भारत में जितने राज्य, उतनी ही तरह की परंपराएं और रीति-रिवाज हैं। जनजातीय समाज में होली मनाने का तरीका भी अनोखा और बेहद रोचक होता है। वे अपनी परंपराओं के अनुसार त्योहार को अनोखे अंदाज में मनाते हैं। उनके गीत-संगीत, नृत्य और लोक परंपराएं इस पर्व को और भी खास बना देती हैं। आइए जानते हैं कि भारत की प्रमुख जनजातियां किस प्रकार से होली का त्योहार मनाती हैं।
उरांव जनजाति
उरांव जनजाति के लोग विशेष रूप से जो विशेष झारखंड में निवास करते हैं, फगुआ होली मनाते हैं। यहां होलिका दहन के बजाए फगुआ काटने का महत्व है। इस परंपरा को फाल्गुन पूर्णिमा की रात की जाती है, जिसमें गांव के पुजारी अर्थात पाहन सेमल या एरंड की डालियां पर घास लपेटकर उसे जलाते हैं। जलती हुई डालियों को गांव के लोग विशेष रूप से पुरुष धारदार हथियारों से इन्हें काटते हैं। इस दौरान पुजारी डालियों से उठ रहे धुएं को देखकर यह बताते हैं कि मानसून किस तरफ से आ रहा है। इसके बाद सामूहिक नृत्य और गीतों के साथ इस उत्सव को मनाया जाता है।
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संताली जनजाति
संताली जनजाति में होली पर्व से एक दिन पहले बाहा पर्व मनाते हैं, जिसे फूलों का पर्व भी कहा जाता है। इस दिन प्रकृति की विशेष रूप से पूजा की जाती है और नए फूल फल इत्यादि का सेवन वर्जित है। ऐसा तब तक किया जाता है जब तक बाहा पर्व खत्म ना हो जाए। यह प्रकृति के प्रति सम्मान प्रकट करने का अनोखा तरीका है, जो संताली जनजाति द्वारा किया जाता है। इस दौरान पारंपरिक लोकगीत और नृत्य किए जाते हैं।
गोंड जनजाति
छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश महाराष्ट्र और तेलंगाना मुख्य रूप से रहने वाले गुण जनजाति के लोग फागुन पर्व के रूप में होली पर्व को मानते हैं। यह पर्व विशेष रूप से नई फसल के आगमन का संकेत होता है और इस दिन ‘फूलझड़ देव’ और ‘गोंडी माता’ की उपासना की जाती है। इस विशेष दिन पर पारंपरिक लोक गीत और सामूहिक नृत्य किए जाते हैं। होलिका दहन पर्व भी मनाया जाता है, जिसे बहुत ही शुभ माना जाता है।
छत्तीसगढ़ के जनजातियों की होली
छत्तीसगढ़ की जनजातियां विशेष रूप से प्राकृतिक होली खेलती हैं। इस अवसर पर रंगीन फल और सब्जियों से भोजन बनाया जाता है जो प्रकृति के प्रति श्रद्धा का एक प्रतीक होता है। यह त्यौहार रंग खेलने तक सीमित नहीं बल्कि प्रकृति की पूजा और उनके प्रति आभार व्यक्त करने का एक माध्यम है। ग्रामीण होली की तैयारी 15 दिन पहले ही शुरू कर देते हैं।
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मीणा जनजाति
मीणा जनजाति के लोग होली को चौरस होली भी कहते हैं। इस दिन पारंपरिक लोकगीत गया जाता है और भगवान शिव की भक्ति से इसे जोड़ा जाता है। होली के दौरान रंग व फूलों का इस्तेमाल किया जाता है और साथ ही भगवान शिव की भक्ति गीतों को गाया जाता है। यह होली गांव में बड़े समूह में खेली जाती है।
नागा जनजाति
नागालैंड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और असम के क्षेत्र में रहने वाले नागा जनजाति के लोग होली को उत्तर भारत से थोड़ा अलग मनाते हैं। इस दिन लोग एक-दूसरे को चावल के आटे या हल्दी से बने रंग लगाते हैं। साथ ही लोकगीत गाए जाते हैं और बड़े सामुदायिक भोज का आयोजन होता है। इसके साथ घरों की जंगली पत्तियों और फूलों से सजावट की जाती है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।