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हरतालिका तीज व्रत: कथा से व्रत तक, क्या करें, क्या न करें? सब जानिए

हिंदू धर्म में हरतालिका तीज प्रमुख व्रत माना जाता है, यह व्रत भगवान शिव और देवी पार्वती के विवाह से जुड़ा हुआ है। आइए जानते है इससे जुड़ी व्रत कथा, पूजन विधि, व्रत रखने के नियम और व्रत का महत्व।

Bhagwan Shiv And Mata parwati Representational Picture

भगवान शिव और देवी पार्वती की प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI

देशभर में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला हरतालिका तीज महिलाओं का प्रमुख व्रत माना जाता है। इस व्रत को खासतौर पर उत्तर भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि माता पार्वती ने कठोर तपस्या और अडिग संकल्प के बाद भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था। उनकी इस भक्ति और तपस्या की स्मृति में महिलाएं हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं।

 

हरतालिका तीज के दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य के लिए यह व्रत करती हैं, वहीं अविवाहित कन्याएं मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती हैं। व्रत की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे निर्जला रखा जाता है, यानी व्रत रखने वाली महिलाएं पूरे दिन जल और अन्न का सेवन नहीं करती हैं। इस दौरान महिलाएं हरे वस्त्र पहनकर, मेहंदी लगाकर और सोलह श्रृंगार करके भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की पूजा करती हैं।

 

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हरतालिका तीज की व्रत कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। एक समय हिमवान (पार्वती के पिता) ने उनका विवाह भगवान विष्णु से करने का निश्चय किया था। जब देवी पार्वती को यह पता चला तो वह अपनी सखियों के साथ वन में चली गईं। वहां उन्होंने शिवलिंग स्थापित कर कठोर व्रत किया। उनकी तपस्या और अडिग संकल्प से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और देवी पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार किया। इसी घटना की स्मृति में हरतालिका तीज व्रत का प्रचलन हुआ थ। ‘हरतालिका’ शब्द दो भागों से बना है,‘हरित’ (अपहरण) और ‘आलिका’ (सखी), क्योंकि देवी पार्वती की सहेली ने ही उन्हें विवाह से बचाकर वन में तपस्या के लिए ले गई थीं।

व्रत की मान्यता

  • विवाहित महिलाएं इस व्रत को अपने पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य के लिए रखती हैं।
  • अविवाहित कन्याएं मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं।
  • यह व्रत भगवान शिव-पार्वती के दांपत्य प्रेम और अटूट बंधन का प्रतीक माना जाता है।

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व्रत रखने के नियम

  • यह व्रत निर्जला रखा जाता है, यानी न जल ग्रहण किया जाता है न अन्न।
  • व्रत शुरू करने के बाद इसे बीच में छोड़ना अशुभ माना जाता है।
  • व्रत के दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार कर हरे रंग का वस्त्र पहनती हैं और मेहंदी लगाती हैं।
  • मिट्टी से भगवान शिव-पार्वती और गणेश जी की मूर्तियां बनाकर पूजन किया जाता है।
  • रात में जागरण कर कथा का श्रवण और भजन-कीर्तन किया जाता है।
  • व्रत का पारण अगले दिन सुबह किया जाता है।

हरतालिका तीज व्रत की पूजा विधि

व्रत की तैयारी

  • व्रत से एक दिन पहले महिलाएं व्रत का संकल्प लेती हैं।
  • सुबह स्नान करके साफ वस्त्र पहनती हैं और दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं।

पूजन सामग्री की व्यवस्था

  • मिट्टी या रेत से भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की प्रतिमा बनाई जाती है।
  • पूजा में फल, फूल, बेलपत्र, धतूरा, आक का फूल, चंदन, दीपक, धूप, रोली, सिंदूर, कलश, वस्त्र और श्रृंगार सामग्री का इस्तेमाल होता है।

पूजा स्थल की तैयारी

  • घर के किसी पवित्र स्थान या मंदिर में साफ-सफाई करने के बाद चौकी पर भगवान शिव-पार्वती और गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की जाती है।
  • कलश स्थापना कर दीया जलाया जाता है।

व्रत पूजन विधि

  • सबसे पहले गणेश जी की पूजा करके शुभारंभ किया जाता है।
  • इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा बेलपत्र, अक्षत, चंदन, पुष्प और धूप-दीप से की जाती है।
  • श्रृंगार सामग्री अर्पित कर माता पार्वती को सुहागिन (16 श्रृंगार) का रूप प्रदान किया जाता है।

व्रत का महत्व

  • हरतालिका तीज व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह नारी शक्ति, भक्ति और त्याग का प्रतीक भी है।
  •  मान्यता है कि यह व्रत पति-पत्नी के बीच प्रेम और विश्वास को मजबूत करता है।
  • अविवाहित कन्याओं को योग्य वर की प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।
  • इस व्रत से पारिवारिक सुख-समृद्धि और दांपत्य जीवन में मधुरता बनी रहती है।

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