हनुमान जी को भगवान श्रीराम का परम भक्त माना जाता है। उनकी भक्ति इतनी निश्छल और समर्पित थी कि उन्होंने अपने जीवन का हर क्षण प्रभु श्रीराम की सेवा में अर्पित कर दिया। तुलसीदासजी ने भी कहा है – 'राम काज कीन्हे बिनु, मोहि कहां विश्राम'। परंतु एक ऐसी भी दुर्लभ घटना मिलती है, जब स्वयं भगवान श्रीराम, अपने प्रिय भक्त हनुमान जी को मृत्यु दंड दिया था।
हनुमान कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, लंका विजय के बाद, श्रीराम अयोध्या लौटे और उनका भव्य राज्याभिषेक हुआ। इस उत्सव में कई ऋषि-मुनि और देवता उपस्थित थे। देवर्षि नारद ने हनुमान जी से कहा कि वे सभी ऋषियों को प्रणाम करें लेकिन ऋषि विश्वामित्र को छोड़ दें, क्योंकि वे पूर्व में राजा थे। हनुमान जी ने नारद मुनि की बात मानते हुए ऐसा ही किया।
नारद मुनि ने विश्वामित्र जी से कहा कि हनुमान जी ने उन्हें प्रणाम नहीं किया, जिससे विश्वामित्र जी को अपमान महसूस हुआ और वे क्रोधित हो गए। उन्होंने श्रीराम से हनुमान जी को मृत्युदंड देने की मांग की। श्रीराम अपने गुरु की आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकते थे, अंत में उन्होंने हनुमान जी को मृत्युदंड देने का निर्णय लिया।
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श्रीराम ने हनुमान जी पर बाण चलाए लेकिन हनुमान जी राम नाम का जाप करते रहे, जिससे बाणों का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। यह देखकर श्रीराम ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया लेकिन हनुमान जी की भक्ति के प्रभाव से वह भी निष्फल रहा।
यह सब देखकर नारद मुनि को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने विश्वामित्र जी से क्षमा याचना की। विश्वामित्र जी ने भी अपनी गलती स्वीकार की और श्रीराम से हनुमान जी को क्षमा करने का अनुरोध किया। श्रीराम ने हनुमान जी को गले लगाकर उन्हें अमरत्व का वरदान दिया।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी रामायण कथा और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।