पवित्र नदी गंगा को हिन्दू धर्म में मोक्षदायनी के रूप में पूजा जाता है। देश के पांच राज्य- उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से होते हुए गंगा बंगाल की खाड़ी में जाती है। गंगा का उद्गम उत्तराखंड के पहाड़ों में स्थित गंगोत्री ग्लेशियर से होता है। हालांकि वास्तविक उद्गम स्थल 18 मील ऊपर श्रीमुख पर्वत से है, जहां से गंगा की धारा फूटती है। लेकिन धर्म शास्त्रों में गंगा के धरती पर आने और उनके महत्व को विस्तार से बताया गया है आइए जानते हैं धरती पर कैसे आईं ‘मोक्षदायिनी गंगा’?
देवी गंगा के जन्म की कथा
वामन पुराण में मां गंगा के जन्म की कथा विदित है, जिसमें यह बताया गया कि जब भगवान विष्णु ने भगवान वामन के रूप में अवतरण लिया था। भगवान वामन अपना एक पैर आकाश की ओर उठाया। तब ब्रह्मा जी भगवान श्री हरि के चरण धोए और उस जल अपने कमंडल में भर लिया। ब्रह्मा जी के कमंडल में भरे जल से दिव्य और पवित्र देवी गंगा का जन्म हुआ। इसके बाद मां गंगा की देखरेख किए लिए ब्रह्मा जी उन्हें पर्वत राज हिमालय को सौंप दिया।
धरती पर कैसे आईं मां गंगा
प्राचीन काल में राजा सगर नाम के एक प्रतापी और शक्तिशाली राजा हुए। उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया, जिसमें उनके यज्ञ का घोड़ा सभी स्थानों का भ्रमण करता था। देवताओं के राजा इंद्र ने अश्वमेध यज्ञ में बढ़ा उत्पन्न करने के लिए उस घोड़े को चुरा लिया और उसे कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया।
जब राजा सगर को घोड़े के लापता होने की खबर मिली, तो उन्होंने अपने 60,000 पुत्रों को घोड़े की खोज में भेजा। घोड़े को खोजते-खोजते उनके पुत्र कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे और वहां बंधे घोड़े को देखकर क्रोधित हो गए। उन्हें यह भ्रम हुआ कि कपिल मुनि ने घोड़ा चुराया है, और उन्होंने आश्रम पर आक्रमण कर दिया।
कपिल मुनि उस समय घोर तपस्या में लीन थे। बाहर हलचल सुनकर जब उनकी आंखें खुलीं और उन्होंने यह देखा, तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए। उनके क्रोध से एक अग्नि-ज्वाला उठी और राजा सगर के सभी 60,000 पुत्र भस्म हो गए। जब राजा सगर के पोते अंशुमान को यह पता चला, तो उन्होंने कपिल मुनि से अपने भाइयों की आत्मा को मुक्ति देने की प्रार्थना की। कपिल मुनि ने सुझाव दिया कि पवित्र गंगाजल का भस्म पर छिड़काव करने से ही उनकी आत्मा को मुक्ति मिल सकती है। अंशुमान ने गंगा को धरती पर लाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो पाए।
इसके पश्चात अंशुमान के पोते राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा को मुक्ति देने के लिए कठोर तपस्या शुरू की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा धरती पर आने के लिए तैयार हुईं। लेकिन गंगा का वेग इतना अधिक था कि उनके आते ही धरती पर तबाही मच सकती थी।
तब राजा भगीरथ को यह सुझाव दिया कि इस समस्या को हल करने के लिए भगवान शिव से प्रार्थना करें। तब राजा भगीरथ ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की और महादेव ने राजा की प्रार्थना स्वीकार की। गंगा के वेग को नियंत्रित करने के लिए महादेव ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण किया। अंततः गंगा धरती पर आईं और राजा सगर के 60,000 पुत्रों का उद्धार हुआ और तभी से गंगा को मोक्षदायिनी कहा जाता है।
क्या स्वर्ग लौट जाएगी देवी गंगा?
श्रीमद् देवी महापुराण में एक कथा का वर्णन किया गया है, जिसमें यह बताया गया कि कलयुग के 5000 वर्ष पूरे होने पर देवी गंगा का पृथ्वी पर समय पूरा हो जाएगा और वह स्वर्ग वापस लौट जाएंगी। इस बात को यदि हम वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो यह सच होता हुआ दिखाई दे रहा है। वैज्ञानिक यह मान रहे हैं कि जिस गौमुख ग्लेशियर से गंगा का उद्गम हो रहा है, उसका दायरा धीरे-धीरे घट रहा है। जो गंगा नदी के लिए अच्छा सूचक नहीं है।
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