गोस्वामी तुलसीदास जी भारतीय भक्ति परंपरा के महान संत और कवि माने जाते हैं। उन्होंने रामचरितमानस, हनुमान चालीसा, विनय पत्रिका जैसे कई ग्रंथों की रचना की। तुलसीदास जी का जीवन प्रभु श्रीराम की भक्ति और मर्यादा पुरुषोत्तम जीवन को जन-जन तक पहुंचाने में समर्पित रहा लेकिन तुलसीदास जी की इस भक्ति यात्रा में एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान हनुमान जी का भी है।
हनुमान जी और तुलसीदास जी का गहरा संबंध
तुलसीदास जी हनुमान जी को श्री राम तक पहुंचने का माध्यम मानते थे। वह स्वयं को श्री राम का दास कहते थे और हनुमान जी को दासों के सर्वश्रेष्ठ। उन्होंने हनुमान जी को समर्पित कई रचनाएं कीं और हर रचना में हनुमान जी को समर्पण और श्रद्धा के साथ स्मरण किया।
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ऐसा कहा जाता है कि तुलसीदास जी को कई बार हनुमान जी ने साक्षात दर्शन दिए और जरूरत के समय पर सहायता भी की। आइए जानते हैं तुलसीदास जी के जीवन की कुछ प्रमुख घटनाएं जहां हनुमान जी उनके सहायक और मार्गदर्शक बने।
हनुमान जी के पहले दर्शन – चित्रकूट में
तुलसीदास जी श्रीराम के दर्शन के लिए तड़पते रहते थे। वह जीवन भर प्रभु राम के भजन, स्मरण और उपासना में लीन रहते थे। कहते हैं कि एक दिन वे चित्रकूट में रामघाट पर प्रभु का ध्यान कर रहे थे, तभी उन्हें एक वृद्ध वानर स्वरूप में एक महापुरुष के दर्शन हुए। उन्होंने तुलसीदास जी को रामभक्ति में दृढ़ रहने का संदेश दिया। यही रूप हनुमान जी का था, जो अपने भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर दर्शन देने आए थे।
श्रीराम के दर्शन में सहायक – हनुमान जी की कृपा
तुलसीदास जी बार-बार प्रभु श्रीराम के दर्शन की विनती करते थे, लेकिन उन्हें साक्षात दर्शन नहीं हो रहे थे। तब उन्होंने हनुमान जी से प्रार्थना की कि वे श्रीराम से मिलवा दें। हनुमान जी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और उन्हें एक दिन बताया कि राम और लक्ष्मण एक राजकुमार के रूप में वहां से गुजरेंगे।
जैसे ही दो सुंदर राजकुमार वहां आए, तुलसीदास जी उनके चरणों में गिर पड़े। हनुमान जी ने तब संकेत दिया कि यही श्रीराम और लक्ष्मण हैं। यह पल तुलसीदास जी के जीवन का सबसे अद्भुत अनुभव था, और इसके पीछे हनुमान जी की कृपा थी।
हनुमान चालीसा की प्रेरणा
'हनुमान चालीसा' जो आज भी करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र है, उसकी रचना भी हनुमान जी की प्रेरणा से ही हुई मानी जाती है। यह कहा जाता है कि एक बार तुलसीदास जी को मुगल बादशाह अखबर ने बंधक बना लिया था। तब उन्होंने हनुमान जी का ध्यान करते हुए यह चालीसा रच दी। इसके पढ़ने से संकट समाप्त हुआ। तब से यह माना गया कि हनुमान चालीसा हर संकट में रक्षा करती है।
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रामचरितमानस की रचना में मार्गदर्शन
जब तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना करनी शुरू की, तब उन्हें कई बार रुकावटों और विरोध का सामना करना पड़ा। तब हनुमान जी ने उन्हें मनोबल दिया और आत्मविश्वास से भर दिया। कहते हैं कि वे रचना के दौरान तुलसीदास जी के पास अदृश्य रूप में उपस्थित रहते थे और मन में उठते संदेहों को शांत करते थे।
विनय पत्रिका में हनुमान जी का स्थान
'विनय पत्रिका' तुलसीदास जी की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक है। इसमें उन्होंने अपने हृदय की पीड़ा, भक्ति, प्रार्थना और पश्चाताप को शब्द दिए हैं। इस ग्रंथ की प्रस्तावना में ही तुलसीदास जी ने हनुमान जी से प्रार्थना की है कि वे इस पत्रिका को प्रभु श्रीराम तक पहुंचाएं। इससे स्पष्ट होता है कि तुलसीदास जी हनुमान जी को श्रीराम और भक्त के बीच सेतु मानते थे।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी रामचरित मानस कथा और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।