए मैं अपने पुत्र गणेश को भेज रहा हूं। तुम उनका सत्कार करना।' कथा के अनुसार, कुबेर को यह सुनकर प्रसन्नता हुई और वह सोचने लगे कि गणेशजी अकेले आएंगे तो उनके लिए भोज का आयोजन करना आसान रहेगा लेकिन गणेशजी बचपन से ही बहुत भोले होने के साथ-साथ भोजन प्रेमी भी थे।
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गणेशजी का अद्भुत भोजन
कथा के अनुसार, गणेशजी कुबेर भगवान के महल पहुंचे और भोजन करना शुरू किया। उन्होंने एक थाल, फिर दूसरा, फिर तीसरा, इस तरह महल के सारे व्यंजन खा लिए लेकिन गणेशजी की भूख शांत ही नहीं हुई। उन्होंने पूरा भोजनालय, भंडार, अनाज के गोदाम तक खाली कर डाले।
जब सब भोजन खत्म हो गया तो गणेशजी क्रोधित होकर कुबेर को ही निगलने का प्रयास करने लगे। पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार, गणेश जी भगवान कुबेर से बोले, 'मेरी भूख अभी शांत नहीं हुई, अब मैं तुम्हें ही खा जाऊंगा।'
कुबेर जी की घबराहट और समाधान
भगवान कुबेर घबराकर सीधे कैलाश पर्वत पहुंचे और भगवान शिव-पार्वती से प्रार्थना करने लगे। उन्होंने कहा, 'हे देव! मैंने अहंकारवश गणेशजी को भोज पर बुलाया था लेकिन उनकी भूख तो खत्म ही नही हो रही है। कृपया मेरी रक्षा कीजिए।' तब माता पार्वती ने भगवान कुबेर को एक मुट्ठी भुने हुए चावल (अक्षत/खिचड़ी) दिए और कहा कि इन्हें गणेशजी को प्रेम और विनम्रता से खिलाओ। जब कुबेर जी ने वही भुने हुए चावल गणेशजी को भक्ति और आदर से अर्पित किए, तब गणेशजी की भूख शांत हो गई।
यह कथा किस ग्रंथ में है?
गणेशजी और कुबेर की यह कथा शिवपुराण (रुद्र संहिता) और गणेशपुराण में वर्णित है। इसके अलावा यह कहानी कई क्षेत्रीय लोककथाओं और धार्मिक ग्रंथों में भी मिलती है और बच्चों को गणेशजी के गुण सिखाने के लिए अक्सर सुनाई जाती है।