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जब रावण की भरी सभा में हनुमान जी ने दिया था सुशासन का ज्ञान

वाल्मीकि रामायण के सुंदरकांड में हनुमान जी ने रावण को सुशासन का ज्ञान दिया था। पढ़िए हनुमान जी और रावण में हुआ पूरा संवाद।

AI Image of Hanuman ji And Ravan Samwad

रावण और हनुमान जी के बीच हुआ था संवाद।(Photo Credit: AI Image)

वाल्मीकि रामायण में प्रभु श्री राम के जीवन के साथ-साथ रामायण कथा के प्रमुख पात्र और श्री राम के परम भक्त हनुमान जी भी विस्तार से वर्णन किया गया है। रामायण कथा के सुंदरकांड में वर्णित हनुमान जी और लंका के राजा रावण के संवाद में हनुमान जी ने रावण को सुशासन और धर्म के महत्व का ज्ञान कराया था। यह प्रसंग तब का है जब हनुमान जी माता सीता की खोज में लंका पहुंचे और अशोक वाटिका में उनसे भेंट की। वहां उन्होंने राक्षसों का संहार किया और लंका में उत्पात मचाया, जिससे रावण के सैनिकों ने उन्हें बंदी बना लिया और रावण के दरबार में प्रस्तुत किया।​

हनुमान जी और रावण के बीच का संवाद

रावण ने हनुमान जी को देखकर क्रोधित होकर पूछा, 'वानर! तुम कौन हो? किसके बल पर तुमने मेरी लंका में उपद्रव किया और मेरे राक्षसों का वध किया?'

 

हनुमान जी ने विनम्रता से उत्तर दिया, 'हे लंकेश! मैं वायुपुत्र हनुमान हूं और अयोध्या के राजा श्रीराम का दूत बनकर यहां आया हूं। आपके द्वारा अपहरण की गई उनकी पत्नी सीता माता की खोज में मैं लंका आया और उनसे अशोक वाटिका में भेंट की।'

 

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रावण ने हनुमान जी की बातों को अनसुना करते हुए कहा, 'तुम्हारा यह काम तुम्हें मृत्यु दंड दिलाएगी। क्या तुम्हें मेरे पराक्रम का ज्ञान नहीं है?'

 

हनुमान जी ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया, 'हे रावण! मैं आपके पराक्रम से परिचित हूं। आपने अनेक यज्ञ किए, शास्त्रों का अध्ययन किया और महान तपस्या से शक्ति प्राप्त की। परंतु, आपने अधर्म का मार्ग अपनाया है। श्रीराम धर्म के प्रतीक हैं और उनके साथ शत्रुता करके आप अपने कुल का नाश कर रहे हैं।'

 

हनुमान जी ने रावण को समझाया, 'राजा का कर्तव्य है कि वह धर्म और न्याय के मार्ग पर चले। प्रजा की भलाई और राज्य की समृद्धि धर्म पर आधारित होती है। अधर्म के मार्ग पर चलकर आप अपने राज्य और प्रजा का अहित कर रहे हैं।'

 

उन्होंने आगे कहा, 'हे दशानन! आप विद्वान हैं, वेदों के ज्ञाता हैं। फिर भी, आपने पराई स्त्री का हरण करके अधर्म किया है। यह आपके लिए और आपके राज्य के लिए विनाशकारी होगा। मैं आपको सलाह देता हूं कि माता सीता को श्रीराम को लौटा दें और उनसे क्षमा मांगें। इससे आपका यश और राज्य स्थिर रहेगा।'

 

रावण ने हनुमान जी की बातों को अहंकारवश ठुकरा दिया और उन्हें दंड देने का आदेश दिया। तब विभीषण ने हस्तक्षेप करते हुए कहा, 'महाराज! शास्त्रों के अनुसार, दूत का वध करना अधर्म है। इन्हें दंड देना उचित नहीं होगा।'

 

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रावण ने विभीषण की बात मानते हुए हनुमान जी की पूंछ में आग लगाने का आदेश दिया। हनुमान जी ने इस अवसर का इस्तेमाल करते हुए लंका में आग लगा दी और फिर समुद्र में कूदकर अपनी पूंछ की आग बुझाई।​

 

हनुमान जी के इस संवाद से यह ज्ञात होता है कि धर्म और नीति के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति ही सच्चा नेता होता है। राजा का कर्तव्य है कि वह प्रजा के हित में कार्य करे और अधर्म से दूर रहे। रावण ने हनुमान जी की सलाह को नकार दिया, जिससे उसका और उसके राज्य का पतन हुआ।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी रामायण कथा और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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