भारतीय सनातन परंपरा में, हनुमान जी को भगवान श्रीराम के परम भक्त, शक्ति और बुद्धिमत्ता के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हनुमान जी की उपासना करने से व्यक्ति के सभी कष्ट और दुख दूर हो जाते हैं।
धर्म शास्त्रों में हनुमान जी को भगवान शिव का 11वां रुद्रावतार बताया गया है। साथ ही उन्हें अष्ट चिरंजीवी कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि वह आज भी धरती पर जीवित हैं और भक्तों को संकटों से बचाते हैं। बता दें कि हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए हनुमान वंदना स्तोत्र को बहुत ही उत्तम माना जाता है।
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हनुमान वंदना स्तोत्र
प्रनवउं पवनकुमार खल बन पावक ज्ञानघन।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर॥
पवनपुत्र हनुमान जी ऐसा तेजस्वी हैं जिनकी प्रज्ञा (ज्ञान) अग्नि की तरह सब अज्ञान को जला देती है। उनकी मस्तिष्क दीप की तरह प्रकाशित होती है।
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं।
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्॥
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
हनुमान जी का शरीर सुनहरी पर्वत जैसा तेजस्वी है, और उनका बल अतुलनीय (अतुल शक्ति) है, जो सब वानराश्रियों में प्रमुख रखते हैं।
वह वानर जाति के प्रमुख हैं और सभी गुणों का भंडार हैं। उन्हें रघुपति प्रिय भक्त माना गया है।
गोष्पदीकृतवारीशं मशकीकृतराक्षसम्।
रामायणमहामालारत्नं वन्देऽनिलात्मजम्॥
गोपों ने उन्हें वारि (पानी) भेंट किया, और समुद्र में मशकी (पानी की चमच) लेकर उन्होंने राक्षसों को चुनौती दी। वह लंका में राक्षसों के भय को दूर करने वाले हैं।
अञ्जनानन्दनं वीरं जानकीशोकनाशनम्।
कपीशमक्षहन्तारं वन्दे लङ्काभयङ्करम्॥
अंजनी माता के आनंद का स्रोत, वीर योद्धा, जो माता सीता के दुख को दूर करते हैं। उन्होंने रावण का संहार करके लंका को भयमुक्त कराया।
उलंघ्यसिन्धों: सलिलं सलीलं य: शोकवह्नींजनकात्मजाया:।
आदाय तेनैव ददाह लङ्कां नमामि तं प्राञ्जलिराञ्जनेयम्॥
समुद्र की लहरों को पार कर, उन्होंने जल को त्रिकोणाकार पार किया ताकि राम अनुरोध पर लंका पहुंच सकें।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥
हनुमान जी की गति ऐसी है जैसे मन का वेग हो, हवा की तरह तेज; वह इन्द्रियों को जीतने वाले और बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं।
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आञ्जनेयमतिपाटलाननं काञ्चनाद्रिकमनीय विग्रहम्।
पारिजाततरूमूल वासिनं भावयामि पवमाननंदनम्॥
उनकी मुखमंडली कनकमुखी जैसे सुनहरी, पारिजात वृक्ष की जड़ के आसन पर विराजित – यह उनकी दिव्यता दर्शाता है।
यत्र यत्र रघुनाथकीर्तनं तत्र तत्र कृत मस्तकाञ्जिंलम।
वाष्पवारिपरिपूर्णलोचनं मारुतिं राक्षसान्तकाम्॥
जहां-जहां रामकथा का स्मरण होता है, वहां भक्तों की श्रद्धास्वरूप आंसुओं से उनकी आंखें नम होती हैं और भावपूर्ण वंदना होती है।
क्यों रोज पढ़ें यह स्तोत्र?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस वंदना स्तोत्र को पढ़ने से मानसिक स्थिरता मिलती है। हनुमानजी की कृपा से बाधाएं दूर होती हैं। साथ ही इस स्तोत्र को पढ़ने से संकटों से लड़ने की शक्ति मिलती है। इसके साथ में रामायण चित्रकारी भाव सर्जन होता है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।