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गंगोत्री धाम: इस जगह अवतरित हुई थीं गंगा, चार धाम यात्रा का जरूरी पड़ाव

चार धाम यात्रा में गंगोत्री धाम महत्वपूर्ण पड़ाव है, जहां से गंगा नदी का उद्गम होता है। आइए जानते हैं इस धाम से जुड़ी पौराणिक कथा और मान्यताएं।

Image of Gangotri Temple

गंगोत्री धाम (Photo Credit: Wikimedia Commons)

उत्तराखंड चार धाम यात्रा का शुभारंभ 30 अप्रैल से होने जा रहा है, जिसमें सबसे पहले यमुनोत्री और गंगोत्री धाम की यात्रा शुरू होगी। गंगोत्री धाम में उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले में स्थित है और यह चार धामों में से एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थान माना जाता है। यह जगह भागीरथी नदी के उद्गम स्थल के रूप में प्रसिद्ध है, जिसे हम गंगा नदी के रूप में जानते हैं। गंगोत्री मंदिर समुद्र तल से लगभग 3,100 मीटर की ऊंचाई पर हिमालय की गोद में बसा है। इस स्थान को गंगा माता का मूल स्थान माना जाता है, जहां से उनकी यात्रा शुरू होती है।

गंगोत्री धाम की पौराणिक कथा

गंगोत्री धाम से जुड़ी एक प्रमुख और प्रसिद्ध कथा राजा भगीरथ से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि राजा सगर के 60,000 पुत्र एक बार अपने पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति के लिए यज्ञ कर रहे थे लेकिन यज्ञ का घोड़ा कहीं खो गया। उन्होंने उसकी खोज शुरू की और वह घोड़ा कपिल मुनि के आश्रम में पाया गया। राजा सगर के पुत्रों ने कपिल मुनि पर यज्ञ का घोड़ा चुराने का आरोप लगाया, जिससे वह क्रोधित हो गए और उन्होंने शाप देकर उन सभी को भस्म कर दिया।

 

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इन सभी की आत्माएं प्रेत योनि में भटकने लगीं। राजा सगर के वंशज भगीरथ ने अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए घोर तपस्या की। उन्होंने हजारों वर्षों तक भगवान ब्रह्मा की आराधना की और उनसे गंगा को पृथ्वी पर लाने की प्रार्थना की। ब्रह्मा जी ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा को धरती पर भेजने की अनुमति दी लेकिन साथ ही यह भी कहा कि गंगा के वेग को कोई संभाल नहीं पाएगा। तब भगीरथ ने भगवान शिव की आराधना की और शिव जी ने गंगा को अपनी जटाओं में समेट कर उसका वेग कम किया।

 

इसके बाद गंगा सात धाराओं में विभाजित होकर धरती पर उतरीं। गंगोत्री वही स्थान है जहां से गंगा धरती पर अवतरित हुईं। देवी गंगा ने राजा सगर के पुत्रों की राख को छूते ही उन्हें मुक्ति प्रदान की और सभी को स्वर्ग की प्राप्ति हुई। तभी से गंगा को 'मोक्षदायिनी' और 'पापों को हरने वाली' कहा जाने लगा।

गंगोत्री मंदिर का इतिहास

गंगोत्री मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में गढ़वाल के एक गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने करवाया था। यह मंदिर सफेद पत्थरों से बना हुआ है और हर साल मई से अक्टूबर के बीच ही खुला रहता है। सर्दियों में यहां भारी बर्फबारी होती है, इसलिए देवी गंगा की मूर्ति को उत्तरकाशी के 'मुक्ति मंदिर' में लाया जाता है और पूजा वहीं होती है।

 

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धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

गंगोत्री केवल एक नदी का उद्गम स्थल नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टि से एक अत्यंत पवित्र स्थान है। यहां आकर श्रद्धालु गंगा स्नान करते हैं और अपने पापों से मुक्ति की कामना करते हैं। मान्यता है कि गंगोत्री में गंगा स्नान करने से जन्म-जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं और आत्मा को शांति मिलती है।

यात्रा और कैसे पहुंचें

गंगोत्री तक पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी शहर उत्तरकाशी है। वहां से सड़क मार्ग द्वारा यात्री गंगोत्री पहुंच सकते हैं। ऋषिकेश और देहरादून जैसे बड़े शहरों से गंगोत्री के लिए नियमित बस और टैक्सी सेवाएं उपलब्ध हैं, जहां ट्रेन के माध्यम से पहुंचा जा सकता है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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