गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर जो स्तोत्र सबसे अधिक श्रद्धा के साथ पढ़ा और गाया जाता है, वह 'गुरु स्तोत्र' है। यह स्तोत्र मुख्य रूप से गुरु के रूप, गुण, कार्य और महत्व को बताता है। इसमें गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समरूप बताया गया है। साथ ही यह भी बताया गया है कि गुरु ही हमें उस परम सत्य यानी ब्रह्म की अनुभूति कराते हैं। यह स्तोत्र आमतौर पर 'गुरु अष्टक' या 'गुरु वंदना स्तोत्र' के नाम से भी जाना जाता है।
इस स्तोत्र में आठ प्रमुख श्लोक होते हैं, जिनमें से आप द्वारा दिए गए श्लोक प्रमुख और आरंभिक माने जाते हैं। यह श्लोक वेदों और उपनिषदों की परंपरा से प्रेरित हैं, जो बताता है कि गुरु केवल एक शिक्षक नहीं, बल्कि स्वयं ब्रह्म के प्रतिनिधि होते हैं।
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गुरु स्तोत्र
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुस्साक्षात्परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरं।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
स्थावरं जङ्गमं व्याप्तं यत्किञ्चित्सचराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
इस स्तोत्र का भाव यही है कि गुरु वह दिव्य शक्ति है, जो एक साधारण मनुष्य को उसकी आत्मा से जोड़ने का माध्यम बनती है। गुरु ही हमें यह दिखाते हैं कि संपूर्ण सृष्टि में एक ही ब्रह्म तत्व व्याप्त है और हम उसी का अंश हैं।
- 'गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः'- इसका अर्थ है कि गुरु का स्वरूप त्रिदेवों के जैसा है- सृजन करने वाले ब्रह्मा, पालन करने वाले विष्णु और संहारकर्ता शिव। इन तीनों शक्तियों का समन्वय ही गुरु में होता है।
- 'अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया'- यह श्लोक बताता है कि जैसे आँखों में दवा डालने से अंधापन दूर होता है, वैसे ही गुरु का ज्ञान अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाकर जीवन में प्रकाश लाता है।
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- 'अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरं'- इसका भाव है कि गुरु वह हैं जो हमें यह दिखाते हैं कि यह सम्पूर्ण जगत, जड़-चेतन, स्थिर-गतिशील, सब कुछ उसी एक ब्रह्म से व्याप्त है।
गुरु पूर्णिमा के दिन यह स्तोत्र इसलिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह दिन गुरु के सम्मान और उनके ज्ञान की स्मृति में मनाया जाता है। हिन्दू परंपरा में यह मान्यता रही है कि इसी दिन वेदव्यास जी का जन्म हुआ था, जिन्होंने वेदों का संकलन, पुराणों की रचना और महाभारत की रचना की थी। उन्हें आदि गुरु माना गया है। गुरु का महत्व केवल धार्मिक या आध्यात्मिक रूप से ही नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में होता है। वे एक दीपक की तरह होते हैं जो अंधकार में रोशनी फैलाते हैं और सही मार्ग दिखाते हैं।