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दर्पदलन: देवी सुभद्रा के रथ के बारे में जानें, जिनके सारथी अर्जुन हैं

जगन्नाथ रथ यात्रा में देवी सुभद्रा के रथ का भी अपना एक विशेष स्थान है। आइए उनके रथ के बारे में विस्तार से जानते हैं।

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रथ यात्रा में देवी सुभद्रा का रथ बीच में रहता है।(Photo Credit: PTI File Photo)

पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा पवित्र और भारत के भव्य धार्मिक यात्राओं में से एक मानी जाती है। इसमें भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा तीन अलग-अलग रथों पर सवार होकर श्री जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर की ओर यात्रा करते हैं। इस यात्रा में सबसे आगे भगवान बलभद्र का रथ, सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ और दोनों के बीच में देवी सुभद्रा का रथ चलता है। देवी सुभद्रा का रथ ‘दर्पदलन’ कहलाता है।

 

दर्पदलन का अर्थ होता है ‘अहंकार को तोड़ने वाला’। यह नाम देवी सुभद्रा के उस दिव्य स्वरूप को दर्शाता है जो प्रेम, विनम्रता और करुणा से अहंकार को समाप्त कर देती हैं। देवी सुभद्रा को शक्ति और मातृत्व का प्रतीक माना जाता है और उनका रथ इस भाव को दर्शाने वाला माध्यम बनता है।

 

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देवी सुभद्रा का रथ दर्पदलन

देवी सुभद्रा का रथ अन्य दो रथों की तुलना में आकार में थोड़ा छोटा होता है। इसकी ऊंचाई लगभग 42 फीट यानी करीब 12.8 मीटर होती है और इसकी चौड़ाई लगभग 34 फीट होती है। यह रथ भी लकड़ी से तैयार किया जाता है, जिसमें परंपरागत तरीके से नाख, हथौड़ा, छैनी जैसे औजारों से और बिना किसी आधुनिक तकनीक के हर साल नए सिरे से निर्माण होता है। इस निर्माण प्रक्रिया को ‘रथ निर्माण अनुष्ठान’ कहा जाता है और यह जगन्नाथ मंदिर की सेवा में जुड़े कारीगरों द्वारा अत्यंत श्रद्धा के साथ किया जाता है।

 

दर्पदलन रथ में कुल 12 पहिए होते हैं। यह सभी पहिए भी लकड़ी के बने होते हैं और हर पहिए का व्यास लगभग 6 फीट तक होता है। रथ को खींचने के लिए विशाल रस्सों का प्रयोग होता है, जिसे हजारों भक्त बड़ी श्रद्धा से खींचते हैं। ऐसा माना जाता है कि रथ की रस्सी खींचने से भक्तों के पाप नष्ट होते हैं और उन्हें देवी की कृपा प्राप्त होती है।

 

दर्पदलन रथ का रंग बेहद खास होता है। इसे चमकीले लाल और काले रंग के कपड़े से सजाया जाता है। लाल रंग शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है, वहीं काला रंग गंभीरता, रहस्य और आध्यात्मिक गहराई का संकेत माना जाता है। यह रंग संयोजन देवी सुभद्रा के शक्ति रूप के साथ-साथ शांत रूप का भी प्रतिनिधित्व करता है।

 

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देवी सुभद्रा का स्वरूप नारी शक्ति, करुणा, सहनशीलता और समर्पण का जीवंत रूप है। दर्पदलन रथ के सारथी का नाम ‘अर्जुन’ माना जाता है। अर्जुन का नाम यहां प्रतीकात्मक रूप में लिया जाता है, जो यह बताता है कि जब अर्जुन ने सुभद्रा का हाथ मांगा था, तब भगवान बलराम के विरोध के बावजूद कृष्ण ने इस प्रेम विवाह को स्वीकार किया। इसलिए अर्जुन का सारथी बनना एक प्रेम, समर्पण और नारी सम्मान का संदेश भी देता है।

देवी के रथ का महत्व

रथ की ध्वजा (झंडा) पर ‘पद्म’ यानी कमल का चिन्ह होता है। कमल देवी सुभद्रा के सौंदर्य, पवित्रता और शक्ति का प्रतीक है। रथ यात्रा के दौरान जब देवी सुभद्रा का रथ निकलता है, तो वातावरण विशेष रूप से भक्तिभाव से भर जाता है। खासकर महिलाएं इस रथ के आगे सिर झुकाकर आशीर्वाद लेती हैं, क्योंकि देवी सुभद्रा को मातृत्व और बहन के रूप में अत्यंत प्रिय माना जाता है। उनका रथ नारी शक्ति की गरिमा को दर्शाता है और यह संदेश देता है कि नारी केवल पूज्या ही नहीं, बल्कि परिवार, समाज और धर्म की आधारशिला भी है। देवी सुभद्रा का यह रथ यह भी दर्शाता है कि विनम्रता से बड़ा कोई गुण नहीं। दर्पदलन केवल अहंकार को नष्ट करने वाला रथ नहीं, बल्कि यह आत्मज्ञान और भक्ति का भी प्रतीक है।

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