हिंदू धर्म ग्रंथों में विभिन्न देवी-देवताओं की कई कथाएं प्रचलित हैं। इनमें हनुमान जी की कथाओं का भी वर्णन विस्तार से किया गया है। बता दें कि हनुमान जी की गणना अष्टचिरंजीवी देवताओं में की जाती है। हनुमान जी की कथाओं का वर्णन महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण ग्रंथ में विस्तार से मिलता है।
क्या आप जानते हैं कि महर्षि वाल्मीकि ने रामायण कथा को लिखने वाले सबसे पहले व्यक्ति नहीं थे, बल्कि हनुमान जी ने सबसे पहले संपूर्ण रामायण को एक पर्वत पर लिखा था। आइए जानते हैं, यह रोचक कथा।
हनुमान जी ने की सबसे पहले रामकथा की रचना
शास्त्रों और पुराणों में बताया गया है कि सर्वप्रथम रामकथा की रचना स्वयं हनुमानजी ने की थी, जिसे 'हनुमद रामायण' के नाम से जाना जाता है। यह कथा वाल्मीकि रामायण से भी पहले लिखी गई थी और इसे लिखने के लिए हनुमानजी ने हिमालय की एक विशाल शिला का प्रयोग किया था। कहा जाता है कि उन्होंने प्रभु श्रीराम की महिमा को अपने नाखूनों से उस शिला पर लिखा था।
यह घटना उस समय की है जब भगवान श्रीराम हनुमान जी चिरंजीवी होने का आशीर्वाद देकर वैकुंठ चले गए थे। तब हनुमान जी हिमालय में तपस्या करने लगे। भगवान शिव आराधना के साथ-साथ उन्होंने प्रतिदिन शिला पर अपने नाखूनों से रामकथा लिखना प्रारंभ किया।
कुछ समय पश्चात, महर्षि वाल्मीकि ने भी कठिन तप और परिश्रम के उपरांत ‘वाल्मीकि रामायण’ की रचना की। जब उनका कार्य पूरा हो गया, तब वह अपनी रचना भगवान शंकर को समर्पित करना चाहते थे। इस उद्देश्य से वे कैलाश पर्वत पहुंचे। वहां उन्होंने हनुमानजी को देखा और साथ ही उनकी लिखी गई हनुमद रामायण को भी देखा। हनुमद रामायण की दिव्यता और श्रेष्ठता देखकर महर्षि वाल्मीकि का मन निराश हो गया।
हनुमानजी ने महर्षि वाल्मीकि की उदासी का कारण पूछा। महर्षि ने उत्तर दिया कि उन्होंने अत्यंत परिश्रम से रामायण की रचना की थी, परंतु आपकी रामायण के समक्ष उनकी रचना छोटी और तुच्छ प्रतीत हो रही है। महर्षि की चिंता को समझकर हनुमानजी ने उन्हें सांत्वना दी। उन्होंने अपनी हनुमद रामायण की महिमा को विनम्रता से पीछे रखते हुए कहा कि प्रत्येक रचना का अपना महत्व है।
इसके बाद, हनुमानजी ने अपनी हनुमद रामायण की पर्वत शिला को एक कंधे पर उठाया और वे समुद्र तट पर पहुंचे। वहां उन्होंने अपनी रची हनुमद रामायण को भगवान श्रीराम को समर्पित करते हुए समुद्र में डाल दिया। इसलिए हनुमद रामायण कहीं भी उपलब्ध नहीं है और हनुमान जी द्वारा रचित यह ग्रंथ आज भी समुद्र की गहराइयों में सुरक्षित है।
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