हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा को श्रद्धा और ज्ञान का प्रतीक पर्व है। यह पर्व हर वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है और इसे भारत सहित नेपाल, तिब्बत और भूटान में भी श्रद्धा भाव के साथ मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और उनसे आध्यात्मिक ज्ञान, मार्गदर्शन व आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
वैदिक पंचांग के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 10 जुलाई रात्रि 1:35 पर शुरू होगी और इस तिथि का समापन 11 जुलाई रात्रि 2:05 पर समाप्त हो जाएगी। ऐसे में गुरु पूर्णिमा पर्व 10 जुलाई 2025, गुरुवार के दिन मनाया जाएगा।
गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है?
गुरु पूर्णिमा का सीधा संबंध ज्ञान, शिक्षा और आत्मबोध से है। इस दिन को महर्षि वेदव्यास की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। महर्षि वेदव्यास ने ही वेदों का विभाजन, महाभारत की रचना और 18 पुराणों का संकलन किया था। वह भारतीय अध्यात्म के सबसे महान ज्ञानियों में गिने जाते हैं, और इसलिए उन्हें आदिगुरु' कहा गया।
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इस दिन को भगवान शिव द्वारा आदि योगी के रूप में सप्तर्षियों को पहला योग उपदेश देने का दिन भी माना जाता है। योग परंपरा के अनुसार, इसी दिन हिमालय में शिव ने ध्यानमग्न होकर योग विद्या को बांटना आरंभ किया था। इस कारण योगियों के लिए भी यह दिन अत्यंत पवित्र है।
गुरु का महत्व
'गु' का अर्थ होता है अंधकार और 'रु' का अर्थ होता है प्रकाश या हटाना। इस प्रकार 'गुरु' का अर्थ हुआ— ऐसा व्यक्ति जो अज्ञान के अंधकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश फैलाए। गुरु न केवल धार्मिक शिक्षा देता है, बल्कि जीवन जीने की दिशा और आत्मा को ब्रह्म से जोड़ने का मार्ग भी दिखाता है।
कबीरदास जी ने कहा था: 'गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागू पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥'
यानी भगवान और गुरु यदि दोनों एक साथ खड़े हों, तो पहले गुरु को प्रणाम करना चाहिए, क्योंकि उन्हीं के माध्यम से ईश्वर का ज्ञान संभव है।
गुरु पूर्णिमा के दिन क्या करना चाहिए?
गुरु पूर्णिमा के दिन आध्यात्मिक गुरु, शिक्षक अथवा माता-पिता का आदर करना चाहिए और उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। साथ ही इस दिन ध्यान करना, मौन साधना और आत्मचिंतन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यह दिन अपनी अंतरात्मा से जुड़ने और भीतर के अज्ञान को देखने का दिन है।
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कहा जाता है कि इस विशेष दिन पर भगवद्गीता, उपनिषद या गुरु ग्रंथ साहिब जैसे ग्रंथों का पाठ करना लाभदायक होता है। इसके साथ गरीबों, जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र या पुस्तकें दान करना इस दिन विशेष पुण्य देता है।
बता दें कि कई लोग इस दिन अपने जीवन में आध्यात्मिक गुरु से दीक्षा लेते हैं, क्योंकि यह दिन आत्मिक आरंभ का उत्तम अवसर है। साथ ही कई स्थानों पर इस दिन वेदपाठ, भजन-कीर्तन और सत्संग का आयोजन भी किया जाता है।