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गुरु पूर्णिमा पर क्या करें और किन बातों का ध्यान रखें, सब जानें

गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु उपासना को श्रेष्ठ माना जाता है। जानते हैं इस दिन क्या करना चाहिए और क्या नहीं।

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गुरु उपासना के लिए समर्पित है गुरु पूर्णिमा का दिन।(Photo Credit: AI Image)

हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहा जाता है। यह दिन उन सभी गुरुजनों को समर्पित होता है जिन्होंने हमें जीवन में आगे बढ़ने की शिक्षा दी, चाहे वे शैक्षणिक शिक्षक हों, आध्यात्मिक गुरु हों या फिर जीवन को सही दिशा दिखाने वाले माता-पिता, वरिष्ठ या पथ-प्रदर्शक। गुरु का स्थान भारतीय संस्कृति में भगवान से भी ऊपर माना गया है, क्योंकि वही जीवन को अर्थ और ज्ञान से जोड़ते हैं।

 

वैदिक पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में गुरु पूर्णिमा व्रत 10 जुलाई 2025, गुरुवार के दिन रखा जाएगा। पंचांग में यह भी बताया गया है कि इस दिन इंद्र योग का निर्माण हो रहा है, जो रात्रि 09:38 तक रहेगा।

 

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गुरु पूर्णिमा पर क्या करना चाहिए?

इस दिन प्रातःकाल स्नान कर के शुद्ध वस्त्र पहनना चाहिए। मन को शांत और श्रद्धा से भरकर अपने गुरु को स्मरण करना चाहिए। संभव हो, तो गुरुदेव के पास जाकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। उनके चरणों में फूल, वस्त्र, फल और दक्षिणा अर्पित करना शास्त्रों में पुण्य माना गया है। कोई गुरु यदि साक्षात न हों, तो ज्ञान के प्रतीक रूप में भगवान वेदव्यास जी की पूजा करनी चाहिए, जिनके कारण यह दिन 'व्यास पूर्णिमा' भी कहा जाता है।

 

शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि इस दिन उपवास रखना और ध्यान करना बहुत लाभकारी होता है। यह साधना और आत्मशुद्धि का समय है। विद्यार्थी और साधक दोनों ही इस दिन अपने जीवन को नई दिशा देने के लिए संकल्प कर सकते हैं।

किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

गुरु पूर्णिमा के दिन मन में अहंकार नहीं होना चाहिए। यह दिन विनम्रता और समर्पण का है, इसलिए दिखावे से बचें और हृदय से श्रद्धा करें। खाने-पीने में सात्विकता रखें, मांसाहार और मद्यपान जैसे तामसिक प्रवृत्तियों से दूर रहें।

 

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यह दिन केवल बाहरी पूजा का नहीं, बल्कि आत्मसमीक्षा का भी होता है। अपने अंदर झांकना और यह देखना कि गुरु के बताए मार्ग से हम कितने जुड़े हैं, यह भी जरूरी है। अपने दोषों को पहचानना, और उनसे मुक्ति का प्रयास करना, यही सच्ची गुरु-भक्ति है।

 

गुरु के विचारों और शिक्षाओं को केवल याद न करें, बल्कि उन्हें अपने आचरण में लाने का प्रयास करें। यदि संभव हो, तो किसी ज़रूरतमंद की सहायता करें, जिससे गुरु की सेवा का भाव और अधिक गहरा हो सके।

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