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उमराह से लेकर शैतान को पत्थर मारने तक, ये हैं हज यात्रा की परंपराएं!

इस्लाम धर्म में हज यात्रा को बहुत ही खास माना जाता है। आइए जानते हैं इस यात्रा से जुड़ी परम्पराएं।

Image of Hajj Yatra

हज यात्रा(Photo Credit: Canva Image)

इस्लाम धर्म में हज को बहुत ही खास माना जाता है। यह इस धर्म के पांच स्तंभों में से एक है। हज की यह धार्मिक यात्रा शारीरिक और आर्थिक रूप से सक्षम मुसलमान जीवन में कम से कम एक बार जरूर करते हैं। यह यात्रा सऊदी अरब के मक्का शहर में स्थित काबा शरीफ की जाती है। हज हर साल इस्लामी महीने जिल-हिज्जा की 8 से 13 तारीख तक किया जाता है।

 

इस साल हज यात्रा 04 जून से 09 जून तक की जाएगी। साथ ही इस्लाम में हज को एक बहुत ही पाक काम माना जाता है। यह एक ऐसी यात्रा है जिसमें मुस्लिम अपने सभी गुनाहों से माफी मांगते हैं और अल्लाह के सामने खुद को समर्पित करते हैं।

 

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हज की तैयारी और प्रक्रिया

हज यात्रा के लिए पहले भारत सरकार की हज कमिटी के जरिए पंजीकरण करवाना जरूरी होता है। इसके बाद पासपोर्ट, वीजा और अन्य जरूरी दस्तावेज तैयार किए जाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया के बाद हज यात्री भारत से फ्लाइट के माध्यम से सऊदी अरब के जेद्दाह या मदीना जाते हैं। वहां से उन्हें मक्का ले जाया जाता है।

उमराह (तवाफ और सई) और मिना

मक्का पहुंचने के बाद यात्री सबसे पहले काबा का तवाफ यानी 7 चक्कर लगाते हैं, फिर सफा और मरवा नाम की दो पहाड़ियों के बीच 7 बार चलते हैं। इसे सई कहा जाता है। हज की असली शुरुआत मिना से होती है। यात्री मिना में पहुंचकर रातभर आराम करते हैं और नमाज पढ़ते हैं।

अराफात और मुजदलिफा

अगले दिन, सभी यात्री अराफात के मैदान में जाते हैं। वहां वे अल्लाह से दुआ मांगते हैं, अपने गुनाहों की माफी चाहते हैं। यह हज का सबसे अहम दिन होता है। इसे हज का दिन कहा जाता है। अराफात से लौटते हुए यात्री मुजदलिफा जाते हैं, जहां वे रात गुजारते हैं और पत्थर इकट्ठा करते हैं, जो अगले दिन शैतान को मारने के लिए काम आते हैं।

 

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जमरात

मिना लौटकर यात्री तीन खंभों जिसे जमरात कहते हैं, पर 7-7 पत्थर मारते हैं। यह शैतान को पत्थर मारने की रस्म है। फिर कुर्बानी दी जाती है (जानवर की बलि) और सर मुंडवाया जाता है या बाल छोटे किए जाते हैं। इसके बाद फिर से काबा के 7 बार चक्कर लगाए जाते हैं, जिसे तवाफ-ए-इफाजा कहते हैं। यह हज का जरूरी हिस्सा है।

आखिरी दिन

आखिरी दो दिन (11 और 12) या तीन दिन (13 तक) फिर से जमरात पर पत्थर मारे जाते हैं। इसके बाद हज यात्रा पूरी होती है। मक्का में हज यात्रा में करीब 5 से 6 दिन का समय लगता है लेकिन यात्रा में आने-जाने, उमराह और आराम को मिलाकर कुल समय लगभग 35 से 40 दिन तक का हो सकता है।

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