logo

ट्रेंडिंग:

रथ यात्रा से पहले निकाली जाती है 'जल यात्रा', यह है पूरा इतिहास

हिंदू धर्म में रथ यात्रा का विशेष स्थान है और इससे पहले जल यात्रा की परंपरा है। आइए जानते हैं, आयोजन से जुड़ी मान्यताएं।

Image of Rath Yatra

रथ यात्रा से होती है जल यात्रा।(Photo Credit: PTI File Photo)

भारत के ओडिशा राज्य के पुरी शहर में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर देश के चार प्रमुख धामों में से एक है। हर साल यहां आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा रथों पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर जाते हैं। हालांकि इस रथ यात्रा से करीब 15 दिन पहले एक विशेष धार्मिक परंपरा मनाई जाती है, जिसे “जल यात्रा” या “स्नान यात्रा” कहा जाता है। आज यानी ज्येष्ठ पूर्णिमा के शुभ अवसर पर ओडिशा और गुजरात सहित देश के कई हिस्सों में जल यात्रा का आयोजन हो रहा है। जिसमें धूमधाम से यात्रा निकाली जा रही है।

जल यात्रा क्या है?

जल यात्रा एक विशेष धार्मिक समारोह है जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को मंदिर के गर्भगृह से बाहर लाकर, सिंहद्वार (मुख्य द्वार) के सामने बने एक विशेष मंच (स्नान मंडप) पर लाया जाता है। वहां इन देवताओं को 108 कलशों के पवित्र जल से स्नान कराया जाता है। यह आयोजन ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन होता है।

 

यह भी पढ़ें: गरुड़ पुराण में बताई वैतरणी नदी का भारत में भी है एक रूप

 

जल यात्रा का इतिहास

जल यात्रा की परंपरा बहुत प्राचीन है। कहा जाता है कि यह परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। पुरी के मंदिर में भगवान को "नर और नारायण" का रूप माना जाता है, इसलिए उनके स्वास्थ्य, दिनचर्या और उपचार भी मानव शरीर की तरह देखे जाते हैं। स्नान यात्रा के बाद भगवान बीमार पड़ते हैं और फिर उन्हें एकांतवास (अनासर घर) में रखा जाता है। यह 15 दिनों की अवधि होती है, जिसमें भगवान दर्शन नहीं देते।

 

ऐसी मान्यता है कि यह स्नान यात्रा भगवान जगन्नाथ के भाई बलभद्र के जन्मदिन पर की जाती है और यह स्नान उनका जन्मदिन मनाने का एक खास तरीका है।

जल यात्रा का आध्यात्मिक महत्व

  • शुद्धिकरण का प्रतीक: जल से स्नान कराने की प्रक्रिया आत्मा, शरीर और मन के शुद्धिकरण का प्रतीक मानी जाती है। यह दर्शाता है कि भगवान भी प्रकृति के नियमों के अनुसार चलते हैं।
  • जब भगवान को सार्वजनिक रूप से स्नान कराया जाता है, तो यह संदेश मिलता है कि वे सभी भक्तों के लिए समान हैं। किसी जाति, वर्ग या पंथ का भेद नहीं होता।
  • यह उत्सव गर्मियों के अंत और वर्षा ऋतु की शुरुआत के समय होता है। जल यात्रा के माध्यम से जल के महत्व और वर्षा की प्रतीक्षा को भी सांस्कृतिक रूप से दर्शाया गया है।
  • मंदिर के सेवक नजदीकी पवित्र कुंड या बायें समुद्र (इंद्रदुम्न सरोवर) से विशेष विधि से जल लाते हैं।
  • इस जल से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का स्नान कराया जाता है।
  • इस दौरान संकीर्तन, मृदंग और घुंघरू की ध्वनि से पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है।
  • स्नान के बाद भगवान ‘बीमार’ हो जाते हैं और उन्हें 15 दिनों तक विश्राम दिया जाता है।

जल यात्रा किस बात का प्रतीक है?

यह यात्रा दर्शाती है कि भगवान भी प्रकृति का पालन करते हैं। भगवान जगन्नाथ को जनता के करीब लाने और उनके साथ एक आत्मीय संबंध स्थापित करने का माध्यम है। यह ‘प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व’ का उदाहरण है। जल यात्रा, रथ यात्रा की तैयारी का पहला बड़ा चरण है। स्नान के बाद जब भगवान अनासर गृह में रहते हैं, तब उनके लिए नई मूर्तियां या चित्र बनाए जाते हैं, जिन्हें ‘नव यौवन दर्शन’ कहा जाता है। इसके बाद ही रथ यात्रा शुरू होती है।

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

design

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap