हिंदू धर्म में नक्षत्रों का बहुत ही खास महत्व होता है। इन नक्षत्रों में से एक है हस्त नक्षत्र, जो कि कुल 27 नक्षत्रों में 13वां स्थान रखता है। यह नक्षत्र चंद्रमा की गति के अनुसार बनता है और इसके स्वामी चंद्र हैं, जबकि यह कन्या राशि में आता है। हस्त नक्षत्र को विशेष रूप से शुभ और फलदायक माना गया है, खासकर पूजा-पाठ, दान, साधना और रचनात्मक कार्यों के लिए।
हस्त नक्षत्र कैसे बनता है?
हस्त नक्षत्र चंद्रमा की गति पर आधारित होता है। जब चंद्रमा कन्या राशि में भ्रमण करता है और उसका विशेष प्रभाव आकाश में स्थित कुछ तारों के समूह पर पड़ता है, तो उस समय जो नक्षत्र बनता है। इसमें पांच प्रमुख तारे होते हैं जो हाथ के पंजे के आकार में दिखाई देते हैं, इसी वजह से इसे ‘हस्त’ नाम दिया गया है। हस्त का शाब्दिक अर्थ होता है ‘हाथ’ और यह नक्षत्र कर्म, क्रिया और कार्य की ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है।
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पूजा-पाठ में हस्त नक्षत्र का महत्व
हस्त नक्षत्र को अत्यंत शुभ और पवित्र माना गया है। जब कोई व्यक्ति इस नक्षत्र में पूजा-पाठ, व्रत या धार्मिक अनुष्ठान करता है, तो उसे विशेष फल प्राप्त होते हैं। इस नक्षत्र में की गई पूजा से जीवन में शांति, समृद्धि और मानसिक संतुलन प्राप्त होता है। यह नक्षत्र हाथों से किए गए कार्यों की सफलता का प्रतीक है, इसलिए इस दिन शुरू किए गए धार्मिक कार्य अधिक प्रभावशाली होते हैं।
विशेष रूप से विवाह, गृह प्रवेश, अन्नप्राशन, नामकरण या किसी नए कार्य की शुरुआत के लिए यह नक्षत्र बहुत उत्तम माना जाता है। इसकी ऊर्जा सकारात्मक होती है और यह चंद्रमा की शीतलता और संतुलन को दर्शाता है।
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पूर्णिमा पूजा में हस्त नक्षत्र की भूमिका
पूर्णिमा तिथि यानी इस दिन चंद्रमा पूर्ण रूप में दिखाई देता है। जब पूर्णिमा पर हस्त नक्षत्र का निर्माण होता है, तब उसका प्रभाव और भी अधिक शुभकारी हो जाता है। इस संयोग को पूर्ण हस्त योग कहा जाता है, जो कि आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टि से बहुत खास होता है। साथ ही इस योग में की गई पूजा, विशेष रूप से लक्ष्मी पूजन, सत्यनारायण व्रत, दान-पुण्य और ध्यान-साधना से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी रामायण कथा और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।